यूपी में भाजपा की हार पर आ गई अंदरुनी रिपोर्टः जानें क्या रहे कारण

Internal report has come on BJP's defeat in UP: Know the reasons
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लखनऊ। यूपी भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सभी 80 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा था लेकिन पार्टी 2019 के प्रदर्शन को भी नहीं दोहरा सकी है। ऐसे में पार्टी के पदाधिकारी हार के कारणों को जानने के लिए ग्राउंड पर निकले हैं।

लोकसभा चुनाव में हार के कारणों की पड़ताल के लिए ग्राउंड रिपोर्ट पर निकले विशेष दस्ता के सदस्यों (भाजपा के पदाधिकारी) ने भले ही अभी तक अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है, पर अब तक की पड़ताल में यह साफ हो गया है कि तमाम सीटों पर लोकसभा प्रत्याशियों, विधायकों और संगठन के पदाधिकारियों के बीच चुनाव से अधिक खुद की ‘जंग’ अधिक सिद्दत से लड़ी गई। इसका नतीजा हुआ कि यूपी में भाजपा 80 सीट जीतने के लक्ष्य से जहां चूक गई, वहीं, अपने कोर वोट बैंक गैर यादव पिछड़ी जातियों की करीब 8 फीसदी से अधिक वोट भी गंवा बैठी है।

बता दें कि 2019 के चुनाव की तुलना में इस चुनाव में करीब आधी सीट गंवाने की टीस ने भाजपा को अंदर से हिला कर रख दिया है। इसलिए चुनाव के पहले तक कागजों पर सक्रिय रहा पार्टी संगठन अब हर लोकसभा क्षेत्र में जाकर जमीनी हकीकत परख रही है। इसके लिए संगठन ने सभी 80 सीटों पर संगठन के पदाधिकारियों की 40 टीमें बनाकर भेजा है। इस टीम के लोग क्षेत्र में जाकर हार के कारण तलाश रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक अधिकांश सीटों पर हार की समीक्षा करने पहुंची टीम के सामने प्रत्याशियों, क्षेत्रीय पार्टी विधायकों और संगठन के स्थानीय पदाधिकारियों के बीच शीत युद्द की बात सामने आई है। सभी एक-दूसरे के सिर पर हार का ठीकरा फोड रहे हैं।

सूत्रों का कहना है कि स्थानीय संगठन और पदाधिकारी जहां सांसद-विधायक की आपसी जंग और जनता में सांसद विरोधी लहर को प्रमुख कारण बता रहे हैं, वहीं, संविधान और आरक्षण के मुद्दे व जमीनी कार्यकर्ताओं की शिथिलता जैसे भी कारण सामने आए हैं।

मतदाता सूची में भी गड़बड़ी की भी बात
तमाम सीटों पर मतदाता सूची में गड़बड़ी की शिकायत भी सामने आई है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि बड़ी संख्या में भाजपा समर्थक मतदाताओं के नाम कट गए हैं। कई जगहों पर बीएलओ पर भी गड़बड़ी के आरोप लगे हैं।

अधिकारियों के सिर पर भी ठीकरा
हार के लिए अधिकारियों के सिर पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है और अधिकारियों पर जानबूझकर गड़बड़ी करने का भी आरोप लगाया जा रहा है। तमाम क्षेत्रों में तो लोगों ने कहा कि अधिकारियों की मनमानी और स्थानीय पदाधिकारियों की उपेक्षा के चलते जनता के बीच उनका प्रभाव कम हुआ, इस वजह से भी जनता ने उन्हें नकार दिया।