
- होटल के कमरे में घुसते ही चीखने लगा प्रेमी जोड़ा, स्टाफ पहुंचा तो खिसक गई पैरों तले जमीन - December 10, 2023
- वसुंधरा ने फिर किया शक्ति-प्रदर्शन, 13 विधायक पहुंचे मिलने, मच गई खलबली - December 10, 2023
- अभी अभीः कैलाश विजयवर्गीय ने की शिवराज से मुलाकात, दिया फूलों का गुलदस्ता, मच गई खलबली - December 10, 2023
नागौर. राजस्थान के नागौर जिले की एक शादी बेहद चर्चा में है, जहां तीन मामा ने भांजी की शादी में 3 करोड़ 21 लाख रुपये खर्च किए. साथ अपनी बहन को रुपयों से सजी ओढ़नी ओढ़ाई.यह शादी पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है. यह मामला जिले के जायल क्षेत्र के झाड़ेली गांव का है.
यहां रहने वाली घेवरी देवी और भंवरलाल पोटलिया की बेटी अनुष्का की बुधवार को शादी हुई. इस दौरान अनुष्का के नाना बुरड़ी गांव निवासी भंवरलाल गरवा अपने तीनों बेटे हरेंद्र, रामेश्वर और राजेंद्र के साथ करोड़ों रुपये का मायरा लेकर पहुंचे.
भांजी की शादी में भरा 3.21 करोड़ रुपये का मायरा
बहन की शादी में खर्च के लिए दादा नहीं दे रहे थे पैसे, पोते ने कर दिया कत्ल
नाना भंवरलाल गरवा ने अपनी नातिन अनुष्का को 81 लाख रुपये कैश, नागौर में रिंग रोड पर 30 लाख का प्लाट, 16 बीघा खेत, 41 तोला सोना, 3 किलो चांदी, एक नया ट्रैक्टर-ट्रॉली धान से भरी हुई और एक स्कूटी दी है. घेवरी देवी ने जब अपने पिता और भाइयों के इस सम्मान को देखा, तो आंसू आ गए.
दरअसल, राजस्थान में बहन के बच्चों की शादी पर ननिहाल पक्ष की तरफ से मायरा भरने की प्रथा है. सामान्य तौर पर इसे भात भरना भी कहा जाता है. इस रस्म में ननिहाल पक्ष की तरफ से बहन के बच्चों के लिए कपड़े, गहने, रुपये और अन्य सामान दिया जाता है. इसमें बहन के ससुराल पक्ष के लोगों के लिए भी कपड़े और जेवरात आदी होते हैं.
घेवरी देवी के पिता भंवरलाल का कहना है कि उसके पास करीब 350 बीघा उपजाऊ जमीन है. उनके उसके तीन बेटे हरेंद्र, रामेश्वर और राजेंद्र और घेवरी की इकलौती की बेटी हैं, जो उसको ईश्वर ने एक बड़ा उपहार है. बहन बेटी और बहू से बढ़कर इस संसार में कोई बड़ा धन नहीं है.
नागौर का मायरा प्रसिद्ध
घेवरी देवी के पिता खुद अपने सिर पर रुपयों से भरकर रुपयों की थाली भरकर टेंट में पहुंचे. थाली में 81 लाख रुपये नगदी अपनी बेटी के लिए 500 रुपये से सजी ओढ़नी भी थी. साथ में 16 बीघा खेती के लिए जमीन नागौर शहर में रिंग रोड के ऊपर 30 लाख की लागत का एक प्लॉट 41 तोला सोना और 3 किलो चांदी के गहने दिए.
इसके अलावा और अनाज की बोरियों से भरी हुई एकदम नया ट्रैक्टर ट्रॉली और स्कूटी के कई गिफ्ट दिए. यह मायरा चर्चा का विषय बन गया. समाज और पंच-पटेलों की मौजूदगी में ननिहाल पक्ष की ओर से जमीन के सारे डॉक्यूमेंट्स बेटी के परिवार को दिए गए.
नागौर के मायरा के मायने
नागौर के मायरा को बेहद सम्मान की नजर से देखा जाता है. बजुर्गों का कहना है कि मुगल शासन के दौरान के यहां के खिंयाला और जायल के जाटों द्वारा लिछमा गुजरी को अपनी बहन मान कर भरे गए मायरा को तो महिलाएं लोक गीतों में भी गाती हैं. कहा जाता है कि यहां के धर्माराम जाट और गोपालराम जाट मुगल शासन में बादशाह के लिए टैक्स कलेक्शन कर दिल्ली दरबार में ले जाकर जमा करने का काम करते थे.
नरसी भगत के जीवन से हुई थी मायरे की शुरुआत
मायरे की शुरुआत नरसी भगत के जीवन से हुई थी. नरसी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में आज से 600 साल पूर्व हुमायूं के शासनकाल में हुआ. नरसी जन्म से ही गूंगे-बहरे थे. वो अपनी दादी के पास रहते थे. उनका एक भाई-भाभी भी थी. भाभी का स्वभाव कड़क था.
एक संत की कृपा से नरसी की आवाज वापस आ गई तथा उनका बहरापन भी ठीक हो गया. नरसी के माता-पिता गांव की एक महामारी का शिकार हो गए. नरसी का विवाह हुआ, लेकिन छोटी उम्र में पत्नी भगवान को प्यारी हो गई. नरसी जी का दूसरा विवाह कराया गया. कुछ दिन बाद भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया. इसके बाद उन्होंने सांसारिक मोह त्याग दिया और संत बनकर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ती में रंग गए.