दृश्यम का सीक्वल है कमाल, क्लाइमैक्स ने मचाया खूब बवाल, लेकिन स्क्रिप्ट रही ‘गोलमाल’

The sequel of Drishyam is amazing, the climax created a lot of ruckus, but the script was 'Golmaal'
The sequel of Drishyam is amazing, the climax created a lot of ruckus, but the script was 'Golmaal'
इस खबर को शेयर करें

Suspense-Thriller Movie: दृश्यम को पसंद करने वालों को इस मूवी से काफी उम्मीदें हैं, ऐसे में बिना ज्यादा दिमाग लगाए जो इस सीक्वल को देखने जायेंगे,उनको इस मूवी में वाकई में एक सच्ची थिलर मूवी जैसा आनंद आने वाला है. लेकिन जो किसी ने लेखक और डायरेक्टर के बिछाए जाल में कमियां ढूंढने की कोशिश की, तो ये मूवी आपको कमजोर लग सकती है.

कहानी शुरू होती है उसी रात से, जब विजय सलगांवकर (अजय देवगन) लड़की की लाश पुलिस स्टेशन में दफना रहा होता है, पुलिस से बचकर भाग रहा एक खूनी उसे देख लेता है. उसे पुलिस पकड़कर जेल भेज देती है. कहानी 7 साल आगे चली जाती है, जिसमें विजय सलगांवकर एक मूवी प्रोडयूस करने में लगा है, उसने सामने वाली जमीन खरीदकर थिएटर बनवा लिया है. लेकिन 7 साल बाद भी उसकी बड़ी बेटी अभी पढ़ ही रही है.

विजय की पत्नी को करानी है बेटी की शादी

विजय की पत्नी नंदिनी (श्रेया शरण) को उनकी एक पड़ोसन बताती है कि कैसे उनकी बेटी के लिए एक परिचित ने इसलिए मना कर दिया क्योंकि शहर समझता है विजय ने ही आईजी मीरा (तब्बू) के बेटे को मारा था, नंदिनी भी एक दो लाइन का राज उगल देती है. तब खुलासा होता है कि आईजी मीरा ने हार नहीं मानी थी, बल्कि अपने दोस्त आईजी तरुण अहलावत (अक्षय खन्ना) के जरिए लगातार उन पर नजर रख रही थी.

पुलिस होगी विजय पर हावी

दर्शकों को लगता है कि पुलिस इस बार विजय पर हावी हो रही है, कफन में आखिरी कील की तरह पैसे के लालच में विजय को दफनाते देखने वाला खूनी भी पुलिस को बता देता है कि लाश पुलिस स्टेशन में छुपी थी और इस तरह वो बरामद भी हो जाती है. विजय की पत्नी की आवाज भी रिकॉर्ड हो जाती है, जो पडोसन को ये बोल रही थी कि लाश विजय ने अगले दिन शिफ्ट की थी. विजय के परिवार से पूछताछ होती है और उसी बहाने परिवार पर पुलिसिया कहर, विजय टूट जाता है और वीडियो स्टेटमेंट में जुर्म कुबूल कर लेता है.

क्लाइमैक्स करता है इंप्रेस

लेकिन आखिरी के पंद्रह मिनट हैं, जो ना केवल कहानी को बल्कि दर्शकों को भी मूवी में वापस खींचकर लाते हैं और 90 फीसदी मूवी में अक्षय खन्ना के किरदार के आगे बेबस नजर आ रहे अजय देवगन को भी. सो मूवी का क्लाइमैक्स दृश्यम सीरीज को बचाने के काम भी आता है और दर्शक खुशी-खुशी बाहर आता है.

कहानी में दिखी कहीं-कहीं गोलमाल

लेकिन आपने अगर हर घटना को जेम्स बांड की नजर से देखनी की कोशिश की तो कई सवाल आपके मन में उठ सकते हैं. हीरो का काम लड़के के कंकाल को ही बदलने से जब चल रहा था तो सौरभ शुक्ला का किरदार रचने और किताब लिखने की, फिल्म की योजना बनाने की जरुरत ही क्या थी? जब विजय चौकीदार को सोता छोड़कर हॉस्पिटल के एवीडेंस रूम में घुसता है तो वहां के सीसीटीवी कहां चले गए थे. जब पुलिस को विजय के मददगारों का पता चल ही चुका था, तो कितना आसान था उन्हें पकड़कर उसे मुजरिम साबित करने का. जब किताब से साफ पता चल रहा था कि हत्या बेटी या पत्नी ने की है, और दोनों ही काफी कमजोर हैं तो उनसे अलग अलग पूछताछ करके उन्हें क्यों नहीं डराकर कुबूल करवाया गया.

सारे शहर को पता था कि विजय पर जिस लड़के की हत्या का शक है, उसका कंकाल मिला है तो जिस हॉस्पिटल में कंकाल आया था, जिस चौकीदार की निगरानी में था, उसको क्यों नहीं पता था, वो उस रात भी विजय के साथ वहीं बैठकर शऱाब पीता रहा. जब घर में ऑडियो डिवाइसेज लगी थीं तो उन्होंने आखिरी दिन की बातचीत क्यों नहीं सुनी? 7 साल में विजय ने ना सही, मां बेटी ने तो आपस में उस घटना का जिक्र किया ही होगा? लेकिन डायरेक्टर और राइटर को जो अपनी कहानी के हिसाब से सही लगता है, वो करते हैं.

मलयालम फिल्म का है रीमेक

दृश्यम और दृश्यम 2 दोनों ही मलयालम में बनकर सुपरहिट हो चुकी हैं. हालांकि हिंदी में दृश्यम डायरेक्ट करने वाले निशिकांत कामत की मौत के बाद इसका सीक्वल प्रोडयूसर कुमार मंगत पाठक के बेटे अभिषेक पाठक ने डायरेक्ट की है. सो तालियां दें या गालियां, उन्हीं के हिस्से में ज्यादा जाने वाली हैं.

एक्टर्स की एक्टिंग रही बेहतरीन

लेकिन इस मूवी में भी एक्टिंग सभी की बेहतरीन थी, अजय देवगन, तब्बू, रजत कपूर और अक्षय खन्ना मंझे हुए कलाकार हैं, सो उन्हें तो लोगों की उम्मीद पर खरा उतरना ही था. मुम्बई यूनीवर्सिटी में एक्टिंग के गुरू योगेश सोमण भी इंस्पेक्टर के रोल में असर छोड़ते हैं, वो लगातार हिंदी और मराठी मूवीज का हिस्सा बने हुए हैं, उनका मराठी लहजा गोवा और महाराष्ट्र आधारित किरदारों के लिए एकदम फिट बैठता है. इशिता दत्ता ने भी असर छोड़ा है, लेकिन बाकी किसी के लिए ज्यादा करने को था नहीं. सिनेमेटोग्राफी और एडीटिंग की भी आपको तारीफ करनी होगी, बैकग्राउंड म्यूजिक अपना रिदम सस्पेंस के साथ बनाए रखता है, लेकिन मूवी का बोझ स्क्रीनप्ले के हिस्से था, वो आपको तय करना है कि फिल्म आपको बांधकर रख पाई या नहीं. ऐसे में जबकि दर्शक सिनेमा हॉल्स में आने से परहेज कर रहे हैं, अजय देवगन के लिए भी ये मूवी परीक्षा की तरह ही होगी.