बीजेपी-जेडीयू का होगा गठबंधन, योगी को मिलेगा फायदा

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नई दिल्ली। बीजेपी उत्तर प्रदेश की सत्ता में अपने सियासी वर्चस्व को बनाए रखने के लिए हरसंभव कवायद में जुटी है. यूपी में छह महीने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी अपने सियासी समीकरण को मजबूत करने के लिए तमाम राजनीतिक दलों के साथ गठजोड़ बनाने में जुटी है. ऐसे में बिहार में एनडीए के सहयोगी नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ बीजेपी यूपी में भी चुनावी गठबंधन कर सकती है, जिसकी पठकथा भी लिखी जा चुकी हैं. सूबे में बीजेपी-जेडीयू एक साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो योगी के लिए नीतीश कुमार वोट भी मांग सकते हैं?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी जेडीयू का उत्तर प्रदेश में विस्तार करने जा रहे हैं. यूपी में अगले साल शुरू में होने वाले विधानसभा चुनाव में जेडीयू सियासी मैदान में ऐलान कर चुकी है. जेडीयू के यूपी में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के फॉर्मूले पर जल्द ही मुहर लग सकती है.

जेडीयू गठबंधन पर बीजेपी से बात फाइनल

सूत्रों के मानें जेडीयू और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच यूपी चुनाव में गठबंधन को लेकर दो बार बातचीत हो चुकी है. पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी जेडीयू के शीर्ष नेतृत्व की इस संबंध में बात हुई है. ऐसे में बीजेपी और जेडीयू के बीच यूपी में गठबंधन तय माना जा रहा है, जिस पर सार्वजनिक रूप से जल्द ही मुहर लग सकती है.

बता दें कि जेडीयू के महासचिव केसी त्यागी ने पिछले दिनों आजतक से बातचीत में कहा था कि हम एनडीए गठबंधन के साथ हैं. ऐसे में जेडीयू की पहली प्राथमिकता बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरने की रहेगी, लेकिन अगर सीटों को लेकर बात बनी तो हम किसी के भी साथ जा सकते हैं. इससे साफ संकेत मिल गए थे कि जेडीयू यूपी में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के फॉर्मूले पर काम कर रही है. सूत्रों की मानें तो जल्द ही गठबंधन पर फैसला हो सकता है.

यूपी में जेडीयू के विस्तार की संभावनाएं

यूपी में जेडीयू को अपने राजनीतिक विस्तार की काफी संभावनाएं दिख रही हैं और सामाजिक समीकरण भी अपने अनुकूल नजर आ रहा. है. बिहार से सटे यूपी के जिलों में कुर्मी समुदाय की बड़ी आबादी है. सूबे में कुर्सी समुदाय की आबादी यादवों के लगभग बराबर है. इसके अलावा अति पिछड़े समुदाय की भी अच्छी तादाद है. जेडीयू का दावा है कि बिहार से सटे पूर्वी यूपी में लगभग दो दर्जन सीटों पर उसका प्रभाव है.

जेडीयू की नजर सूबे के जिस कुर्मी, कोयरी और भूमिहार समुदाय पर है. वो मौजूदा समय में बीजेपी का परंपरागत वोटबैंक माना जाता है. बीजेपी ने यूपी में पार्टी की कमान कुर्मी समुदाय से आने वाले स्वतंत्र देव को दे रखा है तो सहयोगी तौर पर कुर्मी समाज से आने वाली अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) के साथ गठबंधन कर रखा है. ऐसे में नीतीश कुमार के जेडीयू के साथ भी हाथ मिलाकर बीजेपी कुर्मी वोटबैंक को पूरी तरह से मजबूत करने की जुगत में है.

यूपी में अगर बीजेपी और जेडीय के बीच गठबंधन तय हो जाता है तो साफ है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सूबे में योगी आदित्यनाथ के लिए वोट मांग सकते हैं. इसकी वजह यह है कि जेडीयू में नीतीश कुमार ही पार्टी का चेहरा माने जाते हैं और बीजेपी उन्हें सीटें देती है तो वो चुनाव प्रचार में उतर सकते हैं. दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार ने बीजेपी-जेडीयू प्रत्याशी के लिए वोट मांगते नजर आए थे.

यूपी में कुर्मी समुदाय की सियासत

यूपी में की करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कुर्मी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यूपी में कुर्मी जाति की संत कबीर नगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती और बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर जिलों में ज्यादा आबादी है. यहां की विधानसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय या जीतने की स्थिति में है या फिर किसी को जिताने की स्थिति में.

मौजूदा समय में यूपी में कुर्मी समाज के बीजेपी के छह सांसद और 26 विधायक हैं. केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री पंकज चौधरी और अनुप्रिया पटेल इसी समुदाय से आते हैं. इसके अलावा यूपी में योगी सरकार में कुर्मी समुदाय के तीन मंत्री है. इसमें कैबिनेट मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा, राज्यमंत्री जय कुमार सिंह ‘जैकी’ हैं. वहीं, हाल ही में मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार में जेडीयू कोटे से आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्री बनाया गया है, जो कुर्मी समुदाय से आते हैं.

कुर्मी-कुशवाहा-सैथवार मिलाकर 8 फीसदी से ज्यादा वोट हैं, जिस पर बीजेपी अपनी पैनी निगाह रख रही है. पूर्वांचल और अवध के बेल्ट में की करीब 32 विधानसभा सीटें और आठ लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कुर्मी, पटेल, वर्मा और कटियार मतदाता चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं. पूर्वांचल के कम से कम 16 जिलों में कहीं 8 तो कहीं 12 प्रतिशत तक कुर्मी वोटर राजनीतिक समीकरण बदलने की हैसियत रखते हैं. यूपी में रामस्वरुप वर्मा और सोनेलाल पटेल के बाद और इनके नहीं रहने पर देश में कुर्मी के बड़े नेता के तौर पर नीतीश कुमार ही हैं.