कमरे में घुस 11 साल की बच्ची की पैंटी उतारी-चूमा…मगर पेनिट्रेशन नहीं तो रेप नहीं

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कलकत्ता उच्च न्यायालय (Calcutta High Court) ने 11 साल की बच्ची से बलात्कार के एक मामले में आजीवन कारावास पाए एक दोषी की सजा को कम कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि दोषी ने दोषी ने पीड़िता के शरीर में लिंग का प्रवेश (Penetration) नहीं किया था। इसलिए यह मामला , बल्कि बलात्कार के प्रयास का है।

कलकत्ता हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति बिवास पटनायक की पीठ ने कहा कि कानून में यह तय है कि बलात्कार के अपराध को स्थापित करने के लिए थोड़ा सा भी प्रवेश आवश्यक है। पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड में दर्ज सबूतों के विश्लेषण से पता चलता है कि पीड़िता या अन्य गवाहों द्वारा प्रवेश के बारे में नहीं कहा गया है।

इस मामले में एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) ने बताया कि पीड़िता ने किसी भी प्रकार का पेनेट्रेशन के बारे में नहीं बताया है और गवाह के रूप में चिकित्सा अधिकारी ने भी इसकी पुष्टि नहीं की है। राज्य सरकार की ओर पेश वकील ने कोर्ट में दलील दी कि अंगों में चोट नहीं लगना अविश्वास का आधार नहीं हो सकता है।

उच्च न्यायालय ने पीड़िता और उसके पिता के बयानों और जिरह को ध्यान में रखते हुए कहा कि लड़की ने उसके अंगों में नहीं की है। उसने कहा था कि अपीलकर्ता ने उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी, लेकिन विरोध करने पर ऐसा नहीं कर सका।

दरअसल, हाईकोर्ट साल 2013 के ट्रायल कोर्ट के फैसले और अपील करने वाले याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(F) (12 साल से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार) के तहत दोषी ठहराने के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था। इस मामले में ट्रायल अदालत ने दोषी को दस साल की सश्रम कारावास और 10,000 रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी।

आरोप है कि 5 मई 2010 को पीड़िता के परिजन एक परिजन में बाहर गए थे। इसी दिन रात को 11 बजे आरोपी घर में घुस आया और लड़की को पकड़ा, उसे चूमा और फिर उसकी पैंटी उतार कर किया। हालाँकि, लड़की के चिल्लाने की आवाज सुनकर पड़ोसी घटनास्थल पर पहुँचे और आरोपी भाग गया। इस घटना को लेकर पीड़िता की माँ ने 21 मई 2010 को पुलिस में दर्ज कराई थी।