बिहार में बदल रहा सियासी वोट बैंक का ट्रेंड, बड़ी पार्टियों के खेमे में हो रही सेंधमारी

The trend of political vote bank is changing in Bihar, breaking into the camp of big parties
The trend of political vote bank is changing in Bihar, breaking into the camp of big parties
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पटना: बिहार में वोटबैंक की सियासत का ट्रेंड बदल रहा है। बड़े दलों या गठबंधनों के समर्पित वोटबैंक में सेंध लग रही है। हाल में हुए चुनाव और उपचुनावों के परिणाम यह संकेत दे रहे हैं। कुछ साल पहले की तरह अब कोई यह दावा नहीं कर सकता कि खास समुदाय उसका समर्थक है और उसका एकमुश्त वोट उसे ही या उसके गठबंधन को ही जाएगा।

कई जगह बदली हुई परिस्थितियां व उम्मीदवार भी परिणाम को प्रभावित कर रहे हैं। प्रमुख दलों के वोटों में सेंधमारी शुरू हो चुकी है। यह बिहार के दोनों गठबंधनों एनडीए और महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। अपेक्षाकृत नए और छोटे दलों के हस्तक्षेप से भी परिणाम प्रभावित हो रहे हैं। यह गठबंधनों को सबक है। आगे इन चुनौतियों से कारगर ढंग से निपटना होगा। गुरुवार को आए कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव के नतीजे में भी यह देखने को मिला।

भाजपा समर्थकों का दावा रहा है कि सवर्ण समाज का वोट उसे ही मिलता है। लेकिन, कुढ़नी में वीआईपी ने सवर्ण उम्मीदवार को मैदान में उतारा तो उसे दस हजार वोट मिले। साफ है कि कुढ़नी में वीआईपी को भी सवर्णों की खास जाति से अच्छा- खासा वोट मिला। इस कारण भाजपा के वोटों में कमी आई। इसी तरह महागठबंधन समर्थकों का दावा रहा है कि मुस्लिम समुदाय का एकमुश्त वोट उसे ही मिलता है। पर कुढ़नी में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को मिले 3206 वोट से भी महागठबंधन को झटका लगा है। एआईएमआईएम के कारण यहां मुस्लिम वोट बंटे।

राजद को इससे बड़ा झटका गोपालगंज उपचुनाव में लगा था। यहां भी एआईएमआईएम ने उसके वोटबैंक में सेंध लगाई। गत तीन नवंबर को गोपालगंज विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में एआईएमआईएम को 12,214 वोट मिले थे। वहीं, गोपालगंज में भाजपा उम्मीदवार ने 1794 मतों के अंतर से राजद को हराया था। गोपालगंज में एआईएम आईएम के वोट ही राजद की हार के मुख्य कारण रहे। गोपालगंज में बसपा उम्मीदवार को 8,854 वोट मिले थे।

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भी एआईएमआईएम पांच सीटें जीती थी और 24 सीटों पर महागठबंधन को भारी नुकसान पहुंचाया था। वहीं, लोजपा ने भाजपा की सरपरस्ती में अकेले चुनाव में उतरने का भ्रम फैला जदयू को नुकसान पहुंचाया था। राजद, कांग्रेस व माले एक साथ थे। वहीं, एनडीए में जदयू, भाजपा, हम और वीआईपी थी। इसी तरह वैश्य समाज का वोट आमतौर पर भाजपा के खाते में जाता रहा है। गोपालगंज में राजद ने वैश्य समाज से उम्मीदवार दिया तो इस समाज के वोट का बड़ा हिस्सा उसके खाते में चला गया। बहरहाल, बिहार में गठबंधनों को अपने सियासी गणित पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता पड़ेगी।