Tiger 3 Review: महान पाकिस्तान को बचाने उतरे सलमान खान, देखने वालों ने पीटा सिर

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हिंदी सिनेमा को पाकिस्तान से नफरत और उसी से मोहब्बत का एक ऐसा फॉर्मूला फिल्म ‘एक था टाइगर’ में 11 साल पहले मिला था कि उसकी राह पर चलकर कई हिंदी फिल्में पाकिस्तान को एक अच्छा मुल्क दिखाने की कोशिश करती रही हैं। टाइगर की तो ससुराल ही पाकिस्तान है और वह कहता भी है, ‘ससुराल मुसीबत में हो तो दामाद को मदद के लिए आना ही चाहिए।’ यशराज फिल्म्स की जासूसी दुनिया की पांचवीं फिल्म ‘टाइगर 3’ दिवाली के अनार, पटाखे, फुलझड़ी, झुरझुरी और मस्ताब सब लेकर बॉक्स ऑफिस पर पहुंची है। फिल्म में पाकिस्तान से प्रेम का पैगाम है। और, वहां की बच्चियों की बजाई भारतीय राष्ट्र गान की एक भावुक धुन भी। क्लाइमेक्स से ठीक पहले बजे इस राष्ट्रगान के समय दर्शक जिस तरह भावुक होते हैं, वहीं भावुकता अगर पूरी फिल्म में दो-चार बार और इसके पटकथा लेखक श्रीधर राघवन ने मिलाई होती तो ‘पठान’ के बाद का इस जासूसी दुनिया का सफर शानदार और बेहतरीन होता। फिल्म ‘टाइगर 3’ देखने के लिए सलमान खान के दीवानों का मेला सुबह से सिनेमाघरों में लगा रहा। ऐसा मेला सलमान के चाहने वालों का उनकी सिनेमाघर में रिलीज होने वाली हर फिल्म के पहले शो पर लगता रहा है। यही इस बंदे का तिलिस्म है। सलमान खान का तिलिस्म सिर्फ एक इंसान तोड़ सकता है और वह हैं खुद सलमान खान। टेलीविजन पर सलमान खान इतना दिखते रहे हैं कि बड़े परदे पर उनको देखने का चाव जाता रहा है। लेकिन, ‘टाइगर’ खुद कहता है, ‘टाइगर जब तक मरा नहीं, टाइगर तब तक हारा नहीं।’

दम भर छलांग लगाने से चूका टाइगर
कोशिश तो बहुत हुई कि फिल्म ‘टाइगर 3’ पहले दिन की ओपनिंग का नया रिकॉर्ड इस जासूसी दुनिया की फिल्मों के बीच बना सके, लेकिन फिलहाल ये दिवाली पर सबसे अच्छी ओपनिंग के रिकॉर्ड से संतोष करती दिखती फिल्म है। ‘भारत’ की ओपनिंग का रिकॉर्ड तोड़ना इसकी पहली चुनौती है। ‘पठान’ या ‘जवान’ तक पहुंचना इस टाइगर की छलांग से दूर ही है। 2012 में आई ‘एक था टाइगर’ ने सलमान को पांच साल की जो संजीवनी दी थी वह 2017 तक चली और उसके बाद आई ‘टाइगर जिंदा है’ उनकी गाड़ी यहां तक खींच लाई। अब बारी ‘टाइगर 3’ की है। टाइगर हालांकि इससे पहले इसी साल की शुरुआत में पठान को बचाने आ चुका है और बड़े परदे पर अपने इस अवतार में तालियां भी बटोर चुका है। लेकिन, यशराज फिल्म्स की जासूसी दुनिया का ये सबसे सीनियर जासूस इकलौता देसी जासूस है जो शादीशुदा है और जिसके एक बड़ा हो चुका बेटा भी है। और, ये बेटा ही पटकथा के बाद फिल्म ‘टाइगर 3’ की दूसरी बड़ी कमजोरी है। वतन के नाम पर वतन के नौजवां शहीद हों, गाने वाले हिंदी सिनेमा में दुनिया भर की पुलिस को चकमा देते रहे एक रॉ एजेंट के घर में घुसकर कोई आईएसआई अफसर कारनामा कर जाए और उसे खबर तक न हो, इससे कमजोर किरदार ‘टाइगर’ का कुछ और हो ही नहीं सकता।

