Rahul Gandhi 2.0: पप्पू…युवराज… सब छूट गया पीछे, नए तेवर से उम्मीदों पर कितना खरे उतरेंगे राहुल गांधी?

Rahul Gandhi 2.0: Pappu... Yuvraj... everything is left behind, how well will Rahul Gandhi live up to expectations with his new attitude?
Rahul Gandhi 2.0: Pappu... Yuvraj... everything is left behind, how well will Rahul Gandhi live up to expectations with his new attitude?
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Rahul Gandhi News in Hindi: कांग्रेस नेता राहुल गांधी अब एक नए अवतार में नजर आ रहे हैं. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी भले ही अपनी सरकार नहीं बना पाई, लेकिन उनके नेतृत्व में इंडी गठबंधन ने बीजेपी को अपने बलबूते बहुमत के आंकड़े से काफी पहले रोक लिया. इसके बाद अब वे लोकसभा में विपक्ष के नेता भी बन गए हैं. इस पद पर चुने जाने के बाद अब वे अब सदन में न केवल कांग्रेस पार्टी बल्कि पूरे विपक्ष की ओर से बड़े मुद्दे सदन में उठा सकेंगे. साथ ही मोदी सरकार को भी तमाम मुद्दों पर घेर सकेंगे. लेकिन राहुल गांधी के रूप में यह बदलाव हुआ कैसे, इसके लिए आपको उनकी पिछली राजनीतिक यात्रा के बारे में जानना होगा.

मां की मदद के लिए राजनीति में उतरे

दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल से पढ़े राहुल गांधी राजनीति के बारे में अनिच्छुक थे. हालांकि वे अपनी मां सोनिया गांधी को राजनीतिक कार्यों में मदद किया करते थे. वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थी. उस दौरान कार्यकर्ताओं की मांग पर उन्होंने बेटे राहुल गांधी को गांधी परिवार की परंपरागत सीट अमेठी से लोकसभा चुनाव में उतारा. अपने पहले ही चुनाव में राहुल गांधी ने एक लाख के ज्यादा के अंतर से वह सीट जीत ली. इस दौरान वर्ष 2006 तक उन्होंने पार्टी में कोई और पद ग्रहण नहीं किया.

इस जीत के साथ ही बीजेपी को अहसास हो गया कि पार्टी का आने वाला मुकाबला राहुल गांधी के साथ होने वाला है. इसलिए धीरे- धीरे उन्होंने राहुल गांधी को टारगेट करना शुरू कर दिया और उनके भाषणों के क्लिप वायरल कर उनकी खिल्ली उड़ाने लगी. उनकी मां सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 2007 के यूपी असेंबली चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई और केवल 22 सीटों पर सिमट गई. इसके लिए भी बीजेपी ने सोनिया और राहुल गांधी की खिल्ली उड़ाई.

राहुल गांधी के खिलाफ बनने लगा नैरेटिव

बीजेपी के इस प्रचार से उनकी इमेज तो धीरे- धीरे गैर- गंभीर नेता की बननी शुरू हो गई लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी का अच्छा प्रदर्शन जारी रहा. पार्टी ने 2004 के बाद 2009 में भी लगातार दूसरी बार लोकसभा का चुनाव जीतकर केंद्र में अपनी सरकार बना ली. इस चुनाव में भी राहुल गांधी अमेठी से लड़े और साढ़े तीन लाख वोटों से जीतने में कामयाब रहे. तब तक कांग्रेस समेत बीजेपी नेताओं को भी लग गया था कि राहुल गांधी पीएम बनने वाले हैं. हालांकि उन्होंने दूसरी बार भी मनमोहन सिंह को इस पद के लिए चुना.

राहुल गांधी के लिए असली चुनौती 2014 में शुरू हुई, जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा. इस चुनाव में बीजेपी ने साम- दाम- दंड- भेद नीतियों का सहारा लेकर राहुल गांधी की इमेज खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उनके तमाम नए- पुराने भाषणों के वीडियो वायरल कर उन्हें ‘पप्पू’ कहकर चिढ़ाया गया. बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी भी अपने भाषणों में राहुल गांधी को युवराज कहकर ही संबोधित करते रहे. ऐसा करने के पीछे बीजेपी पब्लिक को यह संदेश देना चाहती थी कि राहुल गांधी को आम लोगों और देश के मुद्दों की समझ नहीं है और वे पार्ट टाइम नेता हैं.

