छत्तीसगढ़ के इस गांव की कहानी है दर्दनाक, ना सजा मंडप.. ना हुई विदाई.. 3 साल से नहीं बजी शहनाई

The story of this village of Chhattisgarh is painful, no decorated pavilion... no farewell... shehnai has not been played for 3 years
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सक्ती: आज भले ही हम 21वीं सदी में जी रहे हो ,लेकिन आज तक कुछ ऐसी बुराईयां हैं, जो इंसानों का पीछा ही नहीं छोड़ रही हैं. इन सब बुराईयों में से एक सामाजिक बहिष्कार भी है, जिसका सामना पिछले 3 सालों से सक्ती जिला कार्यालय से लगे गांव सकरेली बाराद्वार में लगभग 80-85 गरीब आदिवासी परिवारों को करना पड़ रहा है. आलम यह है कि इन परिवारों का जीना मुश्किल सा हो गया है. इनके ही समाज के लोग इनसे बात करना नहीं चाहते हैं और न ही इनसे किसी भी प्रकार का लेन-देन करना चाहता हैं. दूध वाला इनको दूध नहीं देता और सब्जी वाला इनको सब्जी बेचने से इंकार कर देता है.

ग्रामीण संतोष कंवर ने बताया कि उनके गांव आमादहरा में 3 साल पहले शासकीय भूमि में प्रोफेसर भुनेश्वर कवर के द्वारा गांव के चौक के पास अवैध मकान निर्माण करवाया जा रहा था. इसकी शिकायत के बाद जांच में शिकायत सही पाए जाने पर प्रशासन ने उनके अवैध कब्जे को तोड़ दिया. इसको लेकर भुनेश्वर कवर तिलमिला उठा और उसने अपने अच्छे पहचान का गलत उपयोग करते हुए कवर खालसा समाज के पदाधिकारियों के साथ मिलकर लगभग 85 परिवारों का सामाजिक बहिष्कार करवा दिया.

तीन साल से नहीं हुई शादी
लक्ष्मीन कंवर ने बताया कि जब से वे समाज से बहिष्कृत किए गए हैं, तब से समाज के लोग उनसे रिश्ता नहीं रखना चाहते और उन्हें किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में नहीं बुलाया जाता है. वहीं ग्रामीणों ने नम आंखों से बताया कि हम अपने माता-पिता के मरने पर भी अपने रिश्तेदारों के यहां नहीं जा सकते हैं. अगर हम उनके घर जाएंगे, तो उनको भी समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा. इसके साथ-साथ अर्थदंड भी लगाया जाएगा. प्रादेशिक स्तर के समाज से बाहर होने की वजह से उनके विवाह योग्य बेटे-बेटियों की शादी नहीं हो पा रही है, क्योंकि पूरे प्रदेश में सामाजिक बहिष्कृत होने की वजह से उनसे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता है.

चुनाव का करेंगे बहिष्कार
पीड़ितों ने बताया कि काफी लंबे समय से उन्हें समाज से दूर रखा गया है और इसकी शिकायत भी उन्होंने तहसीलदार और थाना प्रभारी बाराद्वार से की है. मगर मामले में कार्यवाही न करते हुए उनको मात्र आश्वासन दिया गया. वहीं आवेदन में साफ-साफ लिखा गया है कि अगर 10 दिन के भीतर हमने समाज को 23 लाख 10 हजार रुपए नहीं दिए, तो हमें हमेशा के लिए समाज से बाहर रखा जाएगा. ग्रामीणों ने मीडिया से बात करते हुए कहा है कि अगर जल्द ही हमारी मांग पूरी नहीं होती है, तो हम लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे.

सीएम से लगाई गुहार
आपको बता दे कि पीड़ितों ने मीडिया के माध्यम से सीएम विष्णु देव साय से गुहार लगाकर कहा है कि हम गरीब आदिवासी हैं, 23 लाख रुपए कहा से लाएंगे. हमें हमारे समाज में बिना कोई जुर्माना दिए फिर से रखने के लिए पदाधिकारियों को निर्देश दें. इससे पहले प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और उनके कार्यकाल से ये समस्या इनका पीछा नहीं छोड़ रही है. मगर अब वर्तमान में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की साय सरकार है, जिसमें मुख्यमंत्री भी आदिवासी ही है. इसलिए हम गांववासी मुख्यमंत्री से इतना उम्मीद करते हैं कि वो हमारे दु:ख को समझेंगे.