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20 साल बहुत बड़ा वक्त होता है. पिछले 20 साल में पूरी दुनिया की तस्वीर बदल चुकी है. आज दुनिया के हर देश की स्थिति 20 साल पहले से बिल्कुल फर्क है. ये बात भारत पर भी लागू होती है. पिछले 20 साल में हालिया उपलब्धियों का ही जिक्र कर लें तो भारत को मिशन चंद्रयान में कामयाबी मिली. भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बना. नीरज चोपड़ा, अभिनव बिंद्रा जैसे ओलंपियंस ने भारत को खेलों के महाकुंभ में गोल्ड मेडल जिताया. महिलाओं को आरक्षण मिला जिसकी चर्चा इस वक्त पूरी दुनिया में हैं. पूरी दुनिया पर कोरोना का संकट आया तो उसकी वैक्सीन बनाने में भी भारत ने बहुत प्रमुख भूमिका निभाई.
ये बदलाव सिर्फ अंतरिक्ष कार्यक्रम, अर्थव्यवस्था, खेल, समाजिक सुरक्षा, विज्ञान और तकनीक की दुनिया में ही नहीं आए हैं, बल्कि हर जगह आए हैं. ये सिर्फ एक उदाहरण भर है जिसको अब हम क्रिकेट से जोड़ने जा रहे हैं, क्योंकि उससे टीम इंडिया पर हमारा भरोसा मजबूत होगा. भारत में क्रिकेट धर्म है. आज रविवार के दिन जब एक सौ चालीस करोड़ लोग भारत को वर्ल्ड कप फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलते देखेंगे तो उन्हें अपने अंदर सिर्फ एक भरोसे को जगाना है- वो 2003 था, ये 2023 है, अब हम ऑस्ट्रेलिया से नहीं घबराते, अब ऑस्ट्रेलिया हमसे घबराता है. क्रिकेट फैंस को 2003 के वर्ल्ड कप के फाइनल में भारत की 125 रन से हार की यादों को दिलो-दिमाग से बाहर करना है.
आखिर क्यों ऑस्ट्रेलिया पर टीम इंडिया है भारी?
इस सवाल का जवाब बहुत आसान है. किसी भी खेल में जीत या हार का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है. वो भी जब बात इतने बड़े टूर्नामेंट के फाइनल की हो. इसलिए समझदारी इसमें है कि कुछ कसौटियों पर दोनों टीमों को परख लिया जाए. कहानी अपने आप समझ आ जाएगी. पहली कसौटी- इस वर्ल्ड कप में अब तक टीम इंडिया अपराजेय रही है. उसने लगातार 10 मैच जीते हैं. ऑस्ट्रेलिया ने भी फाइनल तक का सफर लगातार 8 जीत के साथ तय किया है लेकिन लीग मैच में उसे भारत और दक्षिण अफ्रीका से हार का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा अफगानिस्तान और बांग्लादेश के खिलाफ मैच में ऑस्ट्रेलिया को रोना आ गया था.
अफगानिस्तान के मैच में 91 रन पर 7 विकेट गंवाने के बाद ग्लेन मैक्सवेल की करिश्माई पारी ने बचा लिया. उसके बाद बांग्लादेश की टीम ने कंगारुओं के खिलाफ 300 से ज्यादा रन ठोक दिए. इससे उलट भारतीय टीम ने इस वर्ल्ड कप में 100-200-300 से ज्यादा रन से भी मैच जीते हैं. विकेट के लिहाज से भारत की सबसे छोटी जीत 4 विकेट की है और रनों के लिहाज से 70 रन की. ये दोनों मैच उसने न्यूजीलैंड के खिलाफ खेले थे. लीग मैच में उसने न्यूजीलैंड को 4 विकेट से हराया था और सेमीफाइनल में 70 रन से. अब आप ये आसानी से समझ सकते हैं किस टीम के पास ‘कंसिसटेंसी’ बेहतर है.
