उतरा किसान नेताओं का झूठा नकाब, बड़े किसानों ने आंदोलन की आड़ में की पॉलिटिक्स

इस खबर को शेयर करें

नई दिल्ली। तीनों कृषि कानून वापस होने के बाद दिल्ली के सभी बॉर्डर से किसान लौट चुके हैं और अब इस आंदोलन में शामिल कई संगठनों ने पंजाब में चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। किसान आंदोलन में पंजाब से भाग लेने वाले 32 में से 22 संगठनों ने शनिवार चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। पार्टी का नाम संयुक्त समाज मोर्चा होगा। मोर्चे ने दावा किया है कि वह सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी का चेहरा बलवीर सिंह राजेवाल होंगे। किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी अपनी पार्टी पहले ही बना चुके हैं और वो 100 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर चुके हैं।

चढूनी के बाद कई और नेता कूदेंगे चुनावी मैदान में
पंजाब चुनाव से पहले शनिवार किसान आंदोलन में पंजाब से भाग लेने वाले 32 में से 22 संगठनों की ओर से बड़ा ऐलान किया गया। 22 संगठन मिकलकर संयुक्त समाज मोर्चा के बैनर तले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। किसान नेताओं का दावा है कि वह सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। मुमकिन है कि आने वाले समय में कुछ और संगठन उनके साथ आएं। सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार इस मोर्चे की कुछ दलों के साथ गठबंधन की बात भी चल रही है।

गुरनाम सिंह चढूनी ने बनाई पार्टी
भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने संयुक्त संघर्ष पार्टी नाम से राजनीतिक दल बनाया है। उनकी पार्टी आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव में 100 से अधिक सीटों पर लड़ती नजर आएगी। चढूनी का कहना है कि राजनीति दूषित हो चुकी है, इसलिए इसमें बदलाव की जरूरत है। चढूनी सक्रिय राजनीति में आने वाले पहले किसान नेता बन गए जो कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन अगुवाई कर रहे थे।

कोई भी व्यक्ति या संगठन SKM के नाम का न करे प्रयोग
किसान संगठनों के चुनाव लड़ने के ऐलान को लेकर संगठन के बीच पूरी तरह से आम सहमति नहीं दिख रही है। शनिवार चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने स्पष्ट किया है कि वे पंजाब विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे है। यह जानकारी मोर्चा की 9 सदस्यीय समन्वय समिति के नेता जगजीत सिंह डल्लेवालव डॉ. दर्शनपाल ने दी। उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा जो देश भर में 400 से अधिक विभिन्न वैचारिक संगठनों का एक मंच है जो केवल किसानों के मुद्दों पर बना है। न तो चुनाव के बहिष्कार की कोई बात है और न ही चुनाव लड़ने की कोई समझ बनी है। उन्होंने कहा कि इसे लोगों ने सरकार से अपना अधिकार दिलाने के लिए बनाया है।

पंजाब में किसानों के आंदोलन पर चुप्पी क्यों
दिल्ली में किसानों का आंदोलन एक साल तक चला और मांगें पूरी हो जाने के बाद किसान लौट चुके हैं। वहीं दूसरी ओर पंजाब में ठंड के मौसम में किसान रेल पटरी पर बैठे हैं लेकिन इसको लेकर किसी किसान नेता का बयान सामने नहीं आया है। सवाल खड़े हो रहे हैं कि राकेश टिकैत और चढूनी कहां हैं। अभी तक पंजाब में किसानों के इस आंदोलन पर कोई बड़ा नेता जो दिल्ली में मौजूद था उसका बयान सामने नहीं आया है।

राकेश टिकैत को लेकर सवाल बरकरार
किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत का अगला सियासी कदम क्या होगा इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले ही कह दिया है कि राकेश टिकैत चुनाव लड़ना चाहते हैं तो उनका स्वागत है। राकेश टिकैत अब तक चुनाव लड़ने के सवाल के किसी संभावना को नकारते रहे हैं। हालांकि जिस प्रकार से उनके बयान सामने आते हैं उसके राजनीतिक मायने निकाले जाते हैं।

खड़े हुए थे सवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों के विरोध को ‘राजनीतिक धोखाधड़ी’ करार दिया था। पीएम मोदी ने ‘ओपन’ मैगजीन को दिए इंटरव्यू में कहा था कि ‘कई राजनीतिक दल हैं जो चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे करते हैं, उन्‍हें मैनिफेस्‍टो में भी डालते हैं। फिर, जब वक्त आता है वादा पूरा करने का तो यही दल यू-टर्न ले लेते हैं और अपने ही किए वादों को लेकर हर तरह की मनगढ़ंत और झूठी बातें फैलाते हैं।

अगर आप किसान हित में किए गए सुधारों का विरोध करने वालों को देखेंगे तो आपको बौद्धिक बेइमानी और राजनीतिक धोखाधड़ी का असली मतलब दिखेगा।’ पीएम मोदी के अलावा कई बार दूसरे नेताओं ने भी इस पर सवाल खड़े किए थे। किसान आंदोलन समाप्त होने के बाद एक के बाद एक किसान संगठन राजनीति के मैदान में उतरते दिखाई दे रहे हैं। जिसको लेकर अब एक नई बहस छिड़ सकती है।