बिहार में पैर जमाने में प्रशांत किशोर को होंगी ये 5 दिक्कतें, यहां देखें

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पटना: चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने संकेत दे दिया है कि वह अब खुद राजनीति में आ रहे हैं। हालांकि उन्होंने अभी यह क्लियर नहीं किया है कि वह फ्रंट में आकर राजनीति करेंगे या किसी चेहरे को आगे कर एक बार फिर से रणनीतिकार की भूमिका में नजर आएंगे। उम्मीद है कि 5 मई को संभावित उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन सवालों का जवाब मिल जाएगा। कांग्रेस में मन माफिक जिम्मेदारी नहीं मिलने के बाद आए प्रशांत किशोर के ट्वीट से एक बात तो साफ है कि वह फुल टाइम पॉलिटिक्स में आ रहे हैं। पीके की यह दूसरी राजनीतिक पारी होगी। करीब डेढ़ साल की पहली पारी कुछ खास नहीं रही थी, क्योंकि जेडीयू में अंदरुनी विरोध के बाद सीएम नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था।

शायद इन्हीं कड़वे अनुभव को देखते हुए इस बार प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी बनाकर अपने हिसाब से राजनीति करने का फैसला लिया है। प्रशांत फुल टाइम राजनीति में कितने सफल होंगे या क्या असर डालेंगे यह बाद का विषय है, लेकिन उससे पहले विभिन्न राजनीतिक दलों और राजनीति के जानकार लोगों ने अपने-अपने हिसाब से उनको लेकर चर्चाएं शुरू कर दी हैं।

यह बात सही है कि प्रशांत किशोर ने काफी सोच समझकर और पूरी तैयारी के साथ पॉलिटिक्स में आने का फैसला लिया होगा। जो शख्स किसी दूसरे दल या नेता की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपनी टीम के साथ महीनों तैयारियां करता रहा है, वह जब अपनी पार्टी को चुनावी राजनीति में लॉन्च करेगा तो उसकी कितनी पुख्ता तैयारी होगी। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भी अगर बिहार और देश की राजनीति पर नजर डालें तो पांच ऐसे सवाल या चुनौतियां जेहन में आते हैं जिनसे पार पाना प्रशांत किशोर के लिए आसान नहीं होगा।

पॉलिटिक्ल फेस कैसे बनेंगे प्रशांत किशोर?
प्रशांत किशोर के बिहार की पॉलिटिक्स में आने की खबर के साथ ही अनुमान लगाया जाने लगा है कि वह अरविंद केजरीवाल की तरह खुद को लॉन्च कर सकते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रशांत किशोर आम जन मानस के बीच खुद को राजनेता के रूप में कैसे पेश करेंगे। सालभर से ज्यादा चले अन्ना आंदोलन की वजह से अरविंद केजरीवाल जनता के बीच में फेस बन चुके थे। इससे पहले RTI ऐक्टिविस्ट के रूप में भी कम से कम दिल्ली के लोग अरविंद केजरीवाल को जानते समझते थे। अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के मुद्दे को आगे कर जनता के बीच गए। उन्होंने समझाया कि वह अच्छी खासी IRS की नौकरी छोड़कर पुरानी राजनीतिक सिस्टम के विकल्प के रूप में आए हैं।

इसके अलावा लंबे समय से बिहार की पॉलिटिक्स की केंद्र बिंदु में बने रहने वाले लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, स्व. रामविलास पासवान सरीखे नेता भी जयप्रकाश नारायण की छात्र क्रांति से निकले हुए नेता हैं। यानी ये सभी लोग राजनीति में आने से पहले जनता के बीच में लीडर के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। यहां यह भी समझने की जरूरत है कि बीजेपी आज भले ही बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन आज भी एक सर्वमान्य राजनीतिक चेहरे की खोज में लगी है। वहीं प्रशांत किशोर का ऐसा कुछ भी इतिहास नहीं है जिसके जरिए वह खुद को जनता के बीच प्रजेंट कर सकें। पीके अब तक केवल पैसे लेकर राजनीतिक दलों के लिए चुनाव मैनजमेंट करते रहे हैं।

जनता का साथ पाने के लिए प्रशांत किशोर के मुद्दे क्या होंगे?
चुनावी राजनीति में जनता का साथ पाने के लिए ठोस मुद्दे होना जरूरी है। लालू प्रसाद यादव ने सामाजिक न्याय के मुद्दे पर 15 साल बिहार में राज किया। नीतीश कुमार सामाजिक न्याय, गुड लॉ एंड ऑर्डर के साथ विकास और सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के मद्दों को आगे कर करीब 17 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले हुए हैं। लालू यादव की राजनीतिक विरासत संभाल रहे तेजस्वी यादव ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी के मुद्दे को आगे किया और बिहार की पॉलिटिक्स में खुद को साबित करने में सफल रहे। बीजेपी राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, गुड गर्वनेंस और विकास के मुद्दों पर राजनीति करती हैं। प्रशांत किशोर के सामने चुनौती यही होगी कि उनके राजनीतिक दल के मुद्दे क्या होंगे।

प्रशांत के पास जातीय समीकरण का क्या है काट?
भारतीय राजनीति और खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश सरीखे राज्य में जाति को नकारा नहीं जा सकता है। लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार को यादव और मुस्लिम का फुल सपोर्ट है। 90 के दशक में दलितों और कुछ-कुछ उच्च जाति के कुछ वर्गों का सपोर्ट होने के चलते लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी 15 साल सत्ता में रहे। लालू-राबड़ी राज में सामाजिक न्याय के नाम पर उच्च जातियों में भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला और पिछड़ी में बनिया, कुर्मी, कोइरी, धानुक समेत कई जाति के लोगों पर खूब अत्याचार हुए। नीतीश कुमार और बीजेपी की जोड़ी ने इन लोगों को लामबंद किया और सत्ता पाई। सत्ता पाने के बाद नीतीश कुमार ने महादलित कैटेगरी बनाकर समाज के बड़े तबके का विश्वास पाने में सफल हैं। वहीं प्रशांत किशोर ब्राह्मण समाज से आते हैं, जिसकी आबादी बिहार में केवल 5 फीसदी है। मौजूदा दौर में ब्राह्मण बीजेपी के साथ है। प्रशांत किशोर ऐसा क्या प्रलोभन देंगे कि ब्राह्मण बीजेपी से मोहभंग कर लेगी।