हरियाणा में यूं ही नहीं 17 को शपथ ले रही बीजेपी सरकार, इसके पीछे छिपा है बड़ा सियासी संदेश

The BJP government is not taking oath on 17th in Haryana for no reason, there is a big political message hidden behind it
The BJP government is not taking oath on 17th in Haryana for no reason, there is a big political message hidden behind it
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हरियाणा विधानसभा चुनाव जीतने के बाद बीजेपी लगातार तीसरी बार सरकार गठन की प्रक्रिया में जुट गई है. 16 अक्टूबर को विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री का फैसला करेंगे और 17 अक्टूबर को शपथ ग्रहण के कार्यक्रम का आयोजन रखा गया है. बीजेपी ने यूं ही 17 अक्टूबर का दिन शपथ ग्रहण के लिए नहीं चुना है बल्कि उसके एक पीछे सोची-समझी रणनीति है, जिसके जरिए पार्टी ने बड़ा सियासी संदेश देने का प्लान बनाया है.

महाकाव्य रामायण के रचयिता ऋषि वाल्मीकि की जयंती 17 अक्टूबर 2024 को है. वाल्मीकि समाज के लोग वाल्मीकि जयंती को परगट दिवस के तौर पर मनाते हैं. इस खास मौके पर बीजेपी ने हरियाणा सरकार के शपथ ग्रहण का कार्यक्रम रखा है. इस तरह बीजेपी ने दलित समुदाय को संदेश देने के रणनीति बनाई है. हरियाणा की नायब सरकार ने पहले ही वाल्मिकी जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित कर रखा है.

बड़ा सियासी संदेश देने की स्ट्रेटेजी
हरियाणा में इस बार के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच दलित वोटों को लेकर शह-मात का खेल देखने को मिला था. बीजेपी ने कुमारी सैलजा का मुद्दा बनाकर दलित स्वाभिमान से जोड़ दिया था और कांग्रेस को दलित विरोधी कठघरे में खड़ी करती नजर आई थी. इसका चुनावी लाभ उसे मिला और अब बीजेपी ने वाल्मीकि जयंती का दिन शपथ ग्रहण के लिए चुनकर बड़ा सियासी संदेश देने की स्ट्रेटेजी अपनाई है. शपथ ग्रहण कार्यक्रम में पीएम मोदी से लेकर बीजेपी शासित राज्यों के सीएम भी उपस्थित रहेंगे.

बीजेपी ने पहली बार महर्षि वाल्मीकि को ध्यान में रखते हुए यह पहला कदम नहीं उठाया बल्कि इस साल जनवरी में अयोध्या अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को वाल्मीकि के नाम पर रखा था. बीजेपी 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद से विभिन्न संतों और धार्मिक प्रतीकों के बहाने अलग-अलग समाज तक पहुंचने में लगी है. हरियाणा की सत्ता में आने के साथ ही महर्षि वाल्मीकि के योगदान का सम्मान करने के लिए राज्य स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करना शुरू कर दिया था.

वाल्मीकि पर कैथल विश्वविद्यालय का नाम
अक्टूबर 2015 में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने घोषणा की थी कि हरियाणा में एक विश्वविद्यालय का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर रखा जाएगा. साल 2016 में 17 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती पर एक राज्य स्तरीय कार्यक्रम बनाया गया. जून 2021 में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने कैथल विश्वविद्यालय का नाम बदलकर महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय कर दिया था. बीजेपी सरकार ने पानीपत में रेलवे रोड चौराहे का नाम महर्षि वाल्मीकि चौक रखने का ऐलान किया था.

BJP की दलितों को साधने की रणनीति
बीजेपी की राजनीति में महर्षि वाल्मीकि के सियासी महत्व को समझाते हुए मनोहर लाल खट्टर ने अपने सीएम कार्यकाल के दौरान कहा था कि अंत्योदय और सामाजिक समरसता हमारी सरकार का आदर्श वाक्य है. महर्षि वाल्मीकि के राम राज्य के सपने को बीजेपी बरकरार रखने की कोशिश कर दलितों को साधने की रणनीति पर काम कर रही है. वाल्मीकि जयंती के अलावा हरियाणा में बीजेपी ने अन्य संतों के योगदान को मान्यता दी है. जून 2022 में मनोहर लाल खट्टर ने घोषणा की थी कि चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास को ‘संत कबीर कुटीर’ के नाम से जाना जाएगा.

बीजेपी ने जीता हारा हुआ चुनाव
हरियाणा में 21 फीसदी के करीब दलित समुदाय हैं, जो सियासी तौर पर जाट के बाद दूसरी सबसे बड़ी जाति है. लोकसभा चुनाव में दलित-जाट समीकरण के सहारे कांग्रेस हरियाणा की 10 में से पांच सीटें जीतने में कामयाब रही, लेकिन विधानसभा चुनाव में तीसरी बार जीत दर्ज करने से स्थिति पूरी तरह बदल गई है. कांग्रेस जीतती हुई सियासी बाजी हार गई और बीजेपी ने हारा हुआ चुनाव जीतकर रिकॉर्ड बना दिया है. बीजेपी दलित-ओबीसी वोटों को जोड़ने में कामयाब रही.

बीजेपी ने गैर जाटलैंड के साथ-साथ दलित और ओबीसी वर्गों में अपने वोट पर लगातार पकड़ बना कर रखी है. ऐसे में बीजेपी दलित समाज को संदेश देने की कवायद में है, जिसके लिए महर्षि वाल्मीकि जयंती का दिन चुना है. इस तरह बीजेपी की कोशिश दलित समाज को अपने साथ मजबूती से जोड़े रखने की रणनीति है.