बिहार की सियासी खिचड़ी! किस पटरी पर दौड़ेगी नीतीश-PK की गाड़ी?

Bihar's political khichdi! On which track will Nitish-PK's car run?
Bihar's political khichdi! On which track will Nitish-PK's car run?
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पटना : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मुलाकात हुई। इनका मिलना अपने-अपने मिशन की असफलता पर उस अंदाज में मिलने जैसा है, जो कवि भारतेंदु की इस कविता में व्यक्त हुआ है-

रोबहुं सब मिलिं आवहु भारत भाई,
हां हां भारत दुर्दशा देखी न जाई।
सो, असफलता के धरातल पर जाने-अंजाने कई कारण बने, जो नीतीश कुमार और पीके के मिलन की सूरत तैयार हुई। ये