देहरादून: उत्तराखंड में प्योली का फूल इस समय अपने पूरे शबाब पर हैं. आगामी 15 मार्च को उत्तराखंड में फूलदेई का त्योहार मनाया जाएगा. दरअसल, फूलदेई पहाड़ों का लोकप्रिय और स्थानीय त्योहार है. इसके अलावा ये त्योहार बसंत ऋतु के आगमन का और नए फूल खिलने का संदेश भी देता है. माना यह जाता है कि फूलदेई का त्योहार बिना प्योलीं के फूल के अधूरा रह जाता है. क्या है प्योलीं के फूल की विशेषता और क्या है फूलदेई आइए आपको बताते हैं.
ये है अनोखी परंपरा
दरअसल, प्योली के पीले रंग के फूल खिलना बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है. आजकल पहाड़ों में बुरांश और प्योली के फूल खिले हुए हैं. फूलदेई त्योहार आमतौर पर छोटे बच्चों का पर्व है. सर्दियों का मौसम जब निकल जाता है, तो उत्तराखंड के पहाड़ पीले फूल से लकदक हो जाते हैं. इस फूल का नाम है “प्योली”. सुख-समृद्धि का प्रतीक फूलदेई त्योहार उत्तराखंड की गढ़ कुंमाऊ संस्कृति की पहचान है. वसंत का मौसम आते ही सभी को इस त्योहार का इंतजार रहता है.
विशेषकर छोटे बच्चों में इस त्योहार के प्रति उत्सुकता बढ़ती जाती है. घर-घर में फूलों की बारिश होती रहे, हर घर सुख-समृद्धि से भरपूर हो, इसी भावना के साथ बच्चे अपने गांवों के साथ-साथ आस-पास के गांव में जाकर घरों की दहजीज पर फूल गिराते हैं. उस घर के लिए मंगल कामना करते हैं. इस बार 15 मार्च को उत्तराखंड में ये त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा.
मामले में ज्योतिषाचार्य ने दी जानकारी
इस मामले में ज्योतिषाचार्य पण्डित नवीन जोशी ने जानकारी दी. उन्होंने बताया कि प्योली के पीले रंग का फूल, बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है. ये फूल आजकल पहाड़ों में अपनी छटा बिखेर रहा है. खास बात ये हैं कि प्योली, बुरांश के फूलों को चुनकर बच्चे फूलदेई त्यौहार को मनाएंगे. जहां घर की मालकिन बच्चों को फूल वर्षा के बदले चावल, गुड़ के साथ दक्षिणा के रूप में रुपये भी देती हैं.
पहाड़ों में लोगों की खुशहाली के लिए मनाया जाता है ये त्यौहार
आपको बता दें कि पहाड़ की बाल पर्व की परम्परा, जो मानव और प्रकृति के बीच के पारस्परिक संबंधों का प्रतीक भी है. प्योली का फूल समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है. वक्त के साथ पहाड़ों के तौर-तरीके तो बदल गए, लेकिन उत्तराखंड में परम्पराएं अब भी जिंदा हैं. दरअसल, फूलदेई का त्यौहार उत्तराखंड की संस्कृति का एक हिस्सा है, जो पहाड़ों में लोगों की खुशहाली के लिए मनाया जाता है.