पंजाब में शिरोमणि अकाली दल में फूट, हरसिमरत कौर बादल ने बीजेपी पर साधा निशाना

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चंडीगढ़: पंजाब में कई बार राज कर चुका शिरोमणि अकाली दल दो फाड़ हो गया है। पार्टी के शीर्ष नेताओं ने जहां अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं, वहीं जिला स्तरीय जत्थेदार और कुछ नेता अब भी उनके साथ हैं। हालांकि, करीब 104 साल पुराने शिरोमणि अकाली दल में यह पहला मौका नहीं है जब पार्टी में बिखराव हुआ है, पहले भी कई बार दल बिखरता रहा है। दिलचस्प बात यह है कि पंजाब के इतिहास में अकाली दल के नाम से कई दल बने लेकिन सत्ता की सीढी केवल शिरोमणि अकाली दल (बादल) ही चढ़ पाया है।

किन नेताओं ने उठाए सवाल?
जिन नेताओं ने सुखबीर बादल के नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं, उनमें पूर्व मंत्री सिकंदर सिंह मलूका, सुरजीत सिंह रखड़ा, बीबी जागीर कौर, प्रेम सिंह चंदूमाजरा आदि शामिल हैं।

शिरोमणि अकाली दल सुखबीर बादल के नेतृत्व में एकजुट है। 117 नेताओं में से सिर्फ 5 नेता ही सुखबीर बादल के खिलाफ हैं, जबकि 112 नेता उनके और पार्टी के साथ खड़े हैं। सभी निर्वाचन क्षेत्रों का नेतृत्व हमारे साथ है।

दो अलग बैठकें
सुखबीर बादल ने मंगलवार को चंडीगढ़ में बैठक बुलाई तो बागी अकाली नेताओं ने जालंधर में बैठक करके सुखबीर बादल से इस्तीफे की मांग कर डाली। इसके चलते बुधवार को दिनभर अकाली दल के सभी गुटों में बैठकों का दौर चलता रहा।

चंदूमाजरा के हाथ में बागियों की बागडोर
बागियों का नेतृत्व कर रहे पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कहा कि 1 जुलाई को हम सभी अकाली नेता श्री अकाल तख्त साहिब में माथा टेकेंगे। वहीं से ‘शिरोमणि अकाली दल बचाओ’ लहर की शुरुआत करेंगे। इस यात्रा में हम अकाली दल के वरिष्ठ नेताओं को शामिल करेंगे। चंदूमाजरा ने कहा कि वह सुखबीर सिंह बादल से अपील करते हैं कि वह कार्यकर्ताओं की भावनाओं को नजरअंदाज न करें, बल्कि उन्हें समझें। पार्टी मतदान के बाद फैसला लेगी।

‘कुछ लोग महाराष्ट्र जैसा घटनाक्रम दोहराना चाहते हैं’
इस बीच शिरोमणि अकाली दल की सांसद और पार्टी प्रमुख सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल ने दावा किया कि पूरा शिरोमणि अकाली दल एकजुट है और सुखबीर बादल के साथ खड़ा है। हरसिमरत ने कहा कि बीजेपी के कुछ पिट्ठू शिरोमणि अकाली दल को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ लोग महाराष्ट्र जैसा घटनाक्रम पंजाब में दोहराना चाहते हैं।

पार्टी का दावा, कार्यसमिति को बादल पर भरोसा
शिरोमणि अकाली दल ने बुधवार X पर दावा किया कि उसकी कार्यसमिति ने बादल के नेतृत्व पर भरोसा जताया है। इसी के साथ समिति ने आलोचकों से कहा कि वे ‘पंथ’ के दुश्मनों के हाथों में न खेलें। पार्टी ने अपने पोस्ट में कहा, ‘शिरोमणि अकाली दल कार्यसमिति पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में पूर्ण विश्वास रखती है और विरोधियों से पंथ के दुश्मनों के हाथों में न खेलने का आग्रह करती है। समिति अध्यक्ष से पार्टी, पंथ और पंजाब के खिलाफ साजिशों को उजागर करने के प्रयासों का नेतृत्व करने का अनुरोध करती है।’ बादल के अलावा कार्यसमिति की बैठक में बलविंदर सिंह भूंदर, दलजीत सिंह चीमा, महेश इंदर सिंह ग्रेवाल, हीरा सिंह गाबड़िया और परमजीत सिंह सरना सहित पार्टी नेताओं ने भाग लिया।

‘मैं साबित कर दूंगा, यह ऑपरेशन लोटस है’
शिरोमणि अकाली दल की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना ने बुधवार को दावा किया कि बीजेपी ऑपरेशन लोटस के जरिए क्षेत्रीय दलों को कमजोर करना चाहती है। सरना ने कहा, ‘मैंने लिखित बयान दिया है। बीजेपी मेरे खिलाफ जो भी कार्रवाई करना चाहे, कर सकती है। अगर उन्हें लगता है कि यह एक फर्जी आरोप है, तो मैं उन्हें बहस की चुनौती देता हूं, और मैं साबित कर दूंगा कि यह ऑपरेशन लोटस है। बीजेपी सभी क्षेत्रीय दलों को कमजोर और खत्म करना चाहती है। हम ऐसा नहीं होने देंगे।

फूट का कारण क्या?
आम चुनावों में अकाली दल को करारी हार का सामना करना पड़ा। पंजाब की 13 लोकसभा सीट में से पार्टी केवल एक पर ही जीत हासिल कर पाई। हरसिमरत कौर बादल ने बठिंडा सीट बरकरार रखी, लेकिन पार्टी के 10 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। इसके पहले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। सूत्रों का कहना है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पार्टी की अंदरूनी कलह इतनी बढ़ी थी कि सुखबीर बादल ने आंतरिक कमिटी के सामने इस्तीफे की पेशकश तक कर डाली थी लेकिन यह खबर खुलकर बाहर नहीं आई। अब कई नेता इसे लेकर मुखर होने लगे हैं और पार्टी टूटने की कगार पर है।

अमृतपाल, सरबजीत ने भी दिया टेंशन?सूत्रों का कहना है कि इस विवाद की जड़ अमृतपाल सिंह का खडूर साहिब लोकसभा सीट से जीतना भी है। इसके अलावा फरीदकोट सीट से सरबजीत सिंह खालसा की जीत ने भी शिरोमणि अकाली दल में माहौल खराब किया है। शिरोमणि अकाली दल के नेताओं को लगता है कि पार्टी में पंथिक वोटरों का भरोसा कम हुआ है, जिसके कारण उन्होंने अलगाववादी विचार रखने वाले दो निर्दलियों को जिता दिया, लेकिन पार्टी की झोली में एक ही सीट आई। नेताओं को लगता है कि अब शिरोमणि अकाली दल पर सिख वोटरों का भरोसा पहले जैसा नहीं रहा है और नेतृत्व बदलना चाहिए।