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शिमला : पंजाब (Punjab) में शानदार जीत से फुल कॉन्फिडेंस में दिख रही आम आदमी पार्टी (AAP) अब पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में धमाकेदार एंट्री की तैयारी में जुट गई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) आज मंडी में रोड-शो करने जा रहे हैं। जिस पर देशभर के सियासी पंडितों की नजर टिकी हैं। सवाल है कि देशभर के राज्यों में पैर जमाने की कोशिश में लगी आम आदमी पार्टी पहाड़ों की सियासी चढ़ाई में कितनी ऊंचाई तक जा पाएगी? क्योंकि बाकी राज्यों की तरह हिमाचल के सियासी समीकरण नहीं है। आप भी यहां उतनी मजबूत नहीं। अगर वह यहां की लड़ाई लड़ने जा रही है तो उसके सामने क्या-क्या चुनौतियां हो सकती हैं।
AAP के सामने पहाड़ सी चुनौतियां
राज्य में आप का जो ढांचा है उस पर नजर डालें तो उसकी सबसे बड़ी चुनौती उसका अपरिपक्व संगठन है। उसके पास सदस्यों की संख्या सिर्फ सवा दो लाख है जबकि हिमाचल में 52 लाख से ज्यादा वोटर्स हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो पार्टी ने चारों सीटों पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ 2.06 फीसदी वोट ही मिले थे। पिछले साल सोलन नगर निगम चुनाव में भी आप ने सभी वार्डों में अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन उसे दो प्रतिशत से भी कम वोट मिले। ऐसे में उसका संगठनात्मक रुप से कमजोर होना उसके लिए चुनौती बन सकता है, जिसे मजबूत करने पार्टी जुटी हुई है।
क्या तीसरे विकल्प पर नजर
कहा यह जा रहा है कि आम आदमी पार्टी राज्य में खुद को तीसरे विकल्प के तौर पर पेश करना चाहती है लेकिन ऐसा है भी तो हिमाचल की राजनीति में इसका ज्यादा वजूद नहीं। क्योंकि कांग्रेस का हाथ छोड़ जब पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम ने हिमाचल विकास कांग्रेस पार्टी बनाई। पांच विधायक लेकर वे भाजपा के साथ गए और साल 1998 में गठबंधन की सरकार बनाई। लेकिन अगले पांच साल बाद ही उनकी पार्टी बिखर गई और साल 2003 में सिर्फ सुखाराम ही चुनाव जीत पाए। आखिरकार 2007 में उन्होंने कांग्रेस में ही अपनी पार्टी का विलय कर दिया।
एक और कोशिश नाकाम
इसके बाद साल 2012 के चुनावों में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष महेश्वर सिंह हिमाचल लोकहित पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में उतरे लेकिन सिर्फ वही जीत पाए और 2017 आते-आते उनकी पार्टी भी अस्तित्व विहीन हो गई। यहां बसपा, सपा, टीएमसी, एनसीपी जैसी पार्टियां भी पैर जमाने की कोशिश की लेकिन कोई भी टिक नहीं सका।