काम नहीं आया नया शैतान और पुराना पठान
ख़ैर, टाइगर ने पिछली फिल्म में नर्सों को बचाया था और क्लाइमेक्स में अपनी बीवी जोया को। जिस बच्चे की मां को वह मौत के मुंह से निकाल लाया था, उसी बच्चे को टाइगर की कमजोरी बताने वाली फिल्म ‘टाइगर 3’ के पास एक तरह से देखा जाए तो इस जासूसी दुनिया को पहली बार ठीक से स्थापित करने का बेहतरीन मौका था। 12 मसाले और 56 जायकों वाली इस फिल्म में सब कुछ है। देशभक्ति का उफान है। मोहब्बत का उनवान है। एक नया शैतान भी है और साथ में पठान तो है ही। बस, अगर कुछ इस फिल्म में नहीं है तो वह है, एक अदद आत्मा। यशराज फिल्म्स की क्रिएटिव टीम को स्पेशल इफेक्ट्स के जरिये ही पूरी फिल्म बना देने की जो नई बीमारी लगी है, उसके इलाज के लिए इस पूरी टीम को मार्वल स्टूडियोज की बीते दो तीन साल में रिलीज हुई फिल्मों को लेकर इन फिल्मों के बीते 20 साल से प्रशंसक रहे युवाओं से बात करनी चाहिए। पठान और टाइगर के बीच के सीन इतने फिल्मी हैं, कि दोनों खुद शोले का जिक्र बीच में ले आते हैं। इस पूरी सीक्वेंस से भावनाओं का जो उबाल दर्शकों में आना चाहिए था, उसे रचने में इसके निर्देशक मनीष शर्मा पूरी तरह चूक गए हैं।

कहानियां सुनाने में बीत गई फिल्म
फिल्म ‘टाइगर 3’ एक ऐसी फिल्म है जिसे देखने वे सब आएंगे जिन्हें यशराज फिल्म्स की जासूसी दुनिया का चस्का लग चुका है। यहां ध्यान ये रहे कि इस फ्रेंचाइजी की दूसरी फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ में एक बार पहले भी मामला लड़खड़ा चुका है। फिल्म ‘वॉर’ और ‘पठान’ हिट हुई हैं तो अपनी अपनी कहानियों और कलाकारों के चलते। इनके हिट होने में टाइगर का कोई हाथ नहीं है। ‘टाइगर 3’ में पठान की एंट्री पूरी तरह बेकार गई है और वहीं कबीर की एंट्री भी ऐसे समय पर होती है जब तक दर्शक फिल्म से पूरी तरह निराश हो चुके हो चुके होते हैं। अगर ये फिल्म ‘वॉर 2’ का ट्रेलर है तो बहुत खराब ट्रेलर है। इस दृश्य को देखने के बाद ‘वॉर 2’ को लेकर चर्चाएं अभी से शुरू हो चुकी हैं। हां, जूनियर एनटीआर फिल्म में नहीं हैं। इतवार को दिवाली के दिन फिल्म रिलीज हुई है तो भी सुबह सुबह के शो में दिखी भीड़ इस बात का तो सबूत है कि सिनेमाघरों में फिल्में देखने वालों का ओटीटी मोह अब खत्म होने को है। लेकिन, उन्हें बस एक धांसू फिल्म चाहिए। धांसू एक्शन चाहिए। एक-दो गुनगुनाने लायक गाने चाहिए और चाहिए हर 15-20 मिनट बाद जेम्स बॉन्ड की फिल्म सरीखा एक ट्विस्ट। आदित्य चोपड़ा ने कहानी में इसका पूरा ख्याल भी रखा है। लेकिन, मामला श्रीधर राघवन की पटकथा ने खराब किया है। सारे कलाकार न जान

े क्यों, कहानियां ही सुनाते रहते हैं जबकि सिनेमा का ये पहला नियम है कि इसमें कहानी बताकर नहीं दिखाकर आगे बढ़ाई जाती है। अंकुर चौधरी के संवाद एक दो जगह तो चुटीले हैं, लेकिन सलमान खान जिस तरह सारे संवाद एक ही स्टाइल से बोलने के मास्टर होते जा रहे हैं, उसके चलते उनके साथ सिनेमा के नए प्रयोगों की गुंजाइश अब करीब करीब खत्म हो चुकी है। फिल्म का इंटरवल के पहले का हिस्सा बहुत ही कमजोर है और इंटरवल के बाद दर्शकों का सारा समय शाहरुख खान और ऋतिक रोशन के इंतजार में ही बीत जाता है। हर पल परदे पर कुछ न कुछ रफ्तार से घटता ही रहता है और जब तक फिल्म खत्म होती है, दर्शकों के पास ये सोचने का मौका ही नहीं होता कि कहां मामला थोड़ा लचक गया। हां, फिल्म खत्म होने पर सोचना जरूर पड़ता है कि सुबह पांच बजे उठकर छह बजे का शो देखना क्या वाकई जरूरी था?

