मोबाईल यूजरों को लगेगा झटका, बढने वाले है डेटा प्लान, जानें कितना होगा महंगा

इस खबर को शेयर करें

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 15 सितंबर को टेलिकॉम कंपनियों के लिए बड़े वित्तीय राहत उपायों की घोषणा की। सरकारी वसूली और प्रतिस्पर्धा ने इस सेक्टर में सबसे ज्यादा नुकसान वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल को पहुंचाया है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने टेलिकॉम कंपनियों को 1.4 लाख करोड़ रुपए की बकाया राशि सरकार को चुकाने के निर्देश दिए थे। कंपनियों ने कुछ ही बकाया चुकाया है।

सरकार के टेलिकॉम सेक्टर को दिए राहत पैकेज को वोडाफोन-आइडिया के लिए लाइफलाइन के तौर पर देखा जा रहा है। इसके बाद भी कंपनी के लिए संकट टला नहीं है। उसे नेटवर्क सुधारने और नई सर्विसेस लॉन्च करने के लिए अतिरिक्त पूंजी की व्यवस्था करनी होगी, जिसके संकेत कंपनी के अधिकारियों ने भी दिए हैं। एनालिस्ट कह रहे हैं कि वोडाफोन-आइडिया समेत सभी कंपनियां मोबाइल डेटा की दरें बढ़ाकर प्रति व्यक्ति औसत आय (ARPU) बढ़ाने की कोशिश कर सकती हैं।

आइए, समझते हैं कि टेलिकॉम सेक्टर को इस राहत पैकेज की जरूरत क्यों पड़ी? इसे वोडाफोन-आइडिया के लिए लाइफलाइन क्यों कहा जा रहा है? इस पैकेज से सरकार और आम ग्राहकों को कितना नुकसान उठाना पड़ सकता है?

टेलिकॉम कंपनियां संकट में क्यों हैं?

इसकी कहानी करीब 22 साल पुरानी है। पारंपरिक तौर पर टेलिकॉम कंपनियों को सरकार से लीज पर स्पेक्ट्रम खरीदना होता है। इसके लिए उन्हें सरकार को फिक्स फीस चुकानी पड़ती है। 1999 से स्पेक्ट्रम फीस के साथ-साथ सरकार ने उनके एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) में भी एक निश्चित अनुपात शेयर करने को कहा। सरकार और टेलिकॉम कंपनियों में इस बात पर सहमति नहीं बन सकी थी कि AGR में क्या आएगा।
कंपनियों का कहना था कि सरकार उनकी नॉन-टेलिकॉम रेवेन्यू को AGR में शामिल नहीं कर सकती। उसमें से हिस्सा मांगना भी सही नहीं है। यह विवाद कोर्ट तक पहुंचा और सरकार के पक्ष में फैसला हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने टेलिकॉम कंपनियों को संचयी AGR बकाया सरकार को चुकाने के आदेश दिए। इस आदेश से टेलिकॉम कंपनियों की बैलेंस शीट पर गहरा असर पड़ा, जो पहले से ही प्राइस-वॉर की वजह से दबाव में थी।

सरकार ने टेलिकॉम कंपनियों को किस तरह की राहत दी है?

सरकार ने कंपनियों को स्पेक्ट्रम और AGR बकाया पर चार साल का मोरेटोरियम दिया है। ताकि उन पर बना वित्तीय दबाव थोड़ा कम हो सके। वे अपने बकाया और उन पर बने ब्याज को मोरेटोरियम पीरियड के खत्म होने के समय जमा कर सकते हैं। अगर मोरेटोरियम के अंत में कोई कंपनी बकाया जमा नहीं कर सकी तो वह सरकार को इस बकाया के बदले में कंपनी की हिस्सेदारी दे सकती है। इस पर उनके बीच बातचीत होगी।
इतना ही नहीं, सरकार ने कंपनियों पर भविष्य के दायित्वों को कम करने के लिए कुछ पॉलिसी स्तर पर बदलाव किए हैं। उसने कहा है कि नॉन-टेलिकॉम स्रोतों से हुई कमाई को सरकार के साथ बांटने की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा, टेलिकॉम कंपनियों में निवेश को आसान बनाने के लिए केंद्र ने सरकारी मंजूरी के बिना 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी दे दी है। उसने लाइसेंस फी के खिलाफ लगने वाली बैंक गारंटी की जरूरत में भी राहत दी है। फीस के लेट पेमेंट पर लगने वाली पेनल्टी को भी खत्म कर दिया है।
क्या वोडाफोन-आइडिया इस राहत पैकेज से रिवाइव कर लेगी?

यह सबसे बड़ा चैलेंज है। भले ही सरकार ने इन उपायों को सभी के लिए जारी किया है, वोडाफोन आइडिया को इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा। उस पर 1.9 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। हालांकि, कंपनी को जल्द ही पूंजी की व्यवस्था करनी पड़ेगी और साथ ही प्रीपेड ग्राहकों के लिए 4जी टैरिफ भी बढ़ाना पड़ सकता है। कंपनी ने साफ कर दिया है कि वह पूंजी की व्यवस्था कर रही है। यह ऑपरेशंस को विस्तार देने के लिए बेहद जरूरी है।
वोडाफोन आइडिया को रिलायंस जियो इंफोकॉम और भारती एयरटेल से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए खुद को तैयार करना होगा। इंडस्ट्री से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि मोरेटोरियम का विकल्प सबके लिए खुला है। वोडाफोन आइडिया का फोकस रिवाइवल पर होगा, जबकि रिलायंस जियो और भारती एयरटेल इस राहत का इस्तेमाल अपने आक्रामक कैम्पेन में कर सकती हैं। इन कंपनियों का फोकस नेटवर्क और सर्विसेस को बेहतर बनाने के साथ ही प्रतिस्पर्धी टैरिफ देने और एड-ऑन पर होगा।
एनालिस्ट्स के मुताबिक सरकार के स्पेक्ट्रम और AGR बकाया को इक्विटी में बदलने के ऑफर से वोडाफोन आइडिया सरकारी कंट्रोल में आ सकती है। यह रिस्क इन्वेस्टर्स को कंपनी में नया निवेश करने से रोकेगा।

क्या यह उपाय टेलिकॉम कंपनियों की मदद कर सकते हैं?

सरकार ने जो राहत उपाय घोषित किए हैं, उससे कंपनियों की बैलेंस शीट्स में फ्री कैश मिलने की उम्मीद है। उम्मीद की जा रही है कि इस कैश का इस्तेमाल कंपनियां अपने व्यापार को विस्तार देने और मजबूती लाने में करेंगी। इससे उन्हें अपना बकाया भुगतान करने के लिए क्षमता बढ़ाने का मौका मिलेगा।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सरकार ने कंपनियों पर बकाया राशि को माफ नहीं किया है। अगले चार साल तक बनने वाली राशि को भी माफ नहीं किया है। एनालिस्ट कहते हैं कि सरकार ने टेलिकॉम कंपनियों से नॉन-टेलिकॉम रेवेन्यू का हिस्सा वसूलने से छूट दी है, जो महत्वपूर्ण है। इससे टेलिकॉम सेक्टर और सरकार के बीच चल रही दो दशक लंबी लड़ाई खत्म हो जाएगी कि AGR में क्या आना चाहिए और क्या नहीं। एनालिस्ट कह रहे हैं कि मोरेटोरियम से टेलिकॉम सेक्टर को अगले चार साल में 45 हजार करोड़ रुपए सालाना की राहत मिलेगी।

इन राहत उपायों का सरकार के फाइनेंस पर क्या असर पड़ेगा?

सरकार ने कहा है कि मोरेटोरियम का ऑफर मौजूदा वैल्यू को बचाने के लिए है, पर उसे भी अगले चार साल तक रेवेन्यू में नुकसान का सामना करना पड़ेगा। मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार को स्पेक्ट्रम यूसेज चार्ज (SUC), लाइसेंस फी और अन्य फी के तहत करीब 54 करोड़ रुपए कमाई की उम्मीद थी। अगर तीन में से दो टेलिकॉम कंपनियां भी मोरेटोरियम का लाभ लेती हैं तो अगले चार साल तक सरकार को इस रेवेन्यू में से बड़ा हिस्सा गंवाना पड़ सकता है।

मोरेटोरियम की अवधि खत्म होने के बाद अगर कंपनियां पूरा पेमेंट नहीं कर सकीं तो वे सरकार को कंपनी में हिस्सेदारी दे सकेंगी। इसके बाद भी सरकार के लिए यह आसान नहीं रहने वाला। सरकार जब इस हिस्सेदारी को मार्केट में बेचकर पैसा कमाने की सोचेगी, तब मार्केट स्थितियों में सुधार आवश्यक होगा।

क्या टेलिकॉम टैरिफ बढ़ सकते हैं?

हां। टेलिकॉम सेक्टर के सामने संकट का सबसे बड़ा कारण कड़ी प्रतिस्पर्धा है। इसकी वजह से टेलिकॉम सर्विसेस बढ़ी है और भारत में दुनियाभर में सबसे सस्ता टेलिकॉम टैरिफ उपलब्ध हो रहा है। इस वजह से कुछ लोगों का मानना है कि सरकार को पहले से तनावग्रस्त हो चुकी वोडाफोन आइडिया जैसी कंपनियों को नाकाम होकर मार्केट से बाहर जाने देना चाहिए था। इससे पहले भी कई टेलिकॉम कंपनियां ऐसा कर चुकी हैं। इससे सप्लाय कम होगा और कीमतें बढ़ेंगी। टेलिकॉम टैरिफ में अंतिम बड़ा बदलाव दिसंबर 2019 में आया था। टैरिफ्स को बढ़ाकर कंपनियां अपनी एवरेज रेवेन्यू पर यूजर (ARPU) को बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ सकती हैं।
हालांकि, इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च की नई रिपोर्ट के अनुसार टेलिकॉम सेक्टर की एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) में जनवरी-मार्च 2021 के मुकाबले अप्रैल-जून 2021 के बीच 3% की बढ़ोतरी हुई है। यह 44.8 हजार करोड़ रुपए से बढ़कर 46.4 हजार करोड़ रुपए हो गई है। जियो की रेवेन्यू 11% बढ़ी है, वहीं एयरटेल की 1%, दूसरी ओर VIL और BSNL का AGR 2% और 3% घटा है।
रिसर्च एजेंसी का कहना है कि पिछले एक साल में ओवरऑल वायरलेस सब्सक्राइबर्स में ब्रॉडबैंड सब्सक्राइबर्स की संख्या कई गुना बढ़ चुकी है। मार्च 2019 में इनकी हिस्सेदारी 47% थी, जो मई 2021 में 64% और जून में बढ़कर 65% हो चुकी है।
भारती एयरटेल में हर महीने डेटा यूसेज जनवरी-मार्च में 16.8 GB था, जो अप्रैल-जून 2021 में बढ़कर 18.9 GB हो गया है। वॉइस टैरिफ घटा है, वहीं डेटा टैरिफ बढ़ा है। इसके अलावा प्रति सब्सक्राइबर डेटा यूसेज बढ़ा है और इसके साथ ही डेटा सब्सक्राइबर के बढ़ने से साफ है कि टेलिकॉम कंपनियों ने टैरिफ बढ़ाए बिना भी ARPU बढ़ाया है।