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हल्द्वानी। कांग्रेस प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी होते ही पार्टी में बगावत के स्वर बुलंद हो गए हैं। कालाढूंगी और लालकुआं सीट पर प्रबल दावेदार माने जा रहे महेश शर्मा और पूर्व कैबिनेट मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल तल्ख तेवर दिखा रहे हैं। ये दोनों नेता पहले भी अपनी- अपनी सीट पर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरकर कांग्रेस को पटखनी दे चुके हैं। अब फिर से इनकी उपेक्षा पार्टी का गणित बिगाड़ सकती है।
कालाढूंगी में महेश शर्मा और लालकुआं में हरीश चंद्र दुर्गापाल ब्राह्मण होने से स्थानीय जातिगत समीकरणों में फिट बैठते हैं। इनके राजनीतिक अनुभव के साथ रिश्तेदारी और बिरादरी होने की वजह से अपने- अपने क्षेत्र के बड़े हिस्से में इनका प्रभाव माना जाता है। पिछले दो विधानसभा चुनावों के नतीजों से भी ये साफ होता है।
कालाढूंगी सीट से कांग्रेस का टिकट न मिलने पर महेश शर्मा 2012 और 2017 में बागी होकर निर्दलीय मैदान में उतर गए थे। वे दोनों बार तीसरे नंबर पर रहे। लेकिन उनके और कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश जोशी को मिले वोट मिलाएं तो कांग्रेस कालाढूंगी सीट जीत सकती थी। 2017 चुनाव में उनके और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच महज 4893 वोटों का अंतर था।
इधर, लालकुआं सीट की बात करें तो 2012 में कांग्रेस से टिकट न मिलने पर हरीश चंद्र दुर्गापाल निर्दलीय मैदान में उतरे थे। उन्होंने जीत भी दर्ज की थी। तक कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र बोरा तीसरे नंबर पर रहे थे। हालांकि, 2017 में पार्टी से टिकट मिलने पर वे चुनाव हार गए थे। तब कांग्रेस के बागी हरेंद्र सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े और तीसरे पर रहे थे। ऐसे में महेश शर्मा और हरीश दुर्गापाल निर्दलीय चुनाव लड़ने पर इस बार भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
कांग्रेस की कलह से भाजपा को संजीवनी
2012 में नवगठित विधानसभा क्षेत्र कालाढूंगी में पहला चुनाव हुआ था। कांग्रेस से प्रबल दावेदार रहे महेश शर्मा टिकट न मिलने पर निर्दलीय लड़े और प्रकाश जोशी को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था। 2017 में भी यही क्रम दोहराया गया। कांग्रेस की इस खींचतान ने भाजपा को संजीवनी देने का काम किया। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी बंशीधर भगत दोनों बार विजयी रहे।