राहुल की यात्रा से क्यों गदगद है BJP? केरल में कमल खिलने की उम्मीद!

Why is BJP mad at Rahul's visit? Hope to bloom lotus in Kerala!
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नई दिल्ली। भाजपा की पहुंच से अब तक दूर केरल में पार्टी सफलता की उम्मीद बांध रही है। कांग्रेस माकपा के नेतृत्व वाले गठबंधनों यूडीएफ और एलडीएफ में बंटी राज्य की राजनीति में भाजपा इन दोनों गठबंधनों के टकराव में संभावनाएं तलाशने में जुटी है। अंदरूनी तौर पर भाजपा का मानना है कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से ध्रुवीकरण का लाभ अप्रत्यक्ष रूप से उसे मिल सकता है। केरल भाजपा को अभी तक लोकसभा की कोई भी सीट जीतने में सफलता नहीं मिली है। अलबत्ता विधानसभा में जरूर सिर्फ एक बार 2016 में उसने एकमात्र सीट जीती थी। पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता ओ. राजगोपालन ने नेमम सीट पर जीत हासिल की थी। केरल में भाजपा को राजनीतिक सफलता न मिलना इसलिए भी काफी चर्चा में रहता है, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यहां पर काफी काम है। पूरे राज्य में उसके और माकपा के बीच हिंसक घटनाएं भी होती रही हैं।

संघ की पहुंच भी भाजपा को राजनीतिक लाभ नहीं दिला सकी है। इसकी एक वजह राज्य में अधिकांश हिंदू मतों का झुकाव माकपा की तरफ होना रहा है। दरअसल, कांग्रेस और मुस्लिम लीग गठबंधन के चलते मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव अधिकतर कांग्रेस के गठबंधन के साथ ही रहा है। चर्च और मुस्लिम राजनीति के वर्चस्व वाले इस प्रदेश में हिंदू समुदाय को माकपा से अपने पक्ष में लाना भाजपा के लिए अभी तक मुश्किल रहा है।

केरल में मत प्रतिशत बढ़ा : केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद स्थितियां बदली हैं। यही भाजपा की उम्मीद की सबसे बड़ी वजह है। भाजपा को 2011 के विधानसभा चुनाव में मात्र 6.03 फीसदी वोट ही मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 10.85 फीसदी हो गए थे। 2016 के विधानसभा चुनाव में भी उसे 10.6 वोट मिले और एक सीट भी पहली बार मिली थी। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में स्थानीय दलों के साथ भाजपा ने गठबंधन किया था तो राजग को 15.64 फीसदी वोट मिले थे। पार्टी के वोटों में सबसे बड़ा इजाफा 2020 के पंचायत चुनाव में हुआ जबकि उसे 17 फीसदी वोट मिले। बीते विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को 11.30 फीसदी वोट मिले थे।

2019 में मिले थे दो लाख से ज्यादा वोट: बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए सबसे अच्छी बात यह थी। उसे पांच लोकसभा क्षेत्रों में दो लाख से ज्यादा वोट हासिल हुए थे। त्रिवेंद्रम में तो उसके उम्मीदवार को तीन लाख से ज्यादा वोट मिले और वह वामपंथी दल के उम्मीदवार को पीछे छोड़कर दूसरे नंबर पर रहा था। इसके अलावा भाजपा के उम्मीदवारों को नौ लोकसभा क्षेत्रों में एक लाख से ज्यादा के वोट मिले थे। पार्टी अब पांच लोकसभा क्षेत्रों पर ज्यादा जोर दे रही जहां उसने दो लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे।

सामाजिक समीकरणों में भाजपा ईसाई मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। वह चर्च के लगातार संपर्क में बनी हुई है। राज्य में पीएफआई एक बड़ा मुद्दा है और भाजपा उसको उठाकर ईसाई समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है। क्योंकि पीएफआई की गतिविधियों के चलते हिंदू ही नहीं ईसाई समुदाय की भी दिक्कतें बढ़ी हैं। इसके अलावा राज्य के हिंदू समुदाय को भाजपा यह समझाने की कोशिश कर रही है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के अलावा किसी और दल की सरकार बनने की संभावना नहीं है।

2019 में राहुल के चुनाव लड़ने से बदला था माहौल
पिछले लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी वायनाड से चुनाव लड़ने गए थे तब केरल में एक माहौल बना था कि केरल से देश को पहला प्रधानमंत्री मिल सकता है। यही वजह है कि राज्य में सत्तारूढ़ एलडीएफ को एक सीट पर ही जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस ने 20 में से 19 लोकसभा सीटें जीत ली थी। अब माहौल बदला हुआ है। कांग्रेस से भाजपा में आए टॉम वडक्कन के जरिए भाजपा राज्य कांग्रेस के कुछ नेताओं के भी संपर्क में है। हाल में भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को केरल का प्रभारी नियुक्त किया है, ताकि पार्टी की गतिविधियों को तेज किया जा सके।