वैज्ञानिकों ने मोदी सरकार पर वैज्ञानिक सोच घटाने, झूठे नैरेटिव को बढ़ावा देने का आरोप लगाया

Scientists accused Modi government of reducing scientific temper and promoting false narrative.
Scientists accused Modi government of reducing scientific temper and promoting false narrative.
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नई दिल्ली: 100 से अधिक वैज्ञानिकों ने विज्ञान और साक्ष्य-आधारित सोच के प्रति भारत सरकार के ‘विरोधी रुख’ और ‘झूठे आख्यानों, निराधार विचारों और भारत के बहुसंख्यकवादी विचार का पालन करने के लिए धार्मिकता के आवरण’ के समर्थन की निंदा की है.

द टेलीग्राफ के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने सरकार पर ‘बहुआयामी’ हमलों में योगदान देने का आरोप लगाया है जो जनता के बीच वैज्ञानिक दृष्टिकोण को कमजोर करते हैं और शैक्षणिक समुदाय, नौकरशाही और राजनीतिक वर्ग के सदस्यों से संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने में मदद करने का आग्रह किया है.

भारतीय संविधान में अपेक्षित है कि प्रत्येक नागरिक अपने अन्य मौलिक कर्तव्यों के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद तथा पूछताछ और सुधार की भावना विकसित करेगा.

वैज्ञानिकों ने शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा, ‘सरकार और उसके विभिन्न अंग अब सक्रिय रूप से वैज्ञानिक दृष्टिकोण, स्वतंत्र या आलोचनात्मक सोच और साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण का विरोध करते हैं.’

वैज्ञानिकों ने आगे कहा, ‘यह विरोधी रुख व्यापक रूप से और लगातार जनता के बीच पहुंचाया जाता है, जिससे इस तरह के मनोभाव स्थित हो जाते हैं.’

बयान में किसी का नाम नहीं लिया गया है, लेकिन इसकी सामग्री- अप्रमाणित या अवैज्ञानिक विचारों के प्रचार के बारे में चिंता की अभिव्यक्ति, प्राचीन भारतीय ज्ञान की अतिशयोक्ति, कोविड -19 महामारी के दौरान कुछ प्रतिक्रियाएं- नरेंद्र मोदी सरकार में हुए घटनाक्रमों से संबंधित है.

लगभग छह महीने से तैयार किए जा रहे इस बयान को 28 फरवरी को कलकत्ता में ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क के राष्ट्रीय सम्मेलन में अंतिम रूप दिया गया. यह नेटवर्क जनता के बीच वैज्ञानिक शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में लगे 40 संगठनों का एक संघ है.

बयान पर भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय जैविक विज्ञान केंद्र, रमन अनुसंधान संस्थान एवं अन्य सहित कई शैक्षणिक संस्थानों के 100 से अधिक हस्ताक्षरकर्ताओं में सेवारत और सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों ने हस्ताक्षर किए है.

उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की है कि सरकार और उससे संबंद्ध सामाजिक ताकतों ने ‘छद्म विज्ञान और पौराणिक कथाओं को इतिहास मानने के विश्वास’ को बढ़ावा दिया है और ‘बहुसंख्यक समुदाय के बीच भी विविध धार्मिक मान्यताओं के विपरीत एकात्मक बहुसंख्यक धर्म और संस्कृति का निर्माण करने के लिए झूठे नैरेटिव का इस्तेमाल किया.’

वैज्ञानिकों ने कहा है कि अनुसंधान और विकास के लिए सरकारी फंड, जब सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में मापा जाता है, जो पहले से ही तुलनीय देशों से नीचे है. यह ‘ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर’ पर पहुंच गया है, इस चिंता के बीच कि इससे नए वैज्ञानिक ज्ञान पैदा करने की भारत की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

उन्होंने कहा, ‘सस्ते श्रम द्वारा घरेलू मांग पूरी करने को आत्मनिर्भरता के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, इस प्रकार अनुसंधान और ज्ञान उत्पादन की आवश्यकता को कम करके आंका जाता है.’

वैज्ञानिकों ने सरकार पर विकास के आंकड़ों और विभिन्न वैश्विक रैंकिंग में भारत की स्थिति को ‘भ्रामक आधारों पर’ चुनौती देने का आरोप लगाया है. केंद्र ने हाल के वर्षों में भूख पर भारत की रैंकिंग को चुनौती दी है और कई शैक्षणिक समूहों द्वारा भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान हुई अधिक मौतों के अनुमानों को बार-बार मिथक, काल्पनिक या त्रुटिपूर्ण बताया है.

वैज्ञानिकों ने कहा कि छवि प्रबंधन से परे ये प्रवृत्तियां वैज्ञानिक दृष्टिकोण और साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण को कमजोर करती हैं और बौद्धिकता विरोधी दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हुए ज्ञान पैदा करने वाले समुदाय को हतोत्साहित करती हैं.

बयान में कहा गया है, ‘राजनीतिक क्षेत्र की प्रमुख हस्तियों के अवैज्ञानिक दावे, काल्पनिक तकनीकी उपलब्धियों का दावा और प्राचीन भारतीय ज्ञान के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर विचार पेश करना अति-राष्ट्रवादी नैरेटिव का निर्माण और समर्थन करता है.’

बयान में आगे कहा गया है कि इस तरह के काल्पनिक और दंभ भरने वाले दावे प्राचीन भारत के कई वास्तविक महत्वपूर्ण योगदानों को कमतर बनाते हैं.