वाईआरएफ ने गंवाया बेहतरीन मौका
मसाला फिल्मों की सबसे हिट फ्रेंचाइजी बन चुकी यशराज स्पाई यूनिवर्स की ताजातरीन फिल्म ‘टाइगर 3’ की अवधि 156 मिनट है और इसकी कहानी के हिसाब से बहुत ज्यादा है। फिल्म इतनी बढ़िया तरीके से शुरू होती है कि लगता है, हां, अब मामला जमेगा। जोया का अतीत दर्शकों को पता चलता है। इमरान हाशमी भी जवानी की रौनक के साथ दिखते हैं। गोपी को बचाने टाइगर आता है तो पूरे हॉल में सीटियां बजती हैं, लेकिन अगले ही पल टाइगर को शौक चढ़ जाता है टॉम क्रूज बनने का। फिल्म यहीं धड़ाम हो जाती है। वैसे तो ये होगा नहीं लेकिन सलमान खान को अपनी पिछली 10 फिल्में एक बार अकेले बैठकर इत्मीनान से देखनी चाहिए। और, ये देखना चाहिए कि बतौर एक अभिनेता, आखिरी बार वह सलमान खान से अलग कब दिखे थे? पूरी फिल्म में अपनी आदत के हिसाब से इस बार भी वह हर जगह बस गुर्राते ही दिखते हैं। गनीमत ये है कि टाइगर के पारिवारिक दृश्यों में वह अपना लहजा नरम कर लेते है। कैटरीना कैफ पर अब उम्र का असर साफ दिखने लगा है। इसके बावजूद टॉवेल फाइट सीक्वेंस और चेज सीक्वेंस में भी उनका करिश्मा असर करता है। अपनी जगह बनाने रखने के लिए मेहनत भी उन्होंने काफी की है।

वक़्त को बदलते देर नहीं लगती
फिल्म ‘टाइगर 3’ में एक मिसरा दो बार पढ़ा जाता है, ‘ऐ बुरे वक्त जरा तमीज से पेश आ, क्योंकि वक्त को बदलते देर नहीं लगती’। इमरान हाशमी को इस फिल्म में विलेन बनाकर यशराज फिल्म्स ने फिल्म ‘मशाल’ से शुरू हुई स्थापित नायकों को खलनायक की तरह पेश करने की परंपरा को नया आयाम दिया है। इमरान की कद काठी हालांकि हिंदी सिनेमा में न नायकों की स्थापित छवि से मेल खाती है और न खलनायकों से, इसके बावजूद इस किरदार में उन्होंने अपना सब कुछ झोंक दिया है। बस, इमरान हाशमी के पास अभिनय की कलाएं सीमित हैं और इसे ढांकने के लिए निर्देशक मनीष शर्मा को उनकी सफेद होती दाढ़ी और लंबे लंबे बालों से ही मदद मिलती है। मनीष ने इस फिल्म में अपनी तरफ से ऐसा कुछ खास नही किया है जिससे उनकी निर्देशकीय कौशल का कोई नया अध्याय लिखा जाए। उन्होंने बस स्टंट डायरेक्टर्स पर पूरी तरह टिकी इस फिल्म को आदित्य चोपड़ा के सोचे नजरिये के हिसाब से एक तय खाके (फॉर्मेट) में उतार दिया है। फिल्म ‘टाइगर 3’ की ये कमजोरियां यशराज स्पाई यूनिवर्स की अगली दोनों फिल्मों ‘वॉर 2’ और ‘टाइगर वर्सेस पठान’ की बुनियाद बनाने जा रही है और यही इन दोनों फिल्मों के निर्देशकों अयान मुकर्जी और सिद्धार्थ आनंद के लिए असली चुनौती भी साबित होने वाली है। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि ‘टाइगर 3’ ये दोनों निर्देशक जरूर देखेंगे और इस जासूसी दुनिया के इस बुरे वक्त को अपनी-अपनी फिल्मों में बदलेंगे जरूर।