सहमति से सेक्स के लिए समझदारी जरूरी, उम्र नहीं

Understanding is important for consensual sex, not age
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नई दिल्ली: सहमति से सेक्स किस उम्र में किया जाए तो जेल नहीं होगी। ये सवाल गरम है। कानून कुछ और कहता है। अदालतें कुछ और सोचती हैं। समाज अपने हिसाब से आगे बढ़ता है। इस बहस के बीच स्मृति ईरानी ने साफ किया है कि सहमति से सेक्स के लिए कानूनी उम्र सीमा 18 साल ही रहेगी। संसद में सरकार की सफाई से कुछ दिनों पहले ही चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इसे पेचीदा बताते हुए सरकार से विचार का सुझाव दिया था। अभी तो वैसे भी सुप्रीम कोर्ट और सरकार के रिश्ते तल्ख हैं। स्मृति ईरानी ने प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट (2012) का हवाला दिया। बच्चों को यौन अपराध से बचाने वाले इस कानून के मुताबिक 18 साल से कम उम्र होने पर उसे नाबालिग माना जाएगा। स्मृति इरानी ने कहा कि इसे कम करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। सरकार समाज में हो रहे बदलाव के बदले घटनाओं पर फोकस करती है। उसके हिसाब से कानून बदलते हैं। निर्भया कांड को देख लीजिए। इस जघन्य रेप और मर्डर कांड में शामिल एक नाबालिग सिर्फ तीन साल बाद आजाद घूम रहा है। आज वो 27 साल का है। घटना की रात वो नाबालिग था और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत उसे राहत मिल गई। तब सरकार जगती है और 2015 में यह एक्ट बदल जाता है। अब 16 से 18 साल के बीच के लड़के पर जघन्य और गंभीर अपराधों में वयस्कों की तरह मुकदमा चल सकता है। लेकिन सहमति से सेक्स पर चुप्पी है।

स्मृति इरानी जिस समय सदन में ये बता रही थीं, उसी समय इंस्टीट्यूट ऑफ कंपीटिटिवनेस एंड सोशल प्रोग्रेस ने पीएम के आर्थिक सलाहकार परिषद को एक रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट को देख लें तो स्मृति इरानी का जवाब और सहमति से सेक्स के कानून में कोई तालमेल नहीं दिखता। इसके मुताबिक देश के 313 जिलों में 20 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं की शादी 18 साल से पहले हुई है। जब शादी हुई तो सेक्स सामान्य है। इस पर न हम सवाल उठा सकते हैं और न ही किसी को उठाना चाहिए। हां, बाल विवाह रोकने में सफलता क्यों नहीं मिल रही है, इसकी समीक्षा होनी चाहिए। सरकार ने लड़कियों को लड़कों के बराबर अधिकार देने के लिए पिछले साल एक और कानून में संशोधन किया। बाल विवाह निषेध कानून 2006 को बदला गया। अब लड़को की तरह की लड़कियों की शादी की उम्र भी 21 साल कर दी गई है। मुझे लगता है हम कानून बनाने में ही आगे बढ़ रहे हैं, समाज की जटिलताओं को समझने में नहीं।

अदालत के दो फैसले देखते हैं। पहला, निर्भया कांड के ठीक एक साल बाद दिल्ली के ही एक कोर्ट का है। इसमें 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सेक्स को पोक्सो एक्ट के तहत अपराध मानने से कोर्ट ने इनकार कर दिया। जब महिला आयोग ने दलील दी कि पॉक्सो एक्ट के तहत नाबालिग किसी तरह के सेक्सुअल रिलेशनशिप में नहीं रह सकते तो जज धर्मेश शर्मा ने टिप्पणी की – अगर इसको मान लिया जाए तो मतलब होगा 18 साल से कम उम्र के सभी लोगों का शरीर सरकार की संपत्ति है और 18 साल से कम उम्र वालों को अपने शरीर से सुख प्राप्त करने का अधिकार ही नहीं है। उसके बाद न जाने कितने ऐसे मौके आए हैं जब अदालत में पॉक्सो एक्ट नहीं टिक सका और सहमति के मामलों में आरोपियों के खिलाफ कोर्ट ने दरियादिली दिखाई। या कहें न्याय दिया। ताजा फैसला इसी साल नवंबर का है। मुंबई हाई कोर्ट ने 22 साल के व्यक्ति को 15 साल की लड़की से कथित रेप में राहत दी। उसे बेल दे दिया। लड़की ने भरी अदालत में कहा कि वो आरोपी से प्यार करती है।

