अबकी बार किसकी बारी: ‘मनोहर’ के जाने की नौबत आई तो हरियाणा में आसान नहीं मिलना दूसरा विकल्प

Abki Bar Kis Bar When 'Manohar' comes to the fore, it is not easy to find another option in Haryana
Abki Bar Kis Bar When 'Manohar' comes to the fore, it is not easy to find another option in Haryana
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नई दिल्ली: भाजपा शासित प्रदेशों में मुख्यमंत्री बदलने का दौर शुरू हो गया है। कर्नाटक, उत्तराखंड और गुजरात को नए मुख्यमंत्री मिल चुके हैं। अब सवाल उठ रहा है कि अगली बारी किसकी है। चर्चा तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, हरियाणा के सीएम एमएल खट्टर और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की चल रही है। जानकारों का कहना है कि चौहान पर हाथ डालने से पहले पार्टी को बहुत गहराई से होमवर्क करना होगा। अब बचे खट्टर और ठाकुर। पार्टी नेतृत्व के लिए हिमाचल के सीएम ठाकुर को बदलना कोई मुश्किल कार्य नहीं है। अगर खट्टर की बारी आती है तो हरियाणा में भाजपा के लिए उनका विकल्प तलाशना आसान नहीं होगा। दूसरा, केंद्रीय नेतृत्व को जिस तरह के मुख्यमंत्री पसंद हैं, उसमें खट्टर फिट बैठते हैं। तीसरी बात, हरियाणा में अभी विधानसभा चुनाव दूर हैं। 2024 में चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व, खट्टर पर भरोसा बनाए रख सकता है।

बता दें, अगले साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और मणिपुर शामिल हैं। भाजपा, इसी रणनीति पर अपने मुख्यमंत्रियों को बदल रही है। हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का दूसरा कार्यकाल है। प्रदेश के राजनीतिक मामलों के विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र कुमार सैनी बताते हैं, मौजूदा स्थिति में खट्टर का विकल्प तलाशना आसान नहीं है। कुछ लोग ऐसी संभावना जता रहे हैं कि जिस तरह गुजरात में पाटीदार समुदाय को खुश करने के लिए ‘पटेल’ को सीएम बनाया गया है, वैसा ही प्रयास हरियाणा में जाटों को अपनी तरफ लाने के लिए भाजपा नेतृत्व कर सकता है। भाजपा के पास दो बड़े जाट चेहरे रहे हैं। ओपी धनखड़ और कैप्टन अभिमन्यु, ये दोनों खट्टर सरकार के पिछले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री थे। दोनों ही चुनाव हार गए। इसके बावजूद पार्टी ने धनखड़ को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी। पिछले दिनों कैप्टन अभिमन्यु को उत्तर प्रदेश चुनाव के प्रभारी बने, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के साथ सह प्रभारी बनाया गया है।

पार्टी के पास तीसरा बड़ा चेहरा पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला रहे हैं। वे भी चुनाव हार गए थे। उन्हें सरकार में एडजस्ट किया गया है। केंद्रीय नेतृत्व हारे हुए नेताओं पर दांव लगाएगा, कम से कम, मुझे तो ऐसा नहीं लगता। रविंद्र सैनी ने कहा, गैर-जाट नेताओं में पूर्व मंत्री रामबिलास शर्मा हैं, लेकिन वे भी चुनाव हार चुके हैं। कृष्णपाल गुर्जर, केंद्र में ऊर्जा राज्य मंत्री हैं। अहीरवाल के बड़े नेता राव इंद्रजीत सिंह, सीएम बनने की इच्छा जता चुके हैं। हालांकि वे केंद्रीय मंत्री हैं। हाल ही में उनका एक बयान चर्चा में रहा था। मैं कोई कुएं का मेंढक नहीं हूं जो सिर्फ अपने लोकसभा क्षेत्र तक ही सीमित रहूं। पूरा हरियाणा मेरा है मैं कहीं भी कार्यक्रम में शामिल होने जा सकता हूं। इससे उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा का अंदाजा लगाया जा सकता है।
नाराजगी का जोखिम
दरअसल, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भाजपा हाईकमान के लिए समस्या नहीं हैं। दिल्ली से सारी नियुक्तियां होती हैं। ‘यस सर’ के अनुसार, काम आगे बढ़ता रहता है। पार्टी नेतृत्व और संघ में उनके प्रति सॉफ्ट कार्नर है। किसान आंदोलन में जैसा केंद्र ने कहा, उन्होंने वैसा ही किया। अखिल भारतीय आदर्श जाट महासभा के अध्यक्ष दीपक राठी कहते हैं, पार्टी के पास अभी खट्टर का विकल्प नहीं है। किसान नेताओं की कमी के कारण प्रदेश के हर जिले में किसान आंदोलन शुरू नहीं हो सका। जहां पर भाजपा या जजपा के विधायक हैं, वहां उपवास कार्यक्रम तक आयोजित नहीं हो सके। किसान आंदोलन का नकारात्मक प्रभाव कितना पड़ता है, ये उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद ही मालूम हो सकेगा।

अगर मौजूदा राजनीतिक हालात में मुख्यमंत्री मनोहर लाल को बदलते हैं तो गैर-जाट नाराज हो जाएंगे। चूंकि भाजपा अपना कोर वोटर ‘गैर जाटों’ को बताती आई है, इसलिए वह ऐसा जोखिम मोल नहीं लेगी। जाटों और किसानों की पार्टी कही जाने वाली ‘जजपा’ खुद खट्टर सरकार में शामिल है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जाटों की संख्या करीब 20 से 25 फीसदी बताई गई है। राजनीतिक विश्लेषक रविंद्र कुमार सैनी कहते हैं, टाइमिंग को देखें। गुजरात और उत्तराखंड में अगले साल चुनाव हैं। हरियाणा में विधानसभा चुनाव 2024 में हैं। ऐसी संभावना है कि तब तक किसान आंदोलन को लेकर कोई सार्थक बातचीत हो जाएगी। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस, जिस तरह से जाट और गैर जाट को लेकर एक स्पष्ट नीति पर चलती आई है, वैसा ही भाजपा ने कर दिया है। कांग्रेस में जब भूपेंद्र हुड्डा सीएम थे तो प्रदेशाध्यक्ष गैर जाट को बना दिया जाता था। आज भी हुड्डा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं तो कुमारी शैलजा पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष हैं। इसी तर्ज पर भाजपा में खट्टर ‘गैर जाट’ सीएम हैं तो ‘जाट’ ओपी धनखड़ प्रदेशाध्यक्ष हैं। प्रदेश में जाट, गुर्जर और अहीर, एक खास पॉकेट में रहे हैं। यह तय है कि प्रदेश में अगर किसान आंदोलन खत्म हो जाता है तो मनोहर लाल खट्टर सरकार को लेकर लगाई जा रही कई अटकलें थम जाएंगी।