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India’s agriculture devlopment: भारत, अपनी आजादी के जश्न का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. शून्य जैसी महान खोज देने वाली हजारों साल पुरानी सभ्यता को 1947 में शून्य से शुरुआत करनी पड़ी थी. जीवन के लिए भोजन उतना ही जरूरी है जैसे सांस लेने की हवा. इसी तरह खाद्ध सुरक्षा का अर्थ होता है सभी के लिए भोजन की उपलब्धता और उसे पाने का सामर्थ्य. लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते हैं कि जब देश आजाद हुआ तो शुरुआती 2 दशकों में किस तरह भारत ने अनाज और पैदावर को लेकर कितनी बड़ी चुनौतियों का सामना किया था.
यहां बात 75 साल के भारत की विकाय यात्रा की तो अब विस्तार से चर्चा उस अनाज का जिसके बिना जीवन संभव नहीं है. यूं तो एक मुल्क की उम्र में 75 साल का अरसा कुछ भी नहीं होता. लेकिन चुनौतियों से भरे सालों में भारत ने जिस तरह फूड सिक्योरिटी को लेकर खुद को संभाला वो किसी चमत्कार से कम नहीं है.
2022 में केंद्र सरकार का बड़ा फैसला
भारत सरकार ने इसी साल जून के महीने में गेहूं (Wheat) के निर्यात पर रोक लगा दी थी. जिसकी कुछ देशों ने आलोचना की थी. अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने सरकार के इस फैसले पर चिंता जताई थी. हालांकि, भारत ने ये फैसला इसलिए लिया ताकि देश में बढ़ रही गेहूं और आटे की बढ़ती कीमत को काबू में किया जा सके.
भारत के फैसले से चिढ़ा अमेरिका
भारत के गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने से वो अमेरिका (USA) चिढ़ गया जिसने कभी भारत की तुलना भिखारियों के देश से की थी. G-7 देशों की मीटिंग में यूएस सेक्रेट्री टॉम विल्सैक ने कहा, भारत गेहूं तक पहुंच को बाधित कर रहा है. दरअसल भारत ने 13 मई को गेहूं के निर्यात पर तब रोक लगाई जब रूस-यूक्रेन जंग (Russia-Ukraine war) की वजह से पूरी दुनिया में गेहूं की सप्लाई पर बुरा असर दिखाई दिया.
‘दुनिया का पेट भरता है भारत – ये है देश की ताकत’
बताते चलें कि भारत (India) दुनिया के उन देशों में शामिल है, जो गेहूं (Wheat) का सबसे ज्यादा निर्यात करते हैं. गेहूं का सबसे ज्यादा उत्पादन भी चीन के बाद भारत में ही होता है. 2021-22 में भारत में 1,113 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ है. लेकिन बहुत से लोग यह नहीं जानते होंगे, भारत कभी गेहूं के लिए अमेरिकी दया पर निर्भर था. साल 1965 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के समय अमेरिका ने भारत को गेहूं न देने की धमकी दी थी. इतना ही नहीं अपनी ताकत के घमंड में चूर अमेरिका (US) ने एक बार भारत को ‘भिखारियों’ का देश भी कह के बुलाया था.
पेट भरने के लिए अमेरिका से समझौता
1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था. दरअसल तब लचर मॉनसून (Monsoon) के कारण अनाज उत्पादन में लगातार गिरावट थी. साल 1964 और सन 1965 में सूखा पड़ चुका था. ऐसे में लोगों को रोटी की दिक्कत न हो इसलिए लाल बहादुर शास्त्री ने सबसे पहले देश का कृषि बजट बढ़ाते हुए तब के कृषि मंत्री सी.सुब्रह्मण्यम को कृषि सुधार के काम में लगाया. फिर देश में उन्नत किस्म के बीजों के उत्पादन के लिए भारतीय बीज निगम की स्थापना हुई. आगे चलकर ये एक क्रांतिकारी फैसला साबित हुआ.
वहीं दूसरी ओर सुब्रह्मण्यम ने अमेरिका जाकर राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन से मुलाकात की. इस मुलाकात में अमेरिका-भारत के बीच एक समझौता हुआ. जिसके तहत, अमेरिका भारत को लंबी अवधि और कम ब्जाय दर पर कई कर्ज दिए और गेहूं की आपूर्ति करने पर राजी हुआ. इस तरह से अमेरिका से गेहूं मिलने पर भारत को खाद्यान्न समस्या से तात्कालिक राहत मिली थी.
दाने-दाने की किल्लत
1965 और 1966 में भारत ने अमेरिका से पब्लिक लोन स्कीम के तहत डेढ़ करोड़ टन गेहूं का आयात किया. इसे समझौते को PL480 के नाम से जाना जाता है. इस अनाज से करीब 4 करोड़ हिंदुस्तानियों की भूख मिटाई जा सकी थी. तब अमेरिका के कृषि विभाग ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत का मजाक उड़ाते हुए लिखा था कि हिंदुस्तान भिखारियों और निराश्रितों का मुल्क है.
‘पाकिस्तान का तोड़ा घमंड- जय जवान-जय किसान’
5 अगस्त 1965 को जब 30 हजार पाकिस्तानी सैनिक LoC पार कर कश्मीर (Kashmir) में आ धमके तो दवाबी कार्रवाई में भारत की सेना, लाहौर तक घुस गई. तब जहां जो दिखा उसे भारतीय फौजियों ने वहीं सबक सिखाया. इससे घबराए तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने भारत से कहा कि युद्ध नहीं रोका, तो गेहूं की आपूर्ति रोक देंगे. शास्त्री जी स्वाभिवानी थे और उन्हें ये बात चुभ गई इसलिए उन्होंने अमेरिका की धमकी को नकार दिया. इसके कुछ ही दिन बाद दशहरे के दिन रामलीला मैदान में शास्त्री ने रैली की. इसी रैली में उन्होंने ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया. इसी रैली में शास्त्री ने देशवासियों से अपील की कि वो हफ्ते में एक वक्त का खाना खाना छोड़ दें. दरअसल वो खुद भी एक वक्त का खाना खाना छोड़ चुके थे. शास्त्री जी की अपील का असर ये हुआ कि करोड़ों हिंदुस्तानियों ने हफ्ते में एक वक्त का खाना छोड़ दिया.
अब अमेरिका भारत से लगा रहा गुहार
समय का पहिया तेजी से घूमता है. इस साल 2022 की शुरुआत में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से इंटरनेशनल मार्केट में पहले से ही गेहूं की किल्लत थी, जिसकी भरपाई भारत कर रहा था. मई, 2022 में गेहूं निर्यात पर रोक के भारत के फैसले पर यूएन (UN) में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफिल्ड ने कहा कि इससे भोजन की कमी और बढ़ जाएगी. उन्होंने कहा कि अमेरिका को उम्मीद है कि भारत गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगा.