यूपी में बड़े फर्जीवाड़े का भंडाफोड़,26 वर्ष बाद पकड़ में आए फर्जी शिक्षक, ऐसे खुला राज

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गाजीपुर बीएसए पत्र भेजकर बताते हैं कि उनके यहां तैनात शिक्षक के पैन संख्या का सिद्धार्थनगर का भी एक शिक्षक उपयोग कर रहा है। संदिग्धता की जांच पर पर्दाफाश हुआ कि गाजीपुर के शिक्षक के शैक्षणिक अभिलेख पर ही यहां भी 26 वर्षों से एक व्यक्ति अध्यापक की नौकरी कर रहा था। ऐसा सिर्फ एक मामला नहीं है, फर्जी अध्यापकों में कोई 24 वर्ष से तो कोई 10 और 11 वर्ष से नौकरी कर वेतन उठा रहा था, जो अब पकड़ में आ गए हैं। इससे बेसिक शिक्षा विभाग के सत्यापन प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद ब्लॉक के चकतरफिया उच्च प्राथमिक विद्यालय में तैनात अध्यापक विंध्याचल राम के शैक्षिक एवं अन्य दस्तावेजों के आधार पर ही सिद्धार्थनगर जिले में भी 31 मार्च 1995 को विंध्याचल राम की जोगिया ब्लॉक के कोइलीघाट प्राथमिक विद्यालय पर सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति हुई। 26 वर्ष की नौकरी के दौरान उसकी प्रोन्नति भी हुई और वह इसी ब्लॉक के सबुई प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक पद पर वर्तमान में तैनात रहा। पैन नंबर के मिलान के बाद हुए खुलासे के बाद इसकी बर्खास्तगी हुई।

इसी तरह बस्ती जिले के सल्टौआ ब्लॉक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय करमा पाठक में तैनात मोहनलाल के शैक्षिक दस्तावेजों का फर्जी तरीके से इस्तेमाल कर यहां भी एक मोहनलाल 24 वर्ष से नौकरी करता रहा। फर्जी मोहनलाल को पहले 11 सितंबर 1997 को इटवा के प्राथमिक विद्यालय सौरहवाग्रांट में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त किया गया और फिर प्रोन्नति कर बढ़नी ब्लॉक के नजरगढ़वा प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक बनाया गया था। बस्ती के वास्तविक शिक्षक मोहनलाल के पैन नंबर दो जगह प्रदर्शित होने के कारण उनका वेतन रोक दिया गया। उसके बाद उन्होंने यहां शिकायत की, तब जाकर हुई जांच में फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ और फर्जी मोहनलाल की बर्खास्तगी हुई।

ऐसे ही जौनपुर में तैनात शिक्षक बृजेश कुमार सिंह के दस्तावेज पर यहां 2010 में फर्जी बृजेश कुमार सिंह की बढ़नी ब्लॉक में नियुक्ति हुई। भदोही के शिक्षक जयप्रकाश के नाम पर 2009 में बढ़नी ब्लॉक में ही फर्जी नियुक्ति हुई और देवरिया के शिक्षक मनीष कुमार सिंह के नाम पर 2010 में बढ़नी ब्लॉक में फर्जी नियुक्ति हुई। फर्जी अध्यापकों ने प्रोन्नति भी पाई थी।

बीएसए देवेंद्र कुमार पांडेय ने बताया कि फर्जी शिक्षकों के मामले में केस दर्ज कराकर कार्रवाई की जाएगी। बर्खास्त शिक्षकों के खिलाफ रिकवरी की कार्रवाई भी होगी। शिक्षकों की जांच में फर्जी तरीके से नियुक्ति पाने वाले अन्य शिक्षकों की भी तलाश की जाएगी।

विभाग की कार्यशैली पर उठ रहे सवाल
सवाल यह है कि जिले में तैनात शिक्षक के पैन नंबर का दूसरे जिले में हो रहे इस्तेमाल के मामले को यहां के जिम्मेदार क्यों नहीं पकड़ सके। जल्द बर्खास्त हुए सभी छह फर्जी शिक्षकों के मामले में दूसरे जिले के अधिकारियों ने ही फर्जी दस्तावेज एवं पैन नंबर को इस्तेमाल करने की शिकायत की। तब जाकर यहां के जिम्मेदार जागे और जांच कराई। 26 वर्ष में कभी यहां के जिम्मेदारों की आंख नहीं खुलीं और फर्जी अध्यापक वेतन उठाते रहे। अगर दूसरे जिले से शिकायत नहीं मिलती तो शायद फर्जी अध्यापक सेवानिवृत्त भी हो जाते और विभाग को उनके फर्जीवाड़े का पता नहीं चल पाता।

पहले नहीं होता था पैन नंबर का इस्तेमाल
फर्जी अध्यापकों की नियुक्ति के समय वर्ष 1995 से 2010 तक के बीच पैन नंबर का इस्तेमाल करने का प्रचलन नहीं रहा। इस लिए इन अध्यापकों का फर्जीवाड़ा छिपा रहा। अब जब वर्तमान में आधार एवं पैन नंबर का इस्तेमाल हो रहा है तो इस तरह के पुराने मामलों का पर्दाफाश होता जा रहा है। बेसिक शिक्षा विभाग में नियुक्ति की प्रक्रिया भी अन्य विभागों से हटकर है। जहां अन्य विभागों में शैक्षिक दस्तावेज एवं पुलिस सत्यापन के बाद ही नियुक्ति होती है। वहीं बीएसए में नियुक्ति के बाद सत्यापन की प्रक्रिया पूरी की जाती है और बाद सिर्फ शिकायत पर ही सत्यापन अथवा जांच होती है।

अभी और भी शिक्षक हैं जांच के दायरे में
शिक्षकों के नियुक्ति में फर्जीवाड़े के पर्दाफाश का सिलसिले अभी थमा नहीं है, विभागीय सूत्रों के अनुसार, जल्द ही कुछ अन्य शिक्षकों पर भी कार्रवाई हो सकती है। इनके भी मामले में दूसरे जनपदों से फर्जी शैक्षिक अभिलेख एवं पैन नंबर आदि दस्तावेजों का इस्तेमाल करने की शिकायत की गई है। विभागीय जांच चल रही है और सत्यापन भी हो रहा है। मामले में आरोपित शिक्षकों का पक्ष सुनने के लिए नोटिस भी दिया गया है, लेकिन अधिकांश फर्जी शिक्षक अभिलेखों के साथ कार्यालय में उपस्थित होने नहीं होते और फरार हो जाते हैं।

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