फूलमनी देवी की कहानी
ये कई मेडिकल रिसर्च से साबित हो चुका है कि भारत में लड़कियों की माहवारी की उम्र घट चुकी है। खास तौर पर शहरों में। 10 से 12 साल की लड़कियों में माहवारी की शुरुआत हो जाती है। लड़कियां को सेक्स की समझ पहले हो जाती है। हमारे देश में पारंपरिक तौर पर शादी को ही सेक्स का लाइसेंस समझा जाता है। शादी से इतर या शादी से पहले कलंक। पर, अब तो सेक्स के बिना कोई वेब सीरीज भी आगे नहीं बढ़ पाती है। महानगर ही नहीं छोटे शहरों में युवाओं के बीच सहमति से सेक्स कितना स्वीकार्य है, ये समझा मुश्किल नहीं है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में 40 परसेंट महिलाओं ने माना कि 18 से पहले ही वो सेक्स कर चुकी थीं। 95 प्रतिशत लड़कियों को पता है कि सेक्स के दुष्परिणाम से बचने के लिए गर्भनिरोधक का कौन सा तरीका अपनाया जाए।

अब समझते हैं कि आखिर अपने देश में शादी के लिए कानूनी उम्र सीमा क्यों बनानी पड़ी? सबसे पहले 19 मार्च 1891 में ब्रिटिश राज में कानून बना। एज ऑफ कंसेंट एक्ट। उस साल फूलमनी देवी की शादी 10 या 12 साल की उम्र में हुई थी। पति 35 साल का था। उसने जबरन सेक्स की कोशिश की और फूलमनी की मौत हो गई। कानून के तहत शादी या बिना शादी के भी सेक्स के लिए 12 साल की उम्र सीमा तय की गई। जो बढ़ते बढ़ते 18 तक पहुंच गया।

कब-कब बढ़ी उम्र
1891- 12 साल
1925- अविवाहितों के लिए 14 साल, विवाहितों के लिए 13 साल
1940- शादी के बाहर 16 साल, शादीशुदा के लिए 15 साल
2012- सभी तरह के लोगों के लिए 18 साल। यानी लड़कियों की शादी और सेक्स दोनों के लिए उम्र सीमा एक हो गई।

अब हम प्रगतिशील समाज में कितने पीछे होते गए वो इस टाइमलाइन से पता चलता है। इस दौरान सिर्फ हमने सिर्फ उन घटनाओं को तवज्जो दी जो किसी भी सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा है। सरकार ने कुंठा और कलंक की तह में जाकर सामाजिक बुराइयों को दूरी करने की कोशिश नहीं की। 2012 तक हम पीछे चलते गए और शादी की उम्र को ही सेक्स की सहमति का कट ऑफ बना डाला। फिर 2021 में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र भी 21 साल हो गई। यानी 18 से 21 के बीच तीन साल का वो पीरियड जिसमें सहमति से सेक्स कानूनी है। ये अजीब है और प्रगतिशील तो कतई नहीं। अगर हम वैश्विक गांव में रहते हैं तो ये कैसे हो सकता है कि किसी देश में सेक्स के लिए उम्रसीमा 11 हो और कहीं 21 हो। हां, स्थानीय परिस्थितियां देखी जानी चाहिए लेकिन फासला इतना बड़ा नहीं हो सकता।

नाइजीरिया में सेक्स की सीमा 11 है और बहरीन में 21 साल। अमेरिका के कई राज्यों में 16 की सीमा है। हालांकि यहां सीमा से मतलब सहमति की उम्र सीमा नहीं है। सहमति से सेक्स कोर्ट की नजर में अपराध नहीं है। अपने यहां चीफ जस्टिस से पहले मद्रास हाईकोर्ट भी इसे कम करने की सलाह दे चुका है। पॉक्सो एक्ट के तहत 94 प्रतिशत मामले रोमांस के होते हैं और सजा नहीं होती है। 88 फीसदी मामलों में पीड़िता ही रिलेशनशिप की बात स्वीकार करती है और 82 परसेंट तो गवाही देने से ही मना कर देती हैं। फिर प्यार पर पहरा देने से क्या फायदा।