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पटना: क्या बिहार में एक और सियासी बदलाव होगा? क्या चिराग पासवान (Chirag Paswan) बीजेपी के अधिक करीब आ रहे हैं? क्या चिराग की अपने चाचा पशुपति कुमार पारस (Pashupati Paras) से भी फिर सुलह हो सकती है? ये तमाम सवाल ऐसे समय उठे हैं जब चिराग पासवान पिछले कुछ दिनों से बीजेपी के अधिक करीब दिख रहे हैं। अभी बिहार में समाप्त हुए दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के दौरान उन्होंने खुलकर बीजेपी को समर्थन दिया था।
घर वापसी के आसार
हालांकि घर वापसी पर चिराग पासवान हमेशा से कहते रहे हैं कि उनका बिहार में एनडीए से गठबंधन टूटा था और वह भी नीतीश कुमार के कारण जबकि दिल्ली में एनडीए से कभी गठबंधन नहीं टूटा। उनके पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद जब चाचा पशुपति कुमार पारस पार्टी तोड़कर केंद्र सरकार में शामिल हुए, तब भी चिराग कभी भी केंद्र सरकार पर हमलावर नहीं रहे। नरेंद्र मोदी की वह लगातार तारीफ करते रहे और विपक्षी दलों से दूरी भी रखी। बिहार में भी उनके निशाने पर नीतीश ही रहे। बिहार विधानसभा चुनाव में भी भले एनडीए से अलग होकर लड़े लेकिन उन्होंने चुनाव में खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान भी बताया था।
बीजेपी भी सुलह करवाने के मूड में
वहीं बीजेपी का मानना है कि चिराग पासवान अपने चाचा से सुलह करें। इसका रास्ता हमेशा से खुला है। बीजेपी दोनों में सुलह करवाना चाहती है। वहीं पिछले कुछ दिनों से केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की लगातार चर्चाएं हो रही हैं। इसमें चिराग के भी सरकार में शामिल होने की संभावना बनती दिख रही है, जबकि चिराग से अलग होने के बाद उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को केंद्र में मंत्री बना दिया गया था। लेकिन बिहार में नीतीश कुमार के बीजेपी से अलग होने के बाद अब समीकरण बदल गए हैं। बीजेपी को भी अब बिहार में चिराग की अधिक जरूरत महसूस हो रही है तो चिराग पासवान के पास भी अब सीमित विकल्प हो गए हैं।
पारस का क्या होगा?
ऐसे में सवाल उठता है कि पशुपति कुमार पारस का क्या होगा? बीजेपी उन्हें भी पूरी तरह इग्नोर करना नहीं चाहेगी। इसके पीछे अहम कारण है कि पारस की नीतीश कुमार से करीबी रही है। जब पारस चिराग की पार्टी तोड़कर एनडीए में शामिल हुए तो तब इसमें नीतीश कुमार का ही हाथ माना गया था। जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ा तब पशुपति पारस के गुट के अगले कदम के बारे में उत्सुकता उठी। लेकिन बीजेपी उन्हें मनाकर रखने में सफल रही।
क्या अब पारस चिराग को दोबारा अपना नेता मानेंगे?
बिहार में जो सियासी हालात हैं, उनमें बीजेपी के पास कुछ भी खोने का जोखिम लेने का विकल्प नहीं है। ऐसे में उसके लिए आदर्श स्थिति होगी दोनों चाचा-भतीजा साथ रहें। हालांकि सवाल यह है कि क्या अब पारस चिराग को दोबारा अपना नेता मानेंगे, जबकि नीतीश उन्हें बेहतर सियासी विकल्प देने का भरोसा दिला सकते हैं? इसका जवाब भी मिलेगा, जब चिराग सीधे तौर पर एनडीए में खुद को औपचारिक रूप से शामिल होने की घोषणा करेंगे।