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योगी आदित्यनाथ के हाथ में दोबारा उत्तर प्रदेश की बागडोर आ गई है। बाबा के दोबारा CM पद की शपथ लेते ही उत्तर प्रदेश विधानसभा से जुड़े कई रिकॉर्ड टूट जाएंगे। पहला और सबसे अहम रिकॉर्ड योगी के ही नाम होगा जो लगातार दो बार सीएम बनने का है। इसके पहले यूपी में चंद्रभानु गुप्ता और एन.डी. तिवारी लगातार दो बार सीएम बने, लेकिन वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे।
20 मई 1950 को उत्तर प्रदेश विधानसभा का गठन हुआ था। 71 सालों में प्रदेश को 21 मुख्यमंत्री मिले। अब तक ऐसा किसी विधानसभा चुनाव में नहीं हो सका है। यानी योगी भारतीय जनता पार्टी के लिए लकी साबित हुए हैं।
योगी के नाम ये 7 रिकॉर्ड
UP विधानसभा के इतिहास में लगातार दूसरी बार CM बनने वाले पहले उम्मीदवार।
5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले BJP के पहले मुख्यमंत्री।
BJP शासन में पहली बार ऐसा हुआ, जब 5 साल तक एक ही व्यक्ति CM रहा।
2007 में मुलायम सिंह के बाद बतौर CM चुनाव लड़ने वाले पहले उम्मीदवार।
34 साल से चल रहे नोएडा फैक्टर को तोड़ कर जीत हासिल करने वाले मुख्यमंत्री।
योगी लगातार दूसरी बार जीत हासिल करने वाले पांचवें CM हैं। इसके पहले 1957 में संपूर्णानंद, 1962 में चंद्रभानु गुप्ता, 1974 में हेमवती नंदन बहुगुणा और 1985 में एन.डी. तिवारी भी ऐसा कर चुके हैं।
योगी आदित्यनाथ 15 साल में पहले मुख्यमंत्री होंगे जो विधायक के रूप में शपथ लेंगे। उनके पहले 2007 में मायावती और 2012 में अखिलेश यादव ने विधान परिषद सदस्य रहते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
नोट- तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने 2007 में 15वीं विधानसभा के लिए गुन्नौर सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन बसपा की सरकार बनने से वे दोबारा CM नहीं बन सके थे।
योगी की विजय भूमि- गोरखपुर सीट
गोरखपुर सदर सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है। बीते 33 साल से यहां भाजपा का प्रत्याशी ही चुनाव जीतता आ रहा है। गोरखपुर सदर सीट पर फिलहाल 4 लाख 53 हजार 662 वोटर्स हैं। यहां योगी के प्रतिद्वंद्वियों में सुभावती शुक्ला (सपा), ख्वाजा शमसुद्दीन (बसपा) और चंद्रशेखर आजाद (भीम आर्मी) रहे। 1989 में यह सीट भाजपा के शिव प्रताप शुक्ला ने जीती थी। तब से इस सीट पर भाजपा ही काबिज है।
यूपी में भारतीय जनता पार्टी का इतिहास
उत्तर प्रदेश में BJP ने 1997 से 2002 तक पहली बार पांच साल तक शासन किया, लेकिन इन 5 सालों में 3 मुख्यमंत्री भी बदले। 21 सितंबर 1997 को जब भाजपा सरकार बनी तो कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। दो साल बाद सीएम का चेहरा बदलकर राम प्रकाश गुप्ता को कुर्सी दी गई। इस बदलाव के महज 351 दिन बाद राम प्रकाश गुप्ता को हटाकर राजनाथ सिंह को सीएम बना दिया गया।
पार्टी लगातार सत्ता में आई तो CM बदल दिया
उत्तर प्रदेश की राजनीति का सबसे रोचक पहलू यही रहा है कि अगर किसी पार्टी ने राज्य की सत्ता में वापसी की तो उसने अपने पिछले सीएम को मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं दी। 1950 से अप्रैल 1967 तक कांग्रेस की सरकार रही।
कुर्सी की कहानी गोविंद वल्लभ पंत के 26 जनवरी 1950 को मुख्यमंत्री बनने से शुरू होकर 7 दिसंबर 1960 को चंद्रभानु गुप्ता के CM बनने तक पहुंची। इस बीच पार्टी ने तीन सीएम और बदल दिए थे, जिनमें संपूर्णानंद और सुचेता कृपलानी का नाम भी शामिल रहा। यानी कांग्रेस की सरकार तो पूरे 5 साल रही, लेकिन मुख्यमंत्री बदलते रहे।
इसके बाद चंद्रभानु गुप्ता ने 26 फरवरी 1969 को फिर से मुख्यमंत्री पद संभाला। 1973 से 1974 तक कांग्रेस ने सरकार बनाई। जून 1980 में कांग्रेस दोबारा सत्ता में आई और दिसंबर 1989 तक काबिज रही। इन 9 सालों में कांग्रेस ने 4 मुख्यमंत्री बदल डाले। जिनमें विश्वनाथ प्रताप सिंह, श्रीपति मिश्रा, एन.डी. तिवारी और वीर बहादुर सिंह का नाम शामिल है।
एक कहानी पूरे कार्यकाल की
3 जून 1995 को मायावती पहली बार उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। मायावती सरकार 18 अक्टूबर 1995 तक चली और 137 दिन बाद उनकी सरकार गिर गई। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। मार्च 1997 में राष्ट्रपति शासन हटने के बाद मायावती दोबारा मुख्यमंत्री बनाई गईं, लेकिन इस बार भी उनकी सरकार 184 दिनों तक ही चल सकी। मायावती दूसरी बार सीएम जरूर बनीं, लेकिन बीच में 1 साल से ज्यादा समय राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा और मायावती अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं। इसके बाद कार्यकाल पूरा करने का मौका उन्हें 2007 में मिला।
2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। अखिलेश ने भी पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।