राजस्थान में ये दुश्मनी पुरानी ! राजेश पायलट से भी नहीं बनती थी अशोक गहलोत की बात

This enmity is old in Rajasthan! Ashok Gehlot's talk did not work even with Rajesh Pilot
This enmity is old in Rajasthan! Ashok Gehlot's talk did not work even with Rajesh Pilot
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जयपुर। Ashok Gehlot and Rajesh Pilot: राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट की अदावत जगजाहिर है। दोनों ही नेता एक-दूसरे पर गाहे-बगाहे निशाना साधते रहे हैं। दिल्ली में पार्टी आलाकमान मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी की मौजूदगी में हुई सुलह के बाद भी अभी मामला सुलझता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सियासी खींचतान का खेल आगे भी जारी रहेगा। सचिन पायलट सीएम बनना चाहते हैं, जबकि सीएम गहलोत कुर्सी छोड़ने के लिए तैयारी नहीं है।

जानकारों का कहना है कि अशोक गहलोत और राजेश पायलट ने एक साथ ही राजनीति में कदम रखा था। दोनों की राजीव गांधी से अच्छी बनती थी, लेकिन दोनों में छत्तीस का आंकड़ा भी था। 1993 में जोधपुर में ऐसा ही कुछ हुआ था जिससे गहलोत और पायलट के बीच कड़वाहट खुलकर सामने आ गई थी। उल्लेखनीय है कि 11 जून को राजेश पायलट की पुण्य तिथि है। सचिन पायलट हर साल 11 जून को दौसा पहुंचकर अपने पिता को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। माना जा रहा है कि अब इस साल भी सचिन पायलट अपने पिता को श्रद्धांजलि अर्पित करने दौसा जाएंगे।

केंद्र में मंत्री थे राजेश पायलट और…

राजस्थान की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि राजेश पायलट केंद्र में संचार राज्य मंत्री हुआ करते थे। उन्हें जोधपुर में मुख्य डाकघर के एक भवन का उद्घाटन करना था। उस समय अशोक गहलोत जोधपुर से सांसद थे और दोनों दोनों की एक ही पार्टी कांग्रेस में थे, फिर भी गहलोत को कार्यक्रम का न्योता नहीं भेजा गया था। गहलोत को न देख कार्यक्रम में पहुंचे उनके समर्थक नाराज हो गए। उन्होंने सीधे पायलट से ही पूछ लिया कि हमारे सांसद कहां हैं, कहीं दिख नहीं रहे हैं। इस पर राजेश पायलट ने कटाक्ष किया था कि यहीं कहीं होंगे बेचारे गहलोत। दोनों एक राज्य से थे और तमाम समानताओं के बाद भी शायद एक दूसरे की सफलता खटकती थी। 1993 में ही गहलोत से मंत्री पद ले लिया गया था और पायलट का जलवा जारी था।

गहलोत को मिलता रहा वफादारी का इनाम

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गांधी परिवार के वफादार होने का गहलोत को हमेशा इनाम मिलता रहा है। वह इंदिरा गांधी की सरकार से लेकर राजीव गांधी और बाद में सोनिया गांधी के समय में सत्ता का स्वाद चखते रहे। गांधी परिवार उन पर आंख मूंदकर भरोसा करता आया है, लेकिन 1993 का दौर ऐसा था जब सोनिया गांधी सक्रिय नहीं थीं और गहलोत हाशिए पर चले गए थे। दूसरी तरफ पायलट का कद बढ़ रहा था। हालांकि ‘जादूगर’ ने मौका मिलते ही खेल दिखाया और आगे चलकर राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गए। 1998 के बाद तो जैसे गहलोत की लॉटरी लग गई। सोनिया गांधी सक्रिय हुईं और गहलोत का कद बढ़ने लगा।

11 जून को राजेश पायलट की पुण्यतिथि

उल्लेखनीय है कि 11 जून के राजेश पायलट की पुण्य तिथि है। सचिन पायलट हर साल 11 जून को दौसा पहुंचकर अपने पिता को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। माना जा रहा है कि अब इस साल भी सचिन पायलट अपने पिता को श्रद्धांजलि अर्पित करने दौसा जाएंगे। इसी बीच कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है सचिन पायलट बड़ी घोषणा कर सकते हैं। इस बड़ी घोषणा में सचिन पायलट की नई पार्टी को लेकर भी अटकलें हैं। हर साल राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर सचिन पायलट दौसा में शक्ति प्रदर्शन करते रहे हैं। माना जा रहा है कि 11 जून को सचिन पायलट शक्ति प्रदर्शन कर सकते हैं।