मुजफ्फरनगर। अंधाधुंध सिंचाई से जमीन के लिए जरूरी पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र बघरा पर मिट्टी के 1673 नमूनों की जांच कराई गई। सहारनपुर और मेरठ मंडल में पोटाश की कमी सबसे ज्यादा मिली है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बिना जरूरत के खेतों की सिंचाई से पोटाश मिट्टी में अधिक गहराई तक चला जाता है। इसके पौधों की जड़ों तक नहीं पहुंच पाने के कारण फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन प्रभावित होता है।
केवीके बघरा के प्रभारी एवं मृदा वैज्ञानिक डॉ. अनिल कटियार बताते हैं कि साल 2021 में 931 और 2022 में अब तक 742 किसानों ने मिट्टी के नमूनों की जांच कराई है। सामान्य तौर पर पोटाश की मात्रा 180 से 280 किलो प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए, लेकिन जांच में सामने आया कि औसत यह 110 किलो प्रति हेक्टेयर ही रह गई है। कृषि विज्ञान केंद्र चित्तौड़ा के कृषि वैज्ञानिक सुरेंद्र कुमार बताते हैं कि सबसे बड़ी वजह खेतों की अधिक सिंचाई से पोटाश का रिसाव बढ़ा है। पानी के साथ पोटाश जमीन में अधिक गहराई तक चली जाती है और फसलों की जड़ों तक पोटाश नहीं पहुंच पाती। खेतों में सिर्फ नमी रखी जानी चाहिए। इसके अलावा किसान डाई और यूरिया अधिक प्रयोग करते हैं, पोटाश खाद का खेतों में कम प्रयोग करना भी इसकी बड़ी वजह है। अधिक सिंचाई से किसान की लागत बढ़ गई है और फसल उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित हुई है।
इन जिलों के नमूनों की हुई जांच
मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, रुड़की, काशीपुर।
पोटाश की कमी से नुकसान
गेहूं, गन्ने और अन्य फसलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है। पत्तियां पीली और नुकीली हो जाती हैं। पत्तियों के किनारे झुलसे दिखाई देते हैं। आकार छोटा हो जाता है और वृद्धि रुक जाती है।
फसल चक्र भी जिम्मेदार
कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि जैविक खाद का किसान कम प्रयोग कर रहे हैं। जमीन को खाली छोड़ने के बजाय गेहूं और गन्ने का पैटर्न बना लिया है, जिससे जमीन में पोषक तत्वों की कमी हो गई है।
फास्फोरस और कार्बनिक पदार्थ भी कम
मिट्टी में फास्फोरस और कार्बनिक पदार्थों की भी कमी है। फास्फोरस प्रति हेक्टेयर 15 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर होना चाहिए, जबकि वर्तमान में यह 12 किलो प्रति हेक्टेयर है।