बेटे के प्रेम में कहां चूक गए रामविलास पासवान? फिर एक अहम मोड़ पर आ गए चिराग

Where did Ram Vilas Paswan go wrong in the love for his son? Again Chirag came to an important juncture
Where did Ram Vilas Paswan go wrong in the love for his son? Again Chirag came to an important juncture
इस खबर को शेयर करें

Bihar News: रामविलास पासवान को राजनीति का ‘मौसम वैज्ञानिक’ कहा जाता था. एक समय वह किंगमेकर बनकर उभरे थे. पार्टी की कमान बेटे चिराग पासवान को देने के बाद जीवन के आखिरी दिनों में वह काफी खुश थे. बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की खूब चर्चा थी लेकिन उनके निधन के बाद सियासी तूफान आ गया. चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए. अब चिराग फिर दुविधा में हैं. शायद उन्हें पिता की याद आ रही होगी. लोकसभा चुनाव में उन्हें न सिर्फ पिता की विरासत को आगे ले जाने की जिम्मेदारी है बल्कि सीटें भी जीतनी होंगी. इधर, INDIA गठबंधन ने एनडीए की सीट शेयरिंग को पेंचीदा बना दिया है.

लालू प्रसाद यादव ने चिराग पासवान को अपनी तरफ खींचने के लिए बीजेपी से बड़ा ऑफर देकर हलचल बढ़ा दी. भाजपा ने फौरन चिराग को मनाने की कोशिशें शुरू कर दीं. कल रात भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और चिराग पासवान के बीच बातचीत हुई है. खबर है कि बीजेपी चिराग को 6 सीटें दे रही है, जिसे उन्हें चाचा पशुपति पारस की पार्टी के साथ शेयर करना होगा. इधर INDIA अलायंस ने 8+2 का प्रस्ताव दे दिया है. ऐसे में रामविलास के करीबी जरूर सोच रहे होंगे कि काश, वह होते तो पार्टी में फूट नहीं हुई होती. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भाई और बेटे के बीच विरासत सौंपने में पासवान से चूक हुई?

तब मुस्कुरा दिए थे पासवान

हां. निधन से कुछ महीने पहले रामविलास पासवान इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि उन्होंने पार्टी का भविष्य और अपने बेटे चिराग का राजनीतिक करियर सुरक्षित कर दिया है. नवंबर 2019 में चिराग पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. 12 जनपथ पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में पिता ने मुस्कुराते हुए बेटे को रस्मी तौर पर पगड़ी पहनाई थी.

क्या मायावती होंगी विपक्ष से प्रधानमंत्री का चेहरा?

अगली पीढ़ी के हाथों में पार्टी की कमान देने के अपने फैसले पर वह खुश थे. तब सपा का उदाहरणा दिया गया कि कैसे पिता-पुत्र में टकराव देखा गया और बात चुनाव आयोग की चौखट तक पहुंच गई थी. मुलायम सिंह यादव और उनके भाई शिवपाल यादव एक तरफ थे तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव अकेले थे. हालांकि ये सब लोक जनशक्ति पार्टी में भी आगे हुआ. पासवान की मौत के एक साल बाद उनके भाई पशुपति पारस ने बगावत कर दी. 20 साल पुरानी पार्टी दो हिस्सों में टूट गई. चिराग के पास रही लोक जनशक्ति पार्टी (पासवान) और भाई के नाम हुई राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी. पासवान ऐसा नहीं चाहते थे.

चिराग के सपोर्ट में थे पासवान

पिता-पुत्र में अच्छे संबंध थे. कोविड लॉकडाउन के समय पिता की दाढ़ी बनाते चिराग का वीडियो आया था. हालांकि आलोचक कहते हैं कि यह बेटे के लिए पासवान का विशेष प्रेम ही था जिसकी वजह से वह आने वाले खतरे को भांप नहीं सके. शायद वह अंदर ही अंदर उबल रहे असंतोष को इग्नोर करते गए. जब चिराग को पार्टी की कमान दी जा रही थी, पशुपति पारस का चेहरा उतरा हुआ था. मुस्कुराहट भी बनावटी थी. हालांकि पासवान अनाड़ी नहीं थे. शायद वह सब कुछ समझते हुए बेटे के हाथों में पार्टी देकर जानबूझकर सब इग्नोर कर रहे थे. उन्हें लगा होगा कि आगे वक्त के साथ सब सामान्य हो जाएगा.

