तकलीफ में जोर-जोर से चीखते हैं पेड़-पौधे, निकालते हैं अल्ट्रासोनिक साउंड ताकि कोई मदद के लिए आए, स्टडी में बड़ा दावा

Trees and plants scream loudly in distress, emit ultrasonic sound so that someone comes for help, big claim in the study
Trees and plants scream loudly in distress, emit ultrasonic sound so that someone comes for help, big claim in the study
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नई दिल्ली: आप गार्डनिंग के शौकीन हैं और खूब पौधे लगा रखे हों तो अच्छी बात है, लेकिन अगर आप उनका खयाल न रख रहे हों तो गार्डन में कुछ अलग ही चल रहा होगा. पानी की कमी, या तेज धूप से मुरझाते पौधे अल्ट्रासोनिक आवाज निकालते हैं. ये एक तरह की चीख होती है, जो जख्मी या परेशान इंसान से मिलती-जुलती है. वैज्ञानिक जर्नल ‘सेल’ में गुरुवार को प्रकाशित हुई एक स्टडी में ये दावा किया गया.

साइलेंट नहीं हैं पेड़-पौधे
‘साउंड एमिटेड बाय प्लांट्स अंडर स्ट्रेस’- नाम से आई स्टडी में कहा गया कि वैसे तो सारे ही पौधे अलग-अलग तरह की आवाजें निकालते हैं. इन्हें समझकर ये जाना जा सकता है कि पौधा किस हालत में है, वो खुश है या परेशान है. वैसे तो पौधों को अब तक साइलेंट माना जाता रहा, लेकिन अब इस स्टडी के बाद एक नया सिरा निकलकर आया है, जो प्लांट किंगडम की मदद कर सकेगा.

इस तरह से हुआ अध्ययन
स्टडी के लिए टमाटर और तंबाकू के पौधों को ग्रीनहाउस में उगाया गया. इसमें अलग-अलग पौधों को अलग तरह का ट्रीटमेंट मिला. किसी को पानी मिला, बढ़िया देखभाल मिली. वहीं कुछ पौधों को पानी नहीं दिया गया, और तराशते हुए उनकी पत्तियों को चोट पहुंचाई गई. इन पौधों में मिट्टी भी पूरी जांच के बाद डाली गई, जिसमें ये पक्का किया गया कि मिट्टी में किसी तरह के जीव न हों, जो आवाज निकालते हों. साउंड को पकड़ने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली गई. इस दौरान पाया गया कि अलग हालात में पौधे अलग तरह की आवाजें निकालते हैं, जो खुशी में चहकने, या दर्द में चीखने की हो सकती हैं. एक औसत पौधा एक घंटे में एक बार आवाज करता है, जबकि स्ट्रेस में आए पौधे 13 से 40 बार चटखने या चीखने जैसी आवाज निकालते हैं.

दो दिनों के भीतर ही मदद के लिए पुकारने लगते हैं
सेल में छपे पेपर में दावा किया गया कि जिन पौधों को रोजाना पानी की जरूरत होती है, अगर दो दिन भी उन्हें सींचा न जाए तो वे जोर-जोर से रोने लगते हैं. ये आवाजें पांचवे दिन बहुत तेज हो जाती हैं, जो आसपास के दूसरे पौधे भी सुनते और रिएक्शन देते हैं. उनकी पत्तियां उस कमजोर-सूखे पेड़ की तरफ झुकने लगती हैं. ये एक तरह से तसल्ली देने की तरह है. ठीक वैसे ही जैसे इंसान एक-दूसरे को देते हैं.

मदद के लिए आगे आते हैं दूसरे जीव
पेड़ों की ये चीख उनकी बिरादरी ही नहीं, दूसरे जीव-जंतुओं तक भी पहुंचती है, जैसे गिलहरी या चमगादड़ों, या चूहों तक. वे कोशिश करते हैं कि पौधों को थोड़ा आराम मिल सके. इसके लिए कोशिश भी करते हैं. शोध में शामिल तेल अवीव यूनिवर्सिटी के बायोलॉजिस्ट लिहेच हेडेनी ने माना कि पौधों पर पलने वाली बहुत सी स्पीशीज उनकी मदद करने का प्रयास करती हैं, भले ही उसका असर हो, या न हो. ये आवाज किस तरह से निकलती है, इसका कारण वैज्ञानिकों को भी स्पष्ट नहीं. हो सकता है कि डीहाइड्रेट हो रहे पौधे में पानी के चैंबर टूटने लगते हों, जिससे एयर बबल बनते हों और आवाज निकलती हो. इस प्रोसेस को कैविटेशन कहते हैं. लेकिन इसकी कुछ और वजह भी सकती है.

हम क्यों नहीं सुन पाते आवाजें
इंसान ज्यादा से ज्यादा 20 किलो हर्ट्ज की आवाज सुन सकता है. बचपन में ये आवृत्ति इस रेंज तक रहती है, लेकिन उम्र के साथ कम होती जाती है. 20 से ऊपर की आवृति को अल्ट्रासोनिक साउंड की श्रेणी में रखा जाता है. डीहाइड्रेशन का शिकार हो चुके पौधे 40 से 80 किलोहर्ट्ज की आवाजें निकालते हैं. ये हमारे सुन सकने के हिसाब से काफी ऊंची आवृत्ति है इसलिए ही हमें सुनाई नहीं दे पाता.

कितनी आवाजें सुन सकते हैं इंसानी कान
ज्यादातर अध्ययनों में माना गया कि हमारे लिए 60 डेसिबल तक की आवाज सामान्य है, इससे ज्यादा आवाज से कान के परदों पर असर हो सकता है. हम जो भी सुनते हैं, साइंस में उसे डेसिबल पर मापा जाता है. पत्तों के गिरने या सांसों की आवाज को 10 से 30 डेसिबल के बीच रखा जाता है. ये वो आवाजें हैं, जो पूरे समय हमारे साथ होती हैं, लेकिन परेशान नहीं करतीं.

क्या है अल्ट्रासोनिक साउंड
ये साउंड का कोई अलग प्रकार नहीं है, बल्कि एक सामान्य आवाज ही है, लेकिन ये इतनी हाई फ्रीक्वेंसी का होता है, जो हमारे सुनने की रेंज से बाहर है. ये ध्वनि कुत्ते, चूहे और चमगादड़ों की ऑडिबल रेंज में आती है.