बिहार में अब शुरू होगी ‘H’ पॉलिटिक्स, नीतीश की चाल को नहीं समझ सके लालू-तेजस्वी?

Now 'H' politics will start in Bihar, Lalu-Tejashwi could not understand Nitish's move?
Now 'H' politics will start in Bihar, Lalu-Tejashwi could not understand Nitish's move?
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पटना: बिहार की सियासत में कब क्या होगा, ये तो सिर्फ नीतीश कुमार ही जानते हैं। यानी बिहार की राजनीति नीतीश कुमार से शुरू होती है, और वही खत्म। अगर ऐसा नहीं होता तो ललन सिंह जेडीयू अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं देते। एनबीटी ने पहले ही अपने दर्शकों को बता दिया था कि जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले ललन सिंह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। हुआ भी वही। एक तरह से नीतीश कुमार जेडीयू की कमान अपने हाथों में ले लिया है। अब बिहार की सियासी गलियारों में चर्चा हो रही है कि नीतीश कुमार ने बंद विंडो को अब खोल दिया है और किसी दिन विंडो दरवाजा बन सकता है।

दरअसल, नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होकर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाई थी। तब से एक ही बात की चर्चा हो रही थी कि नीतीश कुमार ने तो दरवाजे बंद कर दिए लेकिन विंडो अभी भी खुला है। विंडो को कब दरवाजा बनया जाएगा, यो नीतीश कुमार समय आने पर तय करेंगे। तब इस बात को लालू-तेजस्वी गंभीरता से नहीं ले रहे थे। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कई बार कहा कि नीतीश कुमार ने तो सिर्फ दरवाजे बंद किए, विंडो खुला है। शायद वही विंडो अब नीतीश कुमार खोलकर, लालू-कांग्रेस को जोरदार झटका देंगे।

2021 में जेडीयू अध्यक्ष बने थे ललन सिंह
ललन सिंह 2021 में जेडीयू अध्यक्ष बने थे। आरसीपी के पद खाली करने के बाद नीतीश कुमार ने ललन सिंह को अध्यक्ष बनाया था। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार के कहने पर ही ललन सिंह ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया। अध्यक्ष बनने के बाद ललन सिंह ने सबसे पहले आरसीपी को पैदल किया था। बाद में आरसीपी को मंत्री पद से ही हाथ धोना पड़ा था। फिर पार्टी से भी बाहर हो गए। आरसीपी अभी बीजेपी में हैं। आये दिन नीतीश कुमार और ललन सिंह के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं। कहा जाता है कि ललन सिंह और उनकी टीम ने हर उस शख्स को पार्टी से बाहर निकाला या परिस्थिति वश खुद निकल गए, जो कभी ललन सिंह का स्थान पार्टी में ले सकते थे। यानी 2 नंबर पर सिर्फ और सिर्फ ललन सिंह।

इतना ही नहीं, ललन सिंह और उनकी टीम ने, नीतीश कुमार के सबसे खास और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश को भी नहीं बख्शा था। नये संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर उपसभापति की हैसियत से हरिवंश ने राष्ट्रपति के संदेश को पढ़ा तो जेडीयू नेताओं ने हरिवंश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जेडीयू नेताओं ने तो यहां तक कह दिया था कि हरिवंश ने कुर्सी के लिए अपना जमीर तक बेच दिया। आने वाली पीढ़ी कभी माफ नहीं करेगी। हालांकि नीतीश कुमार कभी भी सार्वजनिक तौर पर हरिवंश के लिए कुछ नहीं कहा।

तो अब हरिवंश ही बनेंगे नीतीश के लिए दरवाजा?
कहा जाता है कि 2017 में जेडीयू की एनडीए में वापसी करवाने में हरिवंश नारायण सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कई बार जेडीयू नेताओं ने भी इस बात का जिक्र सार्वजनिक तौर पर किया। नीतीश कुमार जब एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ भी गए तो ना बीजेपी ने राज्यसभा के उपसभापति पद से हरिवंश को हटाने की कोशिश की, ना ही नीतीश कुमार ने कभी पहल की। समझा जा सकता है कि नीतीश कुमार एनडीए से बाहर रहकर भी कौन सा सियासी खेल खेल रहे थे। यही कारण था कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बार-बार इस ओर इशारा कर रहे थे।

प्रशांत किशोर कहते थे कि नीतीश कुमार जब भी किसी के लिए दरवाजे बंद करते हैं तो पीछे एक खिड़की खुली रखते हैं तकि समय आने पर उसे दरवाजा बनाया जा सके। यही कारण है कि नीतीश कुमार 20 साल से बिहार की राजनीति के अबूझ पहेली बने हुए हैं। लालू-नीतीश हों या बीजेपी के दिग्गज रणनीतिकारण, आज तक नीतीश का तोड़ नहीं निकाल पाए। प्रशांत किशोर जिस विंडो की बात कर रहे थे, वो और कोई नहीं हरिवंश ही हैं। अब कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार हरिवंश के माध्यम से विंडो को खिड़की बनाएंगे। यानी बिहार में हरिवंश वाली पॉलिटिक्स का समय आ गया है।