यूपी में वोटर्स के ये 5 डर तय करेंगे केंद्र में सरकार किसकी बने

These 5 fears of voters in UP will decide who will form the government at the Centre.
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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में तीन चरणों के मतदान के बाद अब मतदान अपेक्षाकृत समृद्ध पश्चिमी क्षेत्रों से मंडल बेल्ट की ओर बढ़ रहा है. जहां सरकार की भूमिका और रोजमर्रा की जिंदगी में प्रशासन की मदद का प्रभाव अधिक बढ़ जाता है. इसी कारण मतदाताओं के आम जनजीवन में सरकारों का महत्व बढ़ जाता है. अभी तक कुल 23 सीटों पर चुनाव संपन्न हो चुका है. उत्तर प्रदेश में जिस ट्रेंड पर चुनाव हो रहा है वो 2024 से बहुत अलग है. इस बार वोटर्स उत्साह में वोट देने नहीं जा रहा है. यह मान लिया गया है मतदान का प्रतिशत अब बढ़ने वाला नहीं है. इस बार का वोटर्स डर के चलते वोट देने वाला है. यूपी में कई तरह का डर लोगों को सिर माथे चढ़कर बोल रहा है. पूर्वी यूपी में आर्द्रता वाली गर्मी को सहन करना और मुश्किल हो जाता है. जून की गर्मी लोगों को आलसी बना देती है.प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का ‘पहले मतदान, फिर जलपान’ का आह्वान काम करता नहीं दिख रहा है. बूथों पर मौजूद बीजेपी कार्यकर्ता मानते हैं कि मतदान के प्रति उत्साह उतना नहीं हैं. लेकिन इन सबके बावजूद पूर्वी यूपी में राम मंदिर निर्माण, केंद्र सरकार की लाभार्थी योजनाओं का जलवा हर समुदाय में है. खा पीकर अघाए हुए लोग भले मतदान केंद्रों तक न पहुंचे पर, जिन्हें डर है वो वोट देने जरूर पहुंचेंगे. ये डर अलग-अलग किस्म के हैं और इनका फायदा भी अलग-अलग पार्टियों को होता दिख रहा है.

1-लाभार्थियों को सरकारी योजनाओं के बंद होने का डर

मुफ्त राशन, किसान सम्मान निधि, मुफ्त आवास योजना आदि जिसको मिल रहा है वो उसे खोना नहीं चाहता. एक तबका ऐसा हो जिसे ये डर हो गया है कि अगर ये सरकार नहीं रही तो उसको मिलने वाली ये सुविधाएं खत्म हो जाएंगी. हालांकि स्थानीय भ्रष्टाचार के मामले में भाजपा की छवि उतनी चमकदार नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी. आवास योजना का भुगतान जारी करने में कटौती की मांग करने वाले बिचौलियों के आरोप काफी आम हैं. द हिंदू से बातचीत में उत्तर प्रदेश के एक बीजेपी विधायक ने कहा कि पार्टी को अपनी भ्रष्टाचार विरोधी छवि पर तब असर पड़ा जब उसने सभी स्तरों पर बड़े पैमाने पर बाहरी लोगों को पार्टी में आने की अनुमति दी. विधायक ने इसे बड़े मजेदार अंदाज में समझाया. हमारा शीर्ष नेतृत्व स्वच्छ है लेकिन वे शाकाहारियों की तरह हैं जिन्होंने मांसाहारियों को घर में अपने लिए एक अलग रसोईघर बनाने की जगह दी है. समस्या यह है कि शाकाहारी लोग अपनी रसोई तो साफ रख रहे हैं, लेकिन वे यह नहीं देख रहे हैं कि घर के मांसाहारी हिस्से में क्या पक रहा है?