ऑस्ट्रेलिया से ज्यादा एकजुट है टीम इंडिया
इस कसौटी पर भी टीम इंडिया कहीं आगे है. भारतीय टीम को मिली हर जीत में कई खिलाड़ियों का योगदान है. टीम इंडिया की स्थिति ऑस्ट्रेलिया जैसी नहीं जहां एक मैच में ग्लेन मैक्सवेल के दोहरे शतक से जीत मिली और सेमीफाइनल में तो पैट कमिंग्स और मिचेल स्टार्क को क्रीज पर डटकर संघर्ष करना पड़ा वरना बल्लेबाजों ने तो काम खराब कर दिया था. इससे उलट भारतीय टीम की जीत में कई स्टार हैं. टॉप ऑर्डर से लेकर मिडिल ऑर्डर तक हर बल्लेबाज ने अपना रोल बखूबी निभाया है. कुछ ऐसी ही कहानी गेंदबाजी की भी है, जहां तेज गेंदबाजों को स्पिनर्स से पूरा सहयोग मिला है. भारतीय टीम के कप्तान रोहित शर्मा को फाइनल तक के सफर में किसी एक या दो खिलाड़ी के प्रदर्शन पर ही नहीं निर्भर रहना पड़ा है बल्कि पूरी टीम मिलकर मंजिल की तरफ बढ़ी है.
ये आंकड़े इस बात को साबित करते हैं. पहले बल्लेबाजों की बात कर लेते हैं. विराट कोहली के खाते में सबसे ज्यादा 711 रन हैं. लेकिन रोहित शर्मा ने 550, श्रेयस अय्यर ने 526, केएल राहुल ने 386 और शुभमन गिल ने 350 रन बनाए हैं. इसके बाद बात गेंदबाजों की, मोहम्मद शमी ने सबसे ज्यादा 23 विकेट लिए हैं. लेकिन जसप्रीत बुमराह के खाते में भी 18, जडेजा के खाते में 16, कुलदीप यादव के खाते में 15 विकेट हैं. यहां तक कि सेमीफाइनल में बेरंग दिखे मोहम्मद सिराज ने भी टूर्नामेंट में 13 विकेट लिए हैं. ये आंकड़े दिखाते हैं कि बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में बेहतरीन एकजुट प्रदर्शन रहा है. इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि भारत ने अब तक खेले 10 मैच में एक बार चार सौ का आंकड़ा भी पार किया है और दो बार विरोधी टीम को 100 रन के भीतर समेटा है.
वो पॉन्टिंग, गिलक्रिस्ट, हेडन, मैग्रा की टीम थी…
आखिर में थोड़ी बात 2003 फाइनल की भी कर ही लेते हैं. 23 मार्च 2003 को जोहानिसबर्ग में खेले गए उस फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 359 रन बनाए थे. इसमें रिकी पॉन्टिंग के शानदार 140 रन थे. इसके अलावा एडम गिलक्रिस्ट और डेमियन मार्टिन ने भी शानदार अर्धशतक लगाए थे. 360 रन का सामना करने जब भारतीय टीम उतरी तो उसे ग्लेन मैग्रा, ब्रेट ली, एंडी बिकेल जैसे गेंदबाजों का सामना करना था. भारतीय बल्लेबाजी लड़खड़ा गई और 125 रन से वो मुकाबला हार गई.
अब जरा 2023 की ऑस्ट्रेलियाई टीम की बात कर लेते हैं. एक बार फिर आंकड़ों का सहारा लेते हैं. मौजूदा विश्व कप में सिर्फ डेविड वॉर्नर हैं जिन्होंने 500 से ज्यादा रन बनाए हैं. वरना ज्यादातर बल्लेबाज 250-350 के बीच में हैं. स्टीव स्मिथ संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने 9 मैच में 298 रन ही बनाए हैं. मार्नश लाबुशेन के खाते में 10 मैच में 304 रन हैं. गेंदबाजों में जैंपा हैं जिनके खाते में 22 विकेट हैं. वरना मिचेल स्टार्क और पैट कमिंग्स 13-13 विकेट पर हैं. इसलिए 2023 की टीम 2003 वाली टीम नहीं हैं, जिसमें रिकी पॉन्टिंग, एडम गिलक्रिस्ट, मैथ्यू हेडेन या ग्लेन मैग्रा जैसे ऑस्ट्रेलिया के महान खिलाड़ी हुआ करते थे.
इसके बाद भी हो सकता है कुछ कमजोर दिल वालों का मन कहे कि आंकड़ों से क्या होता है, ऑस्ट्रेलिया वर्ल्ड कप इतिहास की सबसे कामयाब टीम है तो उन्हें ये बता देते हैं कि 2003 में स्टेडियम में एक लाख से ज्यादा लोग टीम इंडिया की जीत के लिए नारे भी नहीं लगा रहे थे. जो इस बार लगाएंगे, जोर जोर से चिल्लाएंगे- जीतेगा भाई जीतेगा इंडिया जीतेगा.