जयपुर। राजस्थान भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। लोकसभा चुनाव में इस बार राज्य की 11 सीटें भाजपा के हाथ से फिसल गई। पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद असंतोष खुलकर सामने आने लगा है। 2019 के चुनाव में सभी 25 सीटें और 2014 के चुनाव में 25 सीटों (एक सीट सहयोगी आरएलपी) पर जीत की तुलना में इस बार उसे 11 सीटों का नुकसान हुआ है।
अनुभवी भाजपा नेता देवी सिंह भाटी की हार पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। 17 जून को भाजपा की राज्य इकाई की दो दिनों की चर्चा पूरी होने के बाद भाटी ने गलत टिकट वितरण, संगठन में जड़ता और खराब प्रदर्शन के लिए पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को योग्य लोगों को उम्मीदवारी से वंचित करने के लिए जिम्मेदार ठहराया।
पिछले साल विधानसभा चुनावों में राठौड़ ने तारानगर सीट से अपनी हार के लिए लोकसभा सांसद राहुल कस्वां द्वारा की गई तोड़फोड़ को जिम्मेदार ठहराया था। इस आम चुनाव में राठौड़ के कारण चूरू से दो बार सांसद रहे कस्वां को टिकट नहीं मिल सका। इससे नाराज होकर कस्वां कांग्रेस में शामिल हो गए और चूरू लोकसभा सीट से जीत दर्ज की।
कस्वां का परिवार शेखावाटी क्षेत्र में जाट मतदाताओं के बीच प्रभाव रखने वाला भाजपा का एकमात्र जाट परिवार था। राहुल कस्वां के पिता राम सिंह कस्वां भी एक सफल नेता थे। एक समय में राजेंद्र राठौड़ को राम सिंह के बेहद करीबी के रूप में देखा जाता था। उनके बीच मतभेद होने के बाद राम सिंह को 2014 में लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं मिला। हालांकि उनके बेटे को मैदान में उतारा गया था। इसके बाद राठौड़ का जाट वोट खोने लगा। माना जाता है कि इस चुनाव में कस्वां के साथ दुर्व्यवहार ने सभी जाट बहुल सीट पर जाट मतदाताओं को भाजपा से दूर कर दिया।
इंडिया टुडे में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कुछ सीटों पर अपनी हिस्सेदारी चाहती थीं। कस्वां भी उनमें से एक थे। राजे ने यह भी सुझाव दिया था कि गुर्जर वोट बरकरार रखने के लिए प्रह्लाद गुंजल को टोंक-सवाई माधोपुर से मैदान में उतारा जाए, लेकिन पार्टी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। गुंजल कांग्रेस में चले गए और कोटा-बूंदी सीट पर भाजपा के ओम बिड़ला के खिलाफ कड़ी टक्कर दी।
देवी सिंह भाटी के बयान के बाद राजेंद्र राठौड़ ने 18 जून को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि राज्य के अधिकांश नेता राजे पर उलटफेर का दोष मढ़ सकते हैं। यहां तक कि राजस्थान में भाजपा के मंत्री भी राज्य इकाई की विफलताओं पर जनता के बीच जा रहे हैं। कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा लोकसभा नतीजे घोषित होने के बाद से कार्यालय नहीं जा रहे हैं। उनका कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों में वह मंत्री बने रहने के इच्छुक नहीं हैं। उन्हें लगता है कि राजस्थान में पार्टी अनुभवहीन और अक्षम नेताओं के हाथों में है।
वहीं, शहरी विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा है कि पार्टी सामान्य सर्दी को निमोनिया में बदलने से रोकने में विफल रही है। उन्होंने नुकसान के लिए गलत टिकट वितरण और कांग्रेस का मुकाबला करने में विफलता को जिम्मेदार ठहराया है। उधर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता इंद्रेश कुमार ने राज्य में खराब प्रदर्शन के लिए भाजपा में अहंकार को जिम्मेदार ठहराया है।