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बच्चेदानी में बनने वाली गांठ जिसे फाइब्रॉयड ट्यूमर भी कहते हैं, यूट्रस के टिश्यू के बढ़ने से बनता है. इसके होने की संभावना तब होती है जब महिलाओं के पीरियड्स शुरू हो जाते हैं. वैसे तो यह कैंसर वाली गांठ नहीं होती है और ना ही कभी कैंसर में बदलती है. लेकिन, बच्चेदानी में इसकी उपस्थिति दिनचर्या को मुश्किल बनाने वाली साबित हो सकती है. ऐसे में फाइब्रॉयड ट्यूमर को शुरुआती स्टेज पर पहचानना बहुत ही राहतमंद साबित होता है. वैसे तो अल्ट्रासाउंड की मदद से बहुत आसानी से बच्चेदानी में गांठ का पता लगाया जा सकता है. लेकिन इसके लक्षण की जानकारी से बिना चेकअप घर पर इसका पता लगाया जा सकता है.
फाइब्रॉयड ट्यूमर के लक्षण
मायो क्लिनिक के अनुसार, बच्चेदानी में गांठ बनने पर इसके लक्षण आमतौर पर नजर आए ऐसा जरूरी नहीं है. कई महिलाओं में निदान होने तक फाइब्रॉयड ट्यूमर के कोई संकेत नहीं नजर आते हैं. वहीं दूसरे मामलों में बच्चेदानी में गांठ की जगह, आकार और मात्रा के आधार पर इसके लक्षण नजर आते हैं, जिनमें ये शामिल हैं-
पीरियड्स के दौरान तेज दर्द
हैवी पीरियड्स ब्लीडिंग
पेल्विक एरिया में दर्द
बार-बार पेशाब
पेशाब करते समय जलन या दर्द का अनुभव
अचानक तेज दर्द के झटके
खून की कमी
थकान
पेट में नजर आने वाले फाइब्रॉयड के संकेत
बच्चेदानी में गांठ बनने पर पेट का हिस्सा बढ़ने लगता है. कई बार यह गर्भावस्था की तरह भी नजर आने लगता है. फाइब्रॉयड ट्यूमर के मरीज का पेट सही तरह से साफ नहीं हो पाता है, लगातार उसे कब्ज की समस्या रहती है. इसके अलावा पेट में तेज दर्द का भी अनुभव हो सकता है.
किस उम्र की महिलाओं को होता है ज्यादा खतरा
क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक, 30 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं की बच्चेदानी में गांठ बनने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. ऐसी महिलाओं में फाइब्रॉयड के मामले लगभग 40 प्रतिशत-80 प्रतिशत तक हैं.
डॉक्टर के पास चेकअप के लिए कब जाएं
यदि आपको ऊपर बताए गए लक्षणों के साथ हैवी पीरियड्स और तेज पेल्विक दर्द का अनुभव हो रहा है तो इसे नजरअंदाज करने की गलती ना करें. ऐसे मौके पर डॉक्टर से चेकअप कराना सेहत के लिए जरूरी है.
कैसे ठीक होती है बच्चेदानी की गांठ
गांठ के साइज पर इसका उपचार निर्भर करता है. छोटे साइज के ट्यूमर दवाओं और खानपान में विशेष तरह के बदलाव से ठीक हो जाते हैं. लेकिन बड़े साइज के ट्यूमर को निकालने के लिए सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है.