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बिहार में कोसी अंचल के डॉन कहे जाने वाले पप्पू देव की रविवार सुबह पुलिस हिरासत में मौत हो गयी है. सहरसा पुलिस ने बताया है कि देव की मौत छाती में दर्द की शिकायत होने के बाद इलाज के दौरान हुई है.
वहीं, स्थानीय मीडिया और पप्पू देव के पार्थिव शरीर की जो तस्वीरें सामने आई हैं, उसमें उनके शरीर पर चोट के निशान देखे जा सकते हैं.
हालांकि, बीबीसी ने जब इस संदर्भ में पप्पू देव की पत्नी पूनम देव से बात की तो उन्होने स्पष्ट तौर पर कहा, “मैं पटना में रहती हूं और मुझे अभी तक ऐसी कोई जानकारी नहीं है. उनकी मौत की वजह पिटाई है या नहीं, ये मैं जाकर, देख कर ही बता पाऊंगी.”
क्या है पूरा मामला?
सहरसा पुलिस की ओर से जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़, 18 दिसंबर की शाम सहरसा ज़िले के सदर थाना क्षेत्र के सराही में पप्पू देव और उनके समर्थक एक ज़मीन की जबरन घेराबंदी करवाने की कोशिश कर रहे थे.
इसकी सूचना पर पुलिस ने पप्पू देव को गिरफ़्तार किया जिसके बाद पप्पू देव और उनके समर्थकों और सहरसा पुलिस के बीच फायरिंग हुई.
इस बीच पप्पू देव ने पुलिस से बचने के लिए एक दीवार से छलांग लगाई जिसके बाद उसे छाती में दर्द महसूस हुआ. पुलिस का कहना है कि रात दो बजे उन्हें सदर अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया.
सदर अस्पताल में चिकित्सकों ने इलाज के लिए रेफर किया था लेकिन इस दौरान सुबह 4 बजे पप्पू देव की मौत हो गई.
स्थानीय पत्रकार तेजस्वी ठाकुर बताते है, “दो साल पहले जेल से छूटने के बाद पप्पू देव लगातार ज़मीन के कारोबार में सक्रिय हो गए थे. जमीन पर जबरन कब्जा, उसकी घेराबंदी करना और अपने बाहुबल का वो इस्तेमाल करते थे. उनकी मौत की वजह भी ये ज़मीन ही बनी. लेकिन पुलिस का ये कहना कि उनकी हत्या छाती में दर्द होने से हुई है, ये ग़लत है. उनकी मौत बेरहमी से पिटाई के चलते हुई है.”
\90 के दशक में बिहार के अपहरण उद्योग के साथ – साथ बिहार के सहरसा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, खगड़िया और बेगूसराय में पप्पू यादव का नाम भी चर्चा में रहा था.
पूर्व आईपीएस अमिताभ कुमार बताते हैं, “90 के दशक में कोसी इलाके में बाहुबलियों के तीन ध्रुव थे. आनंद मोहन गुट, पप्पू यादव गुट और पप्पू देव का गुट. तीनों जाति आधारित राजनीति कर रहे थे. यानी राजपूत, यादव और भूमिहार. पप्पू देव और आनंद मोहन गैंग में लगातार खींचतान की ख़बरें भी आम थीं.”
‘विधायक’ और ‘कंपनी’ के उपनाम से चर्चित पप्पू देव मूल रूप से सहरसा जिले के बिहरा गांव के थे.
इनके पिता दुर्गानंद देव पूर्णिया में बिजली विभाग में कार्यरत थे. पप्पू देव का नाम तकरीबन 1994 के आस-पास सुर्खियों में आया.
पत्रकार तेजस्वी बताते हैं, “पूर्णिया में रहते हुए ये बूटन सिंह गिरोह में शामिल हो गए थे. लेकिन उस समय बेशकीमती यूएसए कार्बाइन और एके 47 लेकर वो इस गिरोह से भाग आए और सहरसा में अपना गैंग तैयार किया.”
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, पप्पू देव के आतंक का विस्तार बिहार से नेपाल तक कहा जाता है.
वो नेपाल के विराटनगर के व्यवसायी तुलसी अग्रवाल का अपहरण कर करोड़ों की फिरौती वसूलने को लेकर चर्चा में आए तो मुजफ्फरपुर के रजिस्ट्रार सूर्यदेव नारायण सिंह के अपहरण, सब रजिस्ट्रार सुरेश कुमार और अजय कुमार की हत्या में उनका नाम सामने आया था.
दैनिक भास्कर की ख़बर के मुताबिक़, पप्पू देव पर बिहार के विभिन्न थानों में 150 से ज्यादा रंगदारी, अपहरण और हत्या के मामले दर्ज हैं.
बिहार में अपराधों पर विस्तारपूर्वक रिपोर्ट्स करने वाली पत्रिका तापमान में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, “साल 2003 में नेपाल के विराटनगर के पास 50 लाख की जाली भारतीय मुद्रा के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे जिसके बाद वो 6 जनवरी 2014 तक नेपाल की जेल में रहे.
लेकिन इसके बाद ही बिहार पुलिस ने उन्हे दोबारा जनवरी 2014 में ही नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र में गिरफ़्तार कर लिया जिसके बाद वो तकरीबन 6 साल तक जेल में रहे.”
राजनीति और ठेकेदारी में भी आजमाई किस्मत
पप्पू देव और उनकी पत्नी पूनम देव, राजनीति के साथ साथ कंस्ट्रक्शन बिजनेस में भी हाथ आजमा रहे थे.
पूनम देव ने बीबीसी को बताया , “हम लोग देव कंस्ट्रक्शन नाम की एक कंपनी चलाते हैं जिसकी मैं मैनेजिंग डायरेक्टर हूं. हम लोग राज्य और केन्द्र सरकार के सड़क निर्माण का ठेका लेते है.”
अगर राजनीति की बात करें तो पप्पू देव और उनकी पत्नी दोनों ही ने अपना भाग्य आजमाया था. पूनम देव ने साल 2005 में बिहपुर (भागलपुर) से लोजपा के टिकट से और महिषी (सहरसा) से साल 2015 में विधानसभा चुनाव लड़ा था.
वही, पप्पू देव ने साल 2020 में खगड़िया के परबत्ता से चुनाव लड़ने का एलान किया था.