शाबाश! लड़को, तुम्हें सजा चाहे जो मिले, पर घर पहुंचकर ईरान की मां-बहनें तुम्हारा हाथ गर्व से चूम लेंगी

Well done! Boys, no matter what punishment you get, but after reaching home, the mothers and sisters of Iran will kiss your hand with pride.
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नई दिल्ली : फुटबॉल की दुनिया का सबसे बड़ा मंच फीफा वर्ल्ड कप। दोहा का खलीफा इंटरनैशनल स्टेडियम। हजारों दर्शकों की भीड़ के बीच मैदान में कंधे से कंधा मिला खड़े 11 खिलाड़ी। गर्व से ऊंचे सिर। आंखों में आक्रोश। चौड़े सीने लेकिन लबों पर कोई हरकत नहीं। ये कोई साधारण दृश्य नहीं, क्रूर सत्ता के खिलाफ प्रतिरोध और साहस का मुजाहिरा था। लबों से एक शब्द भी नहीं फूटे लेकिन इस खामोश प्रतिरोध की गूंज हजार किलोमीटर दूर तानाशाही सत्ता के कानों में गूंज रही होगी। ये दृश्य था सोमवार को ईरान और इंग्लैंड के बीच वर्ल्डकप मैच से पहले का। ईरानी खिलाड़ियों ने हिजाब के खिलाफ चल रहे आंदोलन के समर्थन में मैच से पहले राष्ट्रगान गाने से इनकार कर दिया।

ईरानी फुटबॉल टीम के खिलाड़ियों को इस बात का अंदाजा जरूर होगा कि उनके इस कदम का अंजाम क्या होगा। ईरान की तानाशाही सत्ता उन्हें देशनिकाला कर सकती है, जेल में ठूस सकती है। लेकिन इन जांबाजों को अंजाम की कोई परवाह नहीं थी। उन्हें चाहे जो सजा मिले, लेकिन जब वे घर पहुंचेंगे तो ईरान की मां-बहनें गर्व से उनका माथा जरूर चूम लेंगी।

स्टेडियम में मौजूद हजारों दर्शक ईरानी खिलाड़ियों के अद्भुत साहस के गवाह बने। दुनियाभर में लाखों लोग टीवी पर प्रतिरोध की इस तस्वीर को लाइव देख रहे थे। ईरान की महिलाओं के लिए यह भावुक करने वाला क्षण था। स्टेडियम में मौजूद कुछ ईरानी महिलाओं की आंखों में आंसू थे लेकिन तालियों की गड़गड़ाहट से इन लड़कों के हौसले को सलाम कर रही थीं।

इंग्लैंड के खिलाफ मैच से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही ईरानी कैप्टन एहसान हजसाफी ने साफ कर दिया था कि टीम अपने हक के लिए मजहबी तानाशाह सत्ता के खिलाफ लड़ रहीं महिलाओं के साथ है। उन्होंने कहा, ‘हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे देश में हालात ठीक नहीं हैं और हमारे देश के लोग खुश नहीं हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि हम उनके साथ हैं और उनका समर्थन करते हैं।’ लेकिन तब शायद ही किसी को अंदाजा होगा कि कुछ देर बाद जब ये 11 लड़के मैदान पर उतरेंगे तो अपनी हिम्मत से इब्राहिम रईसी की मजहबी कट्टरपंथी सरकार और सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला अल खामनेई को सीधे-सीधे चुनौती देंगे।

ईरान में महिलाएं तानाशाही सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए आंदोलन कर रही हैं। दो महीने पहले माहसा अमीनी नाम की युवती की हत्या के बाद से पूरे ईरान में महिलाएं हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं। ईरान की रिलिजियस मोरलिटी पुलिस ने उसे सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया था कि हिजाब पहनने के बावजूद उसके बाल का कुछ हिस्सा दिख रहा था। पुलिस ने उसके साथ बर्बरता की जिसके बाद 22 साल की ये लड़की कोमा में चली गई। 16 सितंबर 2022 को उसकी मौत हो गई। इसके खिलाफ पूरे ईरान में महिलाओं का विरोध-प्रदर्शन भड़क गया। ईरानी सरकार इस आंदोलन को कुचलने के लिए बर्बरता की हद पार कर रही है। उन पर बर्बर बल प्रयोग किए जा रहे हैं, यहां तक कि गोलियां मारी जा रही हैं।

ईरान में चल रहे एंटी-हिजाब आंदोलन के दौरान अबतक 400 से ज्यादा आंदोलनकारियों की मौत हो चुकी है। इनमें 58 नाबालिग भी शामिल हैं। ईरानी सरकार बड़े पैमाने पर प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी कर रही है। अबतक 17,251 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। सरकार की इस बर्बरता के बावजूद महिलाएं सड़कों पर उतर रही हैं। ईरान की सड़कों पर ‘डेथ टु डिक्टेटर, डेथ टु खामनेई और मुल्ला मस्ट गेट लॉस्ट’ जैसे नारे गूंज रहे हैं।

इससे पहले भी ईरान की एक प्रोफेशनल फुटबॉल टीम ने इसी महीने जीत के बाद जश्न से इनकार कर दिया था। डोमेस्टिक सुपर कप की विजेता टीम ने महिलाओं के आंदोलन के साथ एकजुटता के इजहार के लिए जश्न मनाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद ईरानी सरकार को डर सता रहा था कि फीफा वर्ल्ड कप में नैशनल टीम भी कहीं ऐसा कुछ न कर दे। इससे एंटी-हिजाब प्रोटेस्ट और तेज हो सकता है। यही वजह थी कि टीम के दोहा रवाना होने से पहले कट्टरपंथी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने टीम के सदस्यों से मुलाकात की थी।