2-आरक्षण खत्म होने का डर

विपक्ष जमीनी स्तर पर मतदाताओं को यह बताने में काफी हद तक सफल हुआ है कि यदि भाजपा को भारी बहुमत मिलता है तो आरक्षण खत्म हो सकता है. विपक्ष ने इस बात को बहुत निचले लेवल पर जाकर प्रचारित प्रसारित किया है. आम लोगों को यह दिख रहा है कि पिछले पांच वर्षों में नौकरियां घटी है. शिक्षा में बढ़ते निजीकरण और सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण उनकी आशंका को और बढ़ावा मिल रहा है. सेना में घटते अवसर और अग्निपथ स्कीम के बारे में इस तरह प्रचारित किया गया है कि इसका कोई फायदा नहीं होने वाला है. पीएम मोदी लगातार हर सभा में इस संबंध में बोल रहे हैं कि जब तक वो जीवित हैं कोई भी माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता. फिर भी आरक्षण का लाभ पाने वाली जनता इस डर में जी रही है कि उनका आरक्षण भविष्य में खत्म हो सकता है.

3-कानून व्यवस्था के खराब होने का डर

पूरे प्रदेश में पश्चिम से पूर्व तक उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बारे में एक बात जो कॉमन है वो ये है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था पिछली सरकारों से बेहतर है. व्यापारी वर्ग, महिलाओं और स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियां एक सूत्र में कहती हुईं मिल रही हैं कि अगर कोई दूसरी सरकार आती है तो हो सकता है कि कानून व्यवस्था फिर एक बार पहले जैसी न हो जाए. दरअसल घर और जमीन पर कब्जा, दिनदहाड़े लूट पाट, चोरी आदि की घटनाओं में पहले के मुकाबले कमी के चलते लोगों को चैन से सोने की आदत पड़ चुकी है. अब फिर से लोग मुहल्लों में रात भर जागते रहो की आवाज नहीं बुलंद करना चाहते हैं.

4-‘यादव राज’ का डर

ग्रामीण क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था में सामान्य सुधार से मिली सुरक्षा की भावना भाजपा के लिए सोशल इंजीनियरिंग की तरह काम कर रही है. खासकर गैर-यादव ओबीसी और एमबीसी और गैर-जाटव दलितों के बीच. यह मुफ़्त राशन योजना जितनी ही प्रभावशाली साबित हो रही है. यदि अधिक नहीं तो – और सत्ताधारी पार्टी की मदद कर रही है. लोग अभी भी उन दिनों को नहीं भूले हैं जब प्रभावशाली जाति समूहों के अपराधियों को स्थानीय थाने से खुली छूट मिल जाती थी. कई भर्तियों में एक ही जाति के लोगों की बहुतायत होती थी. थानों और जिलों में महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर भी एक ही जाति के लोगों का दबदबा होता था. हिंदू से बातचीत में एटा निर्वाचन क्षेत्र के कासगंज क्षेत्र के एक युवा किसान गोपाल लोधी ने कहते हैं कि जो लोग दिन के उजाले में बिजली के तार चुराते थे,अब वे आवाज भी नहीं कर सकते.

5-हिंदुओं और मुसलमानों का डर

मुसलमानों के अंदर एक बात यह बैठ चुकी है कि अगर बीजेपी की सरकार आती है तो उनकी दुर्गति हो जाएगी. बीजेपी भले ही हर सभा में यह समझा रही है कि सरकारी योजनाओं का सबसे अधिक लाभ मुसलमानों को ही मिला है पर यह कोई मानने को तैयार नहीं है. शायद यही कारण है कि इस बार मुसलमान गोलबंद होकर वोट दे रहे हैं. हर संसदीय सीट पर ऐसी कोशिश की जा रही है कि वोट आपस में बंटे नहीं. इसी तरह हिंदुओं को लगता है कि अगर बीजेपी की सरकार नहीं रही है तो फिर से थानों में एक विशेष समुदाय की मर्जी ही चलेगी. शायद यही कारण है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में रहने वालों हिंदुओं का वोट चाहे वो किसी भी जाति के हों बीजेपी को ही जा रहे हैं.