पारस को लगता है कि वहीं पासवान के असली उत्तराधिकारी हैं. वह पासवान से केवल चार साल छोटे हैं. पिछले कई दशकों से वह पासवान के साथ राजनीति कर रहे थे. 1977 में जब पासवान संसद गए तो उन्होंने अलौली सीट पारस को दे दी. पासवान ने राष्ट्रीय सपने पूरे किए और पारस ने बिहार के गढ़ को बचाए रखा. साल 2000 में जब पार्टी बनी तो पारस ने लॉजिस्टिक्स को संभाला. वह बिहार में एलजेपी के स्टेट प्रेसिडेंट रहे.

भाई को भूल, बेटे को क्यों दी कमान?

दरअसल, रामविलास पासवान का मानना था कि पारस उनके साथी और समकालीन हैं. उनका तर्क था कि पार्टी को आगे ले जाने की जिम्मेदारी अगली पीढ़ी को दी जानी चाहिए यानी उनके बेटे और भतीजे को. वह चाहते थे कि पिछली पीढ़ी रिटायर हो जाए. चिराग के अध्यक्ष बनते ही पारस को लगने लगा कि उन्हें रिपोर्ट करना मुश्किल होगा.

अस्पताल जाने पहले परिवार को बुलाया

पासवान की आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस 9 जुलाई 2020 को हुई थी. तब बिहार विधानसभा चुनाव तीन महीने दूर थे. एलजेपी के स्टैंड को लेकर काफी भ्रम फैला था. चिराग ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. जब पत्रकारों ने पासवान से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि वह पार्टी का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं, ऐसे में राजनीतिक सवाल चिराग से पूछे जाने चाहिए. एक महीने बाद पासवान अस्पताल में भर्ती हो गए. उन्होंने पारस समेत पूरे परिवार को घर बुलाया था. साथ चाय पी. पारस उनका हाथ पकड़े बगल में बैठे थे. पासवान ने स्टाफ से कहा था कि बेड के पास रखी फाइलों को न छुएं. उन्हें यकीन था कि वह जल्द वापस आ जाएंगे.

बीमार हालत में भी वह बिस्तर से फोन पर बातें करते रहे. अस्पताल के बिस्तर से कैबिनेट मीटिंग में जुड़े. 4 सितंबर को एलजेपी ने दिल्ली के अखबारों में फुल पेज विज्ञापन दिया था. ‘वो लड़ रहे हैं बिहार पर राज करने के लिए, और हम लड़ रहे हैं बिहार पर नाज करने के लिए.’ निशाना जेडीयू पर था. पासवान को लगा कि 2005 की तरह उनकी पार्टी फिर से किंगमेकर बनने वाली है. वह खुश थे कि 15 साल बाद फिर वो मौका आने वाला था. उन्होंने कई पत्रकारों से फीडबैक भी लिया था- कैसा था?

वेटिंलेटर पर और…

11 सितंबर को अस्पताल के बिस्तर से उन्होंने ट्वीट किया- मैं हर फैसले में चिराग के साथ हूं. निधन से चार दिन पहले पासवान वेटिंलेटर पर थे और एलजेपी ने बीजेपी के साथ लेकिन नीतीश के खिलाफ वाला फैसला ले लिया. चुनाव हुए तो नतीजों ने चिराग को झटका दे दिया. वह किंगमेकर बनना चाहते थे लेकिन एलजेपी केवल एक सीट जीत सकी थी. हां, नीतीश को काफी नुकसान हुआ और बीजेपी का दर्जा बढ़ गया. चिराग के फैसले के कारण चाचा और भतीजे में टकराव बढ़ गया और पासवान के निधन के एक साल बाद सांसदों को लेकर पारस अलग हो गए. चिराग अकेले पड़ गए.

फिलहाल चिराग नाराज क्यों हैं?

1. नीतीश कुमार के NDA में वापस आने से चिराग पासवान सहज नहीं हैं.
2. चिराग हाजीपुर सीट से ही लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं जिसे उनके चाचा पशुपति पारस छोड़ने से इनकार कर रहे हैं.

बिहार में एनडीए का कुनबा

1. नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड
2. चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास)
3. पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी
4. जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा
5. उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा