आम आदमी पार्टी ने हाईकोर्ट की जमीन पर कब्जा कर बनाया आफिस, सुप्रीम कोर्ट के उडे होश

इस खबर को शेयर करें

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को उस वक्त आश्चर्यचकित रह गया, जब उसे बताया गया कि राजधानी में दिल्ली हाईकोर्ट के लिए आवंटित जमीन पर एक राजनीतिक दल द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया है। शीर्ष अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए कहा कि कोई राजनीतिक दल हाईकोर्ट के लिए आवंटित जमीन पर कब्जा कैसे कर सकता है। आपको बता दें कि आम आदमी पार्टी दिल्ली हाईकोर्ट को आवंटित राउज एवेन्यू प्लॉट पर अपना कार्यालय चलाती है। यह बंगला दिल्ली के परिवहन मंत्री का आवास था, लेकिन बाद में पार्टी ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। इस जमीन को खाली कराने की दिल्ली सरकार की असमर्थता पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उसे जल्द खाली करने का निर्देश दिया और कहा कि किसी को भी कानून का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

आम आदमी पार्टी (आप) ने इस पर कहा है कि हमारा मुख्यालय अतिक्रमित भूमि पर नहीं है। पार्टी ने बयान जारी कर कहा, “केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भ्रमित करने के लिए गलत जानकारी दी है। हम कोर्ट के सामने दस्तावेज पेश करेंगे, जिससे साफ हो जाएगा कि यह मुख्यालय दिल्ली सरकार ने आम आदमी पार्टी को आवंटित किया था। यही संपत्ति 1992 से आईएएस अधिकारियों और तीन मंत्रियों को आवंटित की गई थी। कोई भी अतिक्रमण नहीं हुआ है। हम सुप्रीम कोर्ट के सामने सभी वैध दस्तावेज पेश करेंगे।”

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ को दिल्ली हाईकोर्ट के लिए आवंटित जमीन पर अतिक्रमण होने की जानकारी उस वक्त दी गई, जब देशभर में न्यायिक बुनियादी ढांचे से संबंधित मामले पर सुनवाई चल रही थी। इस मामले में नियुक्त न्याय मित्र व वरिष्ठ अधिवकता के. परमेश्वर ने पीठ को बताया कि ‘दिल्ली हाईकोर्ट के अधिकारी आवंटित भूमि पर कब्जा लेने गए थे और उन्हें जमीन पर कब्जा लेने की अनुमति नहीं दी गई थी। उन्होंने पीठ को यह भी बताया कि अब उस जमीन पर एक राजनीतिक दल का कार्यालय बन गया है। हालांकि न्याय मित्र ने परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से किसी राजनीतिक दल के नाम का उल्लेख नहीं किया और साफ किया वह इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहते थे। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट जमीन का कब्जा वापस लेने में सक्षम नहीं है।

मामले की जानकारी एल एंड डीओ को दी गई
मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के विधि सचिव भरत पाराशर ने पीठ को सूचित किया कि ‘राजनीतिक दल को 2016 में एक कैबिनेट प्रस्ताव के माध्यम से जमीन आवंटित की गई थी। उन्होंने कहा कि अब इस मामले की जानकारी भूमि एवं विकास अधिकारी (एल एंड डीओ) को दे दी गई है और संबंधित राजनीतिक दल को दूसरी जमीन आवंटित करने की प्रक्रिया चल रही है। विधि सचिव ने शीर्ष अदालत से कहा कि 2016 से पहले, यह एक बंगला था जिस पर एक मंत्री रह रहे थे और बाद में राजनीतिक दल ने इसे अपना कार्यालय बनाने के साथ ही कुछ अस्थाई निर्माण भी किया है।

हाईकोर्ट को जमीन कैसे वापस मिलेगी
इस पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि ‘राजनीतिक दल न्यायपालिका के लिए आवंटित जमीन कैसे ले सकता है। उन्होंने कहा कि कोई भी कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता।’ इसके साथ ही उन्होंने सवाल किया कि कोई राजनीतिक दल इस पर कैसे चुप रह सकता है। पीठ ने दिल्ली सरकार के वकील वसीम कादरी और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रम बनर्जी से इस बात का पता लगाने को कहा है कि हाईकोर्ट को जमीन कैसे वापस मिलेगी।

रजिस्ट्रार जनरल के साथ बैठक करें
इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव, दिल्ली लोक निर्माण विभाग के सचिव और दिल्ली सरकार के वित्त सचिव को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के साथ बैठक करने को कहा। साथ ही अगली सुनवाई पर स्थिति से अवगत कराने को कहा है। इस मामले की पिछली सुनवाई पर शीर्ष अदालत ने राजधानी में न्यायिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के संबंध में दिल्ली सरकार को कई निर्देश जारी किए थे।