मां वैष्णो देवी मंदिर की ‘तीन पिंडियों’ के पीछे छिपा है चमत्कारी रहस्य, जरूर जानें

There is a miraculous secret hidden behind the 'three pindis' of Maa Vaishno Devi temple, you must know
There is a miraculous secret hidden behind the 'three pindis' of Maa Vaishno Devi temple, you must know
इस खबर को शेयर करें

हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक ‘माता वैष्णो देवी’ का मंदिर जम्मू के कटरा में स्थित है। यह मंदिर आदि शक्ति की स्वरूप ‘माता वैष्णो देवी’ को समर्पित है। उत्तर भारत में यूं तो कई पौराणिक मंदिर हैं लेकिन मां वैष्णो के इस मंदिर की महिमा सबसे अधिक देखी गई है। कटरा की ऊंची और सुंदर पहाड़ी पर बने इस मंदिर में हर साल करोड़ों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। वर्ष में दो बार चैत्र और शारदीय नवरात्रि पर इस मंदिर में श्रद्धालुओं का भारी जमावड़ा देखने को मिलता है।

माता के इस मंदिर में भक्त ‘जय माता दी’ के जयकारे लगाते हुए आते हैं। यहां भक्तों का हर्षोल्लास देखने वाला होता है। लेकिन माता के इस मंदिर का इतना महत्व क्यों है और इस मंदिर की कहानी क्या है, आइए जानते हैं-

माता वैष्णो देवी की कहानी
माता वैष्णो देवी मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है, जिसके अनुसार वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि।मी। की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे, जो कि नि:संतान थे। संतान ना होने का दुख उन्हें पल-पल सताता था। किसी ने उन्हें कहा कि अगर वे घर पर कुछ कुंवारी कन्याओं को बुलाकर उनकी पूजा करेंगे, उन्हें भोजन कराएंगे तो उन्हें संतान सुख प्राप्त होगा।

सलाह मानकर श्रीधर ने एक दिन अपने घर कुछ कुंवारी कन्याओं को बुलवाया। लेकिन उन्हीं में कन्या वेश में मां वैष्णो भी थीं, किन्तु उनकी उपस्थिति से भक्त श्रीधर अनजान था। श्रीधर ने सभी कन्याओं के पांव जल से धोए, उन्हें भोजन कराया और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हुए कन्याओं को विदा किया।

भक्त श्रीधर की कहानी
सभी कन्याएं तो चली गईं लेकिन मां वैष्णों देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं, ‘आप अपने और आसपास के गांव ले लोगों को अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ कन्या की बात सुन श्रीधर पहले तो कुछ दुविधा में पड़ गए, कि एक गरीब कैसे इतने सारे लोगों को भोजन करा सकता है लेकिन कन्या के आश्वासन पर उसने गांवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया। एक गांव से गुजरते हुए श्रीधर ने गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ को भी भोजन का निमंत्रण दे दिया।

श्रीधर के इस निमंत्रण से सभी गांव वाले अचंभित थे, वे समझ नहीं पा रहे थे कि वह कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? लेकिन निमंत्रण के अनुसार सभी एक-एक करके श्रीधर के घर में एकत्रित हुए। अब सभी आ तो गए लेकिन उन्हें भोजन कराने के लिए श्रीधर के पास कुछ नहीं था। तभी माता वेश में आई कन्या ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया।

जब आए भैरोनाथ
भोजन परोसते हुए जब वह कन्या बाबा भैरवनाथ के पास गई तो उसने कन्या से वैष्णव खाने की बजाय मांस भक्षण और मदिरापान का अनुरोध किया। उसकी यह मांग सुन सभी चकित रह गए, वैष्णव भंडारे में मांसाहार भोजन का होना असंभव है। किंतु भैरवनाथ तो हठ करके बैठ गया और कहने लगा कि वह तो मांसाहार भोजन ही खाएगा, अन्यथा श्रीधर उसके श्राप का भोगी बन सकता है।

