जयपुर: कर्नाटक में चल रही उठापटक अब शांत होती लग रही है, लेकिन कांग्रेस आलाकमान के लिए अभी पार्टी के अंदर का तूफान शांत नहीं हुआ है. बल्कि चुनाव की तारीख नजदीक आते ही अब इसके दूसरे राज्य में उठने के संकेत मिल रहे हैं. राजस्थान में इन दिनों मौसम खराब चल रहा है. जहां एक तरफ आंधी तूफान ने राज्य में स्थिति खराब कर रखी है वहीं कांग्रेस की राजनीति में भी जो हलचल हो रही है, वह शांत समुद्र पर उठती लहरों सी है जो कभी भी विकराल रूप ले सकती है. अगले हफ्ते राजस्थान में एक अहम बैठक होनी है जिसमें आलाकमान कोई हल ढूंढने की उम्मीद लगाए हुए है. लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी नेता सचिन पायलट का एक साथ मुस्कुराते हुए फोटो खिंचवाना शायद मुश्किल हो.
पायलट के मकान खाली नहीं करने पर गहलोत ने खड़ा किया सवाल
बैठक से कुछ दिन पहले ही इस बात के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं कि दोनों नेताओं के बीच सुलह की राह बहुत पथरीली है. ऐसा तब हुआ जब मुख्यमंत्री के आधिकारिक सलाहकार श्याम लोढ़ा ने सचिन पायलट के उपमुख्यमंत्री पद पर नहीं होने के बावजूद मकान खाली नहीं करने पर सवाल खड़ा कर दिया. तो गहलोत की तरफ से उठाई गई यह मांग क्या पायलट और मुख्यमंत्री के बीच फिर से विवाद का मुद्दा बनने जा रही है?
गहलोत पहले ही इस बात को साफ कर चुके हैं कि वह पायलट पर भरोसा नहीं कर सकते हैं, खासकर उनके जन संघर्ष यात्रा जैसे रुख को अपनाने से भाजपा को ही मदद मिलेगी. दरअसल मुख्यमंत्री ने हाल ही में कहा था कि वसुंधरा राजे सिंधिया से जुड़े परीक्षा घोटाले की जांच की मांग करना पागलपन था.
पायलट के पास है गुर्जर समुदाय की चाबी
वहीं पायलट ने अब और संयम बरतने से इनकार करते हुए गहलोत पर इल्जाम लगाया है कि वह सोनिया गांधी की बजाए वसुंधरा राजे सिंधिया को अपना नेता मानते हैं. और लगातार उनका नाम लेकर सार्वजनिक मंचों से उन्हें अपमानित करते रहे हैं. हालांकि राज्य प्रभारी सुखविंदर रंधावा के सचिन पायलट की अनौपचारिक यात्रा करने के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात करने के बावजूद पार्टी किसी तरह का कदम उठाने से कतरा रही है. दरअसल कमलनाथ पहले ही साफ कर चुके हैं कि इस तरह के फैसले का उल्टा असर पड़ सकता है. खासतौर पर पायलट जो गुर्जर समुदाय से आते हैं, जिनका असर ना सिर्फ राजस्थान बल्कि मध्य प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में भी खासा असर है.
बैठक से कुछ होगा?
इन्ही सब अंतर्कलह को देखते हुए पार्टी अगले हफ्ते बैठक के लिए मजबूर हुई है ताकि कोई समाधान निकाला जा सके. बैठक में कई तरह के प्रस्ताव आने की उम्मीद है. मसलन पायलट को राज्य प्रभारी बनाया जा सकता है. हालांकि चुनाव के दौरान पार्टी के इस फैसले से गहलोत इत्तेफाक नहीं रखेंगे क्योंकि चुनाव के दौरान राज्य प्रभारी के पास ही टिकट देने की शक्ति होती है.
पायलट का दिल तो मुख्यमंत्री बनने में अटका है. वहीं पार्टी इस कलेश पर नियंत्रण चाहती है, लेकिन हालिया जुबानी युद्ध और घर से जुड़े हुए विवाद के बाद यह तूफान थमता हुआ लग नहीं रहा है.