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मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर में आवारा कुत्तों का कहर बढ़ता जा रहा। सोमवार को एक दिन में 100 लोग एंटी रैबीज की सूई लेने सदर अस्पताल तो 50 से अधिक एसकेएमसीएच पहुंचे। इस बीच स्थानीय लोगों का कहना है कि अब कुत्तों के हमले के डर के कारण घर से निकलने में भी डर लगता है। वहीं लगातार लोगों के पहुंचने से सदर अस्पताल की इमरजेंसी और स्टोर में मरीजों की लंबी कतार लग गई। सदर अस्पताल के फार्मासिस्ट ओमप्रकाश ने बताया कि रोज एंटी रैबीज की सूई लेने 40 से 50 मरीज आते हैं, लेकिन सोमवार को 100 मरीज पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि दवा की कोई कमी नहीं है। कम पड़ने पर सेंट्रल स्टोर से मंगा ली जाती है। सदर अस्पताल में दोपहर 12 बजे इमरजेंसी और ओपीडी में एंटी रैबीज सूई लेने वालों की लंबी कतार लगी थी। कुत्ता काटने से कई बच्चे भी घायल होकर अस्पताल पहुंचे थे। कई बच्चों को उनके माता-पिता गोद में उठाकर सूई दिलवाने लाये थे। सदर अस्पताल में पिछले एक मार्च से 13 मार्च तक लगभग एक हजार लोगों ने एंटी रैबीज की सूई ली है। आवारा कुत्तों के शिकार मरीज शहर के कई इलाकों से सदर अस्पताल पहुंचे थे।
पीड़ितों ने बताया कि वे सड़क से जा रहे थे। अचानक कुत्ते ने उनपर हमला कर दिया और काटकर पैर को जख्मी कर दिया। कुछ मरीज ऐसे भी थे जिन्हें रविवार को कुत्ते ने काटा था। वे अस्पताल की ओपीडी बंद होने से एंटी रैबीज की सूई नहीं लगवा सके थे। उन्होंने बताया कि सोमवार को अस्पताल खुलने पर सूई लेने पहुंचे हैं। सदर अस्पताल के अलावा एसकेएमसीएच में भी एंटी रैबीज सूई के लिए मरीजों की लंबी कतार लगी थी। जिला स्वास्थ्य विभाग के अनुसार पूरे जिले में मार्च के 13 दिनों में तीन से चार हजार एंटी रैबीज की दवा की खपत हो चुकी है। सदर अस्पताल के अलावा पीएचसी में लोग कुत्ता काटने के बाद दवा लेने पहुंचते हैं।
गर्मी और भूख से आक्रामक हो रहे कुत्ते:
जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉ. सुधेंदु ने बताया कि कुत्तों की आक्रामकता का संबंध उनकी भूख से होता है। कुत्तों को अगर समय पर खाना नहीं मिलता है वे लोगों को काटने लगते हैं। इसी कारण से कुत्ते के काटने की घटनाएं बढ़ी हैं। वहीं पशु रोग विशेषज्ञ डॉ. कुमार अभिषेक ने बताया कि कुत्तों के शरीर का औसत तापमान मनुष्य से पांच डिग्री ज्यादा यानी करीब 102 डिग्री होता है। अचानक से बढ़े तापमान, खाना-पानी की कमी और छांव नहीं मिलने से कुत्ते आक्रामक हो जाते हैं। होली में लोगों के कुत्तों को रंग लगाने और पत्थर मारने से भी कुत्ते आक्रामक हो जाते हैं। इसके अलावा मौसम में अचानक बदलाव से मनुष्य की तरह ही वायरल संक्रमण के कारण भी वे चिड़चिड़े हो जाते हैं और लोगों पर हमला बोल देते हैं। इससे बचाव के लिए वैक्सीनेशन जरूरी है।
23 सालों में नगर निगम ने नहीं चलाया आवारा कुत्तों के खिलाफ अभियान
नगर निगम के गठन होने के साथ ही बीते 23 सालों से शहर में आवारा कुत्तों के खिलाफ कोई अभियान नहीं चलाया गया। जबकि आवारा कुत्तों को पकड़ने व उनकी नसबंदी को लेकर कई बार बोर्ड में चर्चा हो चुकी है। बीते साल मिठनपुरा में तीन साल की बच्ची को कुत्ते ने नोंचकर मार डाला था। इसके बाद निजी संगठन जनहित मंच ने शहर में आवारा कुत्तों को पकड़ने का अभियान चलाया था। मंच के सचिव अधिवक्ता सुशील कुमार सिंह ने बताया कि उनके संगठन की ओर से किए गए सर्वे के आधार पर शहरी इलाके में 20 हजार से अधिक स्ट्रीट डॉग का अनुमान है। इनकी संख्या निरंतर बढ़ रही है। बता दें कि तीन साल पहले तत्कालीन मेयर सुरेश कुमार ने डॉग कैचर खरीदने का प्रस्ताव पारित किया था। मगर यह कागज में ही द रह गया। अभी मेयर निर्मला साहू ने कुत्ते की नसबंदी की योजना बनाई है। इसका भी राजनीतिक स्तर पर विरोध शुरू हो चुका है।
चौर में कुत्तों को छोड़ने का ग्रामीणों ने किया था विरोध
जब नगर निगम ने कुत्तों को लेकर कोई मुहिम शुरू नहीं की तो जनहित मंच ने शहरी इलाके में कुत्तों को पकड़ने का अभियान शुरू किया था। मंच ने एलान किया था कि एक कुत्ता लाओ 200 रुपये पाओ। इस अभियान में बड़े पैमाने पर कुत्ते को पकड़ सुदूर देहाती इलाके के चौर में छोड़ा गया। लेकिन, ग्रामीण इलाके में कुत्तों को छोड़ने का विरोध शुरू हुआ तो मंच को अभियान बंद करना पड़ा।