इस बीच कन्या रूप में आई माता समझ चुकी थी कि भैरवनाथ छल-कपट से श्रीधर के भंडारे को नष्ट करना चाहता है, उधर भैरवनाथ भी जान चुका था कि यह कोई साधारण कन्या नहीं हैं। तत्पश्चात भैरवनाथ ने देवी को पकड़ना चाहा लेकिन देवी तुरंत वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरवनाथ भी उनके पीछे-पीछे गया।

देवी नी ली हनुमानजी की मदद
कहते हैं जब मां पहाड़ी की एक गुफा के पास पहुंचीं तो उन्होंने हनुमानजी को बुलाया और उनसे अनुरोध किया कि अगले नौ माह तक किसी भी प्रक्रार से भैरवनाथ को व्यस्त रखें और देवी की रक्षा करें। आज्ञानुसार नौ माह तक हनुमान माता की रक्षा के लिए भैरवनाथ के साथ इस गुफा के बाहर थे। पौराणिक तथ्यों के अनुसार हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरवनाथ से युद्ध भी किया था, लेकिन जब वे निढाल होने लगे तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लिया और भैरवनाथ का सिर काट दिया। यह सिर भवन से 8 कि। मी। दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में जा गिरा। आज इस स्थान को भैरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है।

माता वैष्णो देवी के भक्तों के बीच यह मान्यता है कि जो कोई भी देवी के मंदिर दर्शन को जायेगा वह लौटते समय बाबा बहिरो के मंदिर भी अवश्य जायेगा, अन्यथा उसकी यात्रा असफल कहलाएगी। इसके पीछे भी एक कहानी है, कहते हैं कि अपने किए पर पछतावा होने पर भैरोनाथ ने देवी से क्षमा मांगी और बदले में देवी ने कहा कि ‘जो कोई भक्त मेरे दर्शन करने इस पवित्र अथल पर आएगा, वह तुम्हारे दर्शन भी अवश्य जरूर करेगा, अन्यथा उसकी यात्रा पूरी नहीं कहलाएगी’।

भक्त श्रीधर को मिलीं ‘तीन पिंडियां’
जिस गुफा में देवी ने तपस्या की थी उसे ‘अर्धकुंवारी गुफा’ के नाम से जाना जाता है। इस गुफा से ठीक पास ‘बाणगंगा’ है, यह वह स्थान है जहां तीर मारकर माता ने प्यासे हनुमान की प्यास बुझाई थी। वैष्णो देवी मंदिर आए भक्त इस जलधारा पर स्नान अवश्य करते हैं, यहां के जल को अमृत माना जाता है। वैष्णो देवी मंदिर के गर्भ गृह में माता की तीन पिंडियां विराजित है, कहते हैं भैरोनाथ को क्षमा देने के बाद देवी इन तीन पिंडियों में परिवर्तित हो गई थीं और हमेशा के लिए कटरा की इस पहाड़ी पर बस गईं। भक्त श्रीधर जब कन्या रूपी देवी को खोजने पहाड़ी पर आया तो वहां उसे केवल 3 पिंडियां मिलीं, उसने इन पिंडियों की विधिवत पूजा भी की। तब से श्रीधर और उनके वंशज ही मां वैष्णो देवी मंदिर की इन पिंडियों की पूजा करते आ रहे हैं।

मान्यता है कि माता के ये पिंडियां साधारण नहीं हैं, अपितु अपने भीतर चमत्कारी प्रभाव लिए हुए हैं। यह आदिशक्ति के तीन रूप हैं – पहली पिंडी ज्ञान की देवी मां महासरस्वती की है; दूसरी पिंडी धन की देवी मां महालक्ष्मी की है, और तीसरी पिंडी शक्ति स्वरूप मां महाकाली की मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त दिल से इन तीन पिंडियों के दर्शन करता है उसे ज्ञान, धन और बल, तीनों की प्राप्ति हो जाती है।