मशीनें फेल हुईं तो चूहे खनिकों ने अपने हाथों से खोद डाला पहाड़…ऑपरेशन सिल्क्यारा फतह की पूरी कहानी.

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उत्तरकाशी। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में वो जंग जीत ली गई है, जहां पिछले 17 दिनों से 41 मजदूरों की जान फंसी हुई थी. गौर करने वाली बात यह है कि जहां एक ओर इस ऑपरेशन में सारी मशीनें फेल हो गईं तो वहीं इस चट्टान को चीरने में सिर्फ भारतीय मजदूर ही काम आए. जहां मशीनी ताकत खत्म हो गई, वहां मानव का साहस काम आया है.

सुरंग के सिलक्यारा छोर से हॉरिजोंटली खुदाई कर रही अमेरिकन ऑगर ड्रिलिंग मशीन, सुरंग के अंदर ही टूट जाती है. क्योंकि ऑगर मशीन से ही 41 मजदूरों के सफल रेस्क्यू ऑपरेशन की उम्मीद जगी थी. लेकिन 47 मीटर ड्रिलिंग करने के बाद, ऑगर मशीन का ब्लेड टूट जाता है. सबको लगा कि ये तो बहुत ही बड़ा झटका है, फिर सेना बुलाई जाती है और 50 जवान रेस्क्यू टीम के साथ मिलकर ऑगर मशीन का मलबा पाइप में से निकालते हैं. इसके बाद शुरू होती है रैट माइनिंग, यानी चूहों की तरह पहाड़ की खुदाई. या ऐसे समझें कि हाथों से पहाड़ की खुदाई.

26 नवंबर से रैट माइनर्स ने शुरू किया ऑपरेशन

जहां मशीन हारी, वहां कैसे रैट माइनर्स ने जिताई 41 जिंदगियों को बचाने की जंग; देखें
सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए रविवार यानी 26 नवंबर को साइट पर 6 ‘रैट होल’ माइनर्स की एंट्री होती है. इन रैट माइनर्स को प्राइवेट कंपनी ट्रेंचलेस इंजिनियरिंग सर्विसेज की ओर से बुलाया गया. ये दिल्ली समेत कई राज्यों में वाटर पाइपलाइन बिछाने के समय अपनी टनलिंग क्षमता का प्रदर्शन कर चुके हैं. उत्तरकाशी में इनके काम करने का तरीका ‘रैट होल’ माइनिंग से अलग था. इस काम के लिए केवल वही लोग बुलाए गए थे जो टनलिंग में माहिर हैं.

2-2 करके अंदर गए रैट माइनर्स

रैट माइनर्स की टीम ड्रिल मशीनों के साथ पहुंचती है, इन्हीं की मदद से मलबे की खुदाई कर रास्ता बनाया जाता है. 2 रैट माइनर्स पाइपलाइन में जाते हैं. एक आगे का रास्ता बनाता है और दूसरा मलबे को ट्रॉली में भरता है. अंदर के दो लोग जब थक जाते हैं तो बाहर से दो अंदर जाते हैं.

उत्तरकाशी टनल रेस्क्‍यू में रैट माइनर्स की दिलेरी ने उम्मीदों को पंख दिए हैं. रेस्क्यू साइट पर उनकी एंट्री कुछ वैसे ही हुई, जैसे फिल्म में हीरो की होती है. सब मामला फंस जाने पर हीरो आता है और सब ठीक कर देता है. उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने में इन माइनर्स की भूमिका किसी नायक सरीखी ही है. इनकी मेहनत रंग लाई.

7:47 बजे निकला पहला मजदूर

इन मजदूरों को निकालने की खुशखबरी देश को मंगलवार को दिन में ही मिल गई, कि किसी भी पल मजदूर बाहर आ सकते हैं. लेकिन ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा होने में देर शाम हो गई. और शाम 7.47 बजे पहला मजदूर निकाला.

रात 7.55 बजे 5 मजदूर निकाले गए. रात 8.05 बजे 9 मजदूर निकाले गए. रात 8.17 बजे 22 मजदूर निकाले. रात 8.27 बजे 33 मजदूर निकाले. रात 8.36 बजे सभी 41 मजदूर निकाले गए.

सुरंग से मजदूरों के बाहर निकलने की पहली तस्वीर रात 8.01 बजे सामने आई. मजदूरों को सुरंग से बाहर लाने का वीडियो भी रात 8.05 बजे सामने आया. इस रेस्क्यू ऑपरेशन में बीते 17 दिनों से सैकड़ों लोग लगे हुए थे. आपको बता दें कि कुल 652 लोग बचाव अभियान का हिस्सा थे.

106 – स्वास्थ्यकर्मी

189 – पुलिस अधिकारी

39 – एसडीआरएफ

62 – एनडीआरएफ

17 – आईटीबीपी 35 बीएन

60 – आईटीबीपी 12 बीएन

12 – फायर मैन उत्तरकाशी

7- वायरलेस पुलिस

24-डीडीएमए

46 – जल संस्थान उत्तरकाशी

7- जल निगम को भुगतान करें

9-डीएसओ उत्तरकाशी

3 सूचना विभाग

32 – यूपीसीएल

1 – सीडी पीडब्लूडी चिन्यालिसोर

यह ऑपरेशन इतना भी आसान नहीं रहा. सरकारों और तमाम बचावकर्मियों को इस सफलता को पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है. कई एजेंसियों के लगभग 17 दिनों के गहन प्रयासों के बाद, उत्तराखंड की सिल्कयारा सुरंग में फंसे सभी 41 श्रमिकों को मंगलवार को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात में सफल ऑपरेशन की सराहना करते हुए देश का नेतृत्व किया.