सोशल मीडिया पर ‘पप्पू’ लिखकर कसने लगे तंज

बीजेपी का यह प्रचार धीरे- धीरे काम कर गया. इसके बाद आम लोग भी सोशल मीडिया पर राहुल गांधी की पोस्ट पर ‘पप्पू’ लिखकर तंज कसने लगे. उनकी यह छवि अगले 10 साल तक लगातार उनके साथ चिपकी रही. इस छवि को गढ़ने में जहां बीजेपी का प्रचार तंत्र शामिल था, वहीं आम जनमानस को न समझ पाने की राहुल गांधी की गलतियां भी शामिल थीं, जिसके चलते बीजेपी को उन पर निशाना साधने का मौका मिल जाता था.

राहुल गांधी की ‘पप्पू’ वाली इमेज उनके साथ ऐसी चस्पा हो गई कि राजनीतिक पार्टियां भी कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से परहेज करने लगी. उन्हें डर था कि गठबंधन करने से कहीं कांग्रेस के साथ ही उनकी लुटिया भी न डूब जाए. छवि के संकट से जूझ रहे राहुल गांधी 2014 का चुनाव अमेठी से जीत गए, हालांकि 2019 के चुनाव में उन्हें बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने हरा दिया.

भारत जोड़ो यात्रा से बदलने लगी छवि

इस हार से उनकी छवि को गहरा धक्का लगा. लोगों में सीधा मैसेज गया कि राहुल गांधी की लीडरशिप में कांग्रेस कभी आगे नहीं बढ़ सकती. हार के बावजूद राहुल के लिए गनीमत की बात ये रही कि वे वायनाड से चुनाव जीत गए थे. इसके बाद राहुल गांधी की जिंदगी में वो टर्निंग पॉइंट आया, जिसका वे और कांग्रेस के दूसरे नेता लंबे अरसे से इंतजार कर रहे थे. वर्ष 2024 के लोकभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में दो बार भारत जोड़ो यात्रा निकालने का फैसला किया.

यह यात्रा कन्याकुमार से कश्मीर और मणिपुर से मुंबई तक निकाली गई. इन दोनों यात्राओं ने राहुल गांधी की छवि को सुधारने में बड़ा योगदान दिया. लोगों ने लंबे वक्त बाद ऐसे राहुल गांधी को देखा, जिसके भाषण में गंभीरता थी और जो आम जनमानस के मुद्दे उठा रहा था. राहुल की इन यात्राओं ने लोगों को उनके प्रति नजरिया बदलने में बड़ा योगदान दिया. दूसरी मदद उन्हें मोदी सरकार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर से मिली.

2029 में बन पाएंगे देश के पीएम?

असल में काफी लोग अपने स्थानीय सांसदों से बेहद नाराज थे. वे सांसद बिना कोई काम किए केवल पीएम मोदी के नाम पर चुनाव जीते जा रहे थे. इस बार भी बीजेपी ने अति आत्मविश्वास दिखाते हुए उन्हें चुनाव में टिकट दिया. इस पर भड़के लोगों ने कांग्रेस की अगुवाई में बने इंडी गठबंधन को वोट करके बीजेपी को जता दिया कि अहंकार का अंजाम क्या होता है. इन चुनाव में कांग्रेस भले ही 99 सीटों तक ही पहुंच पाई लेकिन उसकी लीडरशिप में इंडी गठबंधन ने बीजेपी को 240 सीटों पर ही समेट दिया. इसका श्रेय कांग्रेस समर्थक नेता राहुल गांधी को दे रहे हैं.

अब राहुल गांधी लोकसभा में नेता विपक्ष भी बन गए हैं. इसलिए उनकी असल परीक्षा अब शुरू होगी, जब वे देश के बड़े मुद्दे उठाने के साथ ही मोदी सरकार के कामकाज पर भी नजर रखेंगे. सदन में उनके भाषणों पर बीजेपी के साथ आम लोगों की भी कड़ी नजर बनी रहेगी. अगर सदन में वे अपने गंभीर और ओजस्वी भाषणों से गठबंधन को लीड कर पाते हैं तो 2029 के चुनाव में बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती पेश करने के हकदार हो जाएंगे और अगर वे इस मौके के गंवा देते हैं तो पीएम पद का उनका इंतजार और लंबा हो जाएगा.