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नई दिल्ली :हिमालय और खास तौर पर मध्य हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों को दरकते पहाड़ों और हिमस्खलन से सबसे ज्यादा खतरा है। यह खतरा ना केवल वर्तमान में बल्कि भविष्य में भी बना रहेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार यह पूरा इलाका बेहद संवेदनशील श्रेणी में आता है। हिमालय भारत में पृथ्वी पर सबसे ऊंची पर्वत शृंखला है।
यह भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों के टकराने के कारण बनी है। भारतीय प्लेट के उत्तर(चीन) की ओर बढ़ने से चट्टानों पर लगातार दबाव पड़ता है, जिससे वे भुरभुरी और कमजोर हो जाती हैं। इस वजह से भूस्खलन की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है और भूकंप का भी खतरा है। जलवायु परिवर्तन के कारण भूस्खलन और हिमस्खलन की घटनाएं न केवल बढ़ेंगी बल्कि बेमौसम कहर भी बरपाएंगी। हिमाचल, उत्तराखंड और लद्दाख भी इससे अछूते नहीं हैं। जर्नल अर्थ्स फ्यूचर में प्रकाशित एक शोध अध्ययन के अनुसार हिमाचल,उत्तराखंड और लद्दाख अब भूस्खलन की दृष्टि से बेहद खतरनाक श्रेणी में आ चुके हैं।
67% उत्तर-पश्चिम हिमालय में भूस्खलन के मामले
देश के कुल भूस्खलन के मामलों में उत्तर-पश्चिम हिमालय का योगदान 67 प्रतिशत के करीब है। हिमाचल और उत्तराखंड में हो रही भूस्खलन की घटनाओं के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय में अवैज्ञानिक निर्माण, घटते वन क्षेत्र और नदियों के पास पानी के प्रवाह को अवरुद्ध करने वाली संरचनाएं भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं का कारण बन रही हैं। सड़कों के निर्माण और चौड़ीकरण के लिए पहाड़ी ढलानों की व्यापक कटाई, सुरंगों और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए विस्फोट में वृद्धि भी भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं के मुख्य कारण हैं। विशेषज्ञों के अनुसार तलहटी में चट्टानों के कटाव और जल निकासी की उचित व्यवस्था की कमी के कारण हिमाचल व उत्तराखंड में ढलानें भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो गई।
6 पर्वत शृंखलाओं के अध्ययन से निष्कर्ष
वैज्ञानिकों ने इस भयावह स्थिति का आकलन करने के लिए हिंदू कुश, काराकोरम, पश्चिमी हिमालय, पूर्वी हिमालय, मध्य हिमालय और हेंगडुआन शान क्षेत्र में इन खतरों का विश्लेषण किया है। इसमें उन्होंने हिमालय की इन छह प्रमुख पर्वत शृंखलाओं में रहने वाले लोगों, बुनियादी ढांचे, सड़कों पर मंडराते खतरे को मापने का प्रयास किया है।
बड़े भूस्खलन की घटनाओं में 6 गुना चिंताजनक वृद्धि
एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल में 2022 में बड़े भूस्खलन की घटनाओं में 6 गुना चिंताजनक हुई। 2020 में 16 की तुलना में 2022 में 117 बड़ी भूस्खलन की घटनाएं हुईं। राज्य में 17,120 भूस्खलन के जोखिम वाले स्थल हैं, जिनमें से 675 महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और बस्तियों के करीब हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2000 से 2017 के बीच हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर और लद्दाख में 20,196 भूस्खलन की घटनाएं हुईं। हिमाचल प्रदेश में 1674, उत्तराखंड में 11219, जम्मू कश्मीर में 7280 और लद्दाख में 23 घटनाएं हुईं।