यूपी में टिकट बंटवारे को लेकर अखिलेश ने बनाया खास प्लान, मायावती का वोटबैंक होगा टारगेट

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में मौसम का मिजाज जैसे-जैसे बदल रहा है वैसे-वैसे 2022 के विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश भी बढ़ती जा रही है. सूबे में 22 फीसदी दलित वोटों के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव इस बार मायावती की बसपा जैसी पार्टियों का सहारा लेने के बजाय खुद ‘आत्मनिर्भर’ बनने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. बसपा के दलित नेताओं को अखिलेश अपने खेमे में मिलाने के बाद अब उन्होंने सूबे की करीब 45 सीटों पर मायावती के हार्डकोर जाटव वोट में सेंधमारी के लिए खास प्लान बनाया है.

मिशन-2022 पर निकले सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने सियासी जनाधार को वापस लाने के साथ-साथ बसपा के दलित कोर वोटबैंक को भी साधने में जुटे हैं. अखिलेश यादव ने रथ पर मुलायम और लोहिया के साथ-साथ बाबा साहब अंबेडकर की भी तस्वीर लगा रखी है, जिसका सीधा मकसद दलित समाज को संदेश देना है. साथ ही सपा सूबे में गांव-गांव दलित संवाद भी कर रही है.

45 सीट पर जाटव समाज को टिकट देगी सपा

यूपी में ओबीसी समुदाय के बाद दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी 22 फीसदी वाले दलित समुदाय की है, जो चुनाव में किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है. यूपी की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 85 सीटें अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित तो 2 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए रिजर्व हैं. सपा ने इन दलित आरक्षित सीटों पर जीत के लिए बसपा नेताओं पर भरोसा जताने और मायावती के वोटबैंक में सेंधमारी की तैयारी की है.

सूत्रों की मानें तो 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने 85 दलित आरक्षित सीटों में से करीब 45 सीटों पर जाटव समाज के कैंडिडेट उतारने की तैयारी की है. जाटव के बाद सपा दूसरे नंबर पासी समुदाय को अहमियत देगी, जिन्हें करीब डेढ़ दर्जन सीटों पर प्रत्याशी बनाया जा सकता है. साथ ही बाकी बची सीटों पर गैर-जाटव दलित जातियों से आने वाले नेताओं को सपा ने टिकट देने की रणनीति बनाई है.

यूपी में दलितों को जोड़ने का सपा का प्लान

वहीं, इससे पहले तक सपा सुरक्षित सीटों पर गैर-जाटव दलित जातियों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिया करती थी, लेकिन इस बार रणनीति बदली है. अखिलेश यादव की नजर मायावती के हार्डकोर जाटव वोटों पर है, जिन्हें अपने पाले में लाने और उनका भरोसा जीतने की रणनीति के तहत उन्होंने प्लान में बदलाव किया है. अखिलेश ‘नई सपा, नई हवा’ के नारे से यह बताने का काम कर रहे हैं कि यह मुलायम सिंह यादव के दौर वाली सपा नहीं बल्कि नई सपा है, जिसमें जाटवों को भी खास तवज्जो दी जाएगी.

बसपा से गठबंधन टूटने के बाद सपा यूपी में दलित वोटों को साधने में जुट गई थी. दलित वोटों के लिए सपा ने पिछले दिनों आंबेडकर जयंती पर ‘दलित दिवाली’ मनाने की अपील की थी और ‘बाबा साहेब वाहिनी’ बनाने का ऐलान भी किया था. यह दिखाता है कि इस बार दलित वोटों के लिए अखिलेश खुद मैदान में उतरकर मोर्चा संभाल रहे हैं.

बसपा के दिग्गज नेता साइकिल पर सवार

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से करीब 3 दर्जन बड़े बसपा नेताओं ने मायावती का साथ छोड़कर सपा प्रमुख अखिलेश यादव की साइकिल पर सवार हुए हैं. बसपा के दिग्गज दलित नेताओं में इंद्रजीत सरोज, कमलकांत गौतम, आरके चौधरी, भूरेलाल, त्रिभुवन दत्त, राम सागर अकेला, डा. बलीराम, वीर सिंह, योगेश वर्मा और मिठाई लाल जैसे दिग्गज नेता सपा का दामन थाम चुके हैं. ये बसपा के वो नेता हैं, जिन्होंने अपना सियासी सफर कांशीराम के साथ शुरू किया था और अपने क्षेत्र में ताकत रखते हैं.

यूपी की सियासत में दलित राजनीति

बता दें कि यूपी में दलित आबादी 22 फीसदी के करीब है. सूबे का यह दलित वोटबैंक जाटव और गैर-जाटव के बीच बंटा हुआ है. 22 फीसदी कुल दलित समुदाय में सबसे बड़ी संख्या 12 फीसदी जाटवों की है और 10 फीसदी गैर-जाटव दलित की है. यूपी में दलितों की कुल 66 उपजातियां हैं, जिनमें 55 ऐसी उपजातियां हैं, जो संख्या में ज्यादा नहीं हैं. दलितों में 56 फीसदी जाटव के अलावा दलितों की अन्य जो उपजातियां हैं, उनकी संख्या 46 फीसदी के करीब है. पासी 16 फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसदी और गोंड, धानुक और खटीक करीब 5 फीसदी हैं.

उत्तर प्रदेश में 42 ऐसे जिलें हैं, जहां दलितों की संख्या 20 फीसदी से अधिक है. सूबे में सबसे ज्यादा दलित आबादी सोनभद्र में 42 फीसदी, कौशांबी में 36 फीसदी, सीतापुर में 31 फीसदी है, बिजनौर-बाराबंकी में 25-25 फीसदी हैं. इसके अलावा सहारनपुर, बुलंदशहर, मेरठ, अंबेडकरनगर, जौनपुर में दलित समुदाय निर्णायक भूमिका में है. यूपी में 17 लोकसभा और 85 विधानसभा सीटें दलित समुदाय के लिए रिजर्व हैं.