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नई दिल्ली: बिहार के अलग-अलग हिस्सों में बीते 24 घंटों में आंधी-बारिश और वज्रपात से 37 लोगों की मौत हो गई। कुदरत के इस कहर से अलग-अलग जगहों पर 13 लोग जख्मी हो गए। तेज आंधी से आम की फसल को भी बड़ा नुकसान पहुंचा है। जिससे बिहार के किसान के साथ-साथ आम के व्यापारी चिंतित हैं। वज्रपात की चपेट में आकर तीन दर्जन से अधिक लोगों की मौत से लोगों के मन में यह सवाल फिर से उठ रहा है कि आखिर बिहार में आकाशीय बिजली इतनी क्यों गिरती है?
इस कुदरती कहर पर हमने रिसर्च किया तो पाया कि बिहार में हर साल सैकड़ों की संख्या में लोग वज्रपात की चपेट में आकर मरते हैं। इतनी बड़ी संख्या में हर साल हो रही मौत के पीछे बिहार की भौगोलिक स्थिति, लोगों में जानकारी और सबकुछ जानते हुए भी सरकार का कोई जरूरी कदम नहीं उठाना प्रमुख कारण है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार के पर्यावरण विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर प्रधान पार्थ सारथी ने बताया कि वज्रपात अमूमन दोपहर के बाद होता है। दरअसल, अगर सूरज की किरणें प्रखर हों, तो गर्मी ज्यादा हो जाती है। ऐसा होने पर कुछ वक्त बाद क्युमुलोनिम्बस क्लाउड बनता है, जिससे वज्रपात होता है।
नदियों की बहुलता, दियारा क्षेत्र में ज्यादा हताहत-
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि आम तौर पर वज्रपात की घटनाएं उसी क्षेत्र में ज्यादा होती है जहां बारिश से पहले भीषण गर्मी पड़ रही हो। दूसरी ओर बिहार में नदियों की बहुलता है। जिसके दोनों फैली दियारा राज्य के एक बड़े हिस्से को कवर करती है। खेती और पशुपालन पर निर्भर बिहार की ग्रामीण आबादी जब खेतों में काम कर रही होती है या मवेशी चरा रही होती है तभी वज्रपात की चपेट में आकर जान गंवाती है।
बिहार में वज्रपात का कहर, आंकड़ों की जुबानी-
पर्यावरण और प्राकृतिक आपदाओं पर काम करने वाले प्रतिष्ठित वेबसाइट के अनुसार वज्रपात की घटनाओं में बिहार की रैकिंग छठे स्थान है। बीते कुछ सालों में यहां वज्रपात की घटनाओं में और वृद्धि हुई है। आंकड़े बताते हैं कि देशभर में 2018 में वज्रपात से 3000 लोगों की मौत हुई थी। जिसमें से 302 मौतें बिहार में रिकॉर्ड की गई। इससे एक साल पहले 2017 में तो बिहार में 514 लोगों की मौत वज्रपात की चपेट में आने से हुई। 2019 में यह आंकड़ां कमा हालांकि इस साल भी 221 मौते दर्ज हुई थी।
जलवायु परिवर्तन के चलते ही वज्रपात की घटनाएं बढ़ी-
पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था लाइटनिंग रिसाइलेंट इंडिया कैम्पेन और भारतीय मौसमविज्ञान विभाग ने 2020 में की गई अपनी स्टडी में दावा किया था कि बिहार में 2019 में जनवरी से सितंबर तक वज्रपात की ढाई लाख से ज्यादा वारदातें हुई थीं। इससे समझा जा सकता है कि बिहार में वज्रपात कितना बढ़ गया है। कुछ जानकारों का ये भी कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते इस तरह की घटनाओं में इजाफा हुआ है।
बचाव के लिए सरकार द्वारा लॉच किया गया ऐप कारगर नहीं-
वज्रपात अथवा आकाशीय बिजली को बिहार में बोलचाल की भाषा में ठनका कहा जाता है। इससे बचाव के लिए बिहार सरकार ने इंद्रवज्र नाम से एक ऐप लांच किया है। लेकिन इसे बहुत कम लोगों ने डाउनलोड किया है। साथ ही लोगों की शिकायत है कि यह ऐप सही जानकारी नहीं देता है। दूसरी ओर विशेषज्ञों का कहना है कि तार के पेड़ वज्रपात को अपनी ओर खींचते है। यही कारण है कि बिहार में हर साल हजारों की संख्या में ताड़ के पेड़ों पर ठनका गिरता है।
लाइटनिंग अरेस्टर लगाने की विशेषज्ञ कर रहे बात-
लाइटनिंग रिसाइलेंट इंडिया कैम्पेन के कनवेनर कर्नल (रिटायर्ड) संजय श्रीवास्तव ने बताया कि लाइटनिंग अरेस्टर वज्रपात से बचाव का कारगर उपाय है। देवघर का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यहां पहले हर साल एक दर्जन से अधिक कांवरियों की मौत हो जाती थी, लेकिन 6-7 साल पहले वहां कई लाइटनिंग अरेस्टर लगाए गए, जिसके बाद से वहां मौतों का सिलसिला थम गया है। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार को वज्रपात से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में लाइटनिंग अरेस्टर लगाना चाहिए। ये बहुत खर्चीला भी नहीं है।