बिहार की सत्ता में आते ही अपना वादा भूल गए तेजस्वी यादव? रोजगार के मुद्दे पर देने लगे ये गजब तर्क

Tejashwi Yadav forgot his promise as soon as he came to power in Bihar? These amazing arguments started giving on the issue of employment
Tejashwi Yadav forgot his promise as soon as he came to power in Bihar? These amazing arguments started giving on the issue of employment
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Tejashwi Yadav: कसमें वादे प्यार वफा सब, बातें हैं बातों का क्या. कोई किसी का नहीं ये झूठे, नाते हैं नातों का क्या. ये मशहूर गीत वर्ष 1967 में रिलीज फिल्म उपकार का है. इस गाने के जरिए ये बताने की कोशिश की गई है कि रिश्ते नाते इस रंग बदलती दुनिया में कोई महत्व नहीं रखते हैं. हालांकि आज हम जिस रिश्ते की बात कर रहे हैं वो जनता के साथ नेता का रिश्ता है. नेताओं पर अक्सर ये आरोप लगता है कि उनके वादे केवल चुनावी होते हैं. चुनाव के बाद नेता वादा भूल जाते हैं या बहाना बनाने लगते हैं.

रोजगार पर अपना वादा भूल गए तेजस्वी यादव
बिहार की राजनीति में ऐसा ही कुछ हो रहा है. 10 अगस्त को बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के नेतृत्व में महागठबंधन की नई सरकार बनी. इस सरकार में तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने. तेजस्वी यादव ने 2020 विधानसभा चुनाव के लिए जारी घोषणापत्र में ये वादा किया था कि महागठबंधन की सरकार बनती है तो 10 लाख लोगों को रोजगार देंगे. तेजस्वी यादव जब उपमुख्यमंत्री बने तो जी न्यूज ने उनसे खास बातचीत की. 10 लाख लोगों को रोजगार देने पर सवाल पूछे तो उनका जवाब था वो मुख्यमंत्री नहीं है. ये वादा तब पूरा करते जब वो मुख्यमंत्री बनते.

राजनीति में ऐसा हमेशा होता रहा है कि नेता चुनाव जीतने के बाद अपने वादे भूल जाते हैं. तेजस्वी यादव ने अपने वादे से बचने के लिए इस बार एक क्लॉज जोड़ा है. क्लॉज है- मेरा वादा शर्तों के साथ था. आज आपको ये याद रखना चाहिए कि नेताओं के वादों में कई शर्त और बंधन होते हैं. अगर शर्त पूरा नहीं होती तो वादा नहीं निभाएंगे. मतलब नेता और जनता का रिश्ता एक एग्रीमेंट की तरह है. इसमें भावना, भरोसा और सेवा भाव नहीं है.

चुनाव के समय में किया था जनता से वादा
अब आपको तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के घोषणा पत्र के बारे में बताते हैं, जिसमें 10 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा किया गया था. इस घोषणापत्र में महागठबंधन के सभी नेताओं की तस्वीर लगी है. लिखा है प्रण हमारा, संकल्प बदलाव का. आगे लिखा है. ये सच होने वाला है. इस घोषणा पत्र का पहला वादा ही रोजगार से जुड़ा है. वादा किया गया है कि NDA शासन में खाली 4 लाख 50 हजार पदों पर नियुक्ति की जाएगी. 5 लाख 50 हजार नए पदों पर भी नियुक्ति की जाएगी. सबसे जरूरी बात लिखी है कि पहली ही कैबिनेट बैठक में पहले हस्ताक्षर से ये शुरू कर दिया जाएगा.रोजगार से जुड़ा ही दूसरा वादा फ्री में सरकारी परीक्षाओं के फॉर्म देने का था. इसके साथ परीक्षा केंद्र तक जाने के लिए मुफ्त़ यात्रा का भी वादा किया गया है.

पलायन को लेकर 1990 के दशक में एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी जिसका नाम था पहला गिरमिटिया. ये पुस्तक गिरिराज किशोर ने लिखी है. इस पुस्तक में महात्मा गांधी के अफ्रीका में उनके किए गए कामों का जिक्र है. लेकिन आपको ये जानना चाहिए कि इस पुस्तक में पलायन के दर्द को बहुत ही बारीकी से बताया गया है. अंग्रेजी शासन के दौरान जो मजदूर बाहर जाते थे उन्हें गिरमिटिया कहा जाता था.

बिहार में रोजगार के लिए पलायन बड़ी समस्या
बिहार के लिए पलायन एक बड़ी समस्या है. पलायन हमेशा रोजगार से जुड़ा होता है. अगर किसी राज्य में रोजगार के मौके ज्यादा होते हैं तो वहां पलायन कम होता है. बिहार में रोजगार के मौके बेहद कम है इसलिए काफी संख्या में लोग दूसरे राज्यों में जाते हैं. अब कुछ आंकड़े दिखाते हैं जो आपको जानना चाहिए. अप्रैल 2022 में बिहार में बेरोजगारी दर 21.2 फीसदी है. बेरोजगारी की ये दर देश में तीसरी सबसे ज्यादा है. ये आंकड़े Centre for Monitoring Indian Economy Pvt Ltd की ओर से जारी किए गए हैं.

राज्य में 4.5 लाख पद चल रहे हैं खाली
बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 4.5 लाख पद रिक्त है. इन रिक्त पदों में 1.5 लाख पद टीचर के हैं. 50 हजार से ज्यादा पद स्वास्थ्य विभाग में रिक्त है जिसमें पैरामेडिकल स्टाफ और दूसरे तकनीकी पोस्ट है. किसी भी राज्य को चलाने में सचिवालय की भूमिका बेहद अहम होती है. सचिवालय और जिला कार्यालय में 1 लाख से ज्यादा पोस्ट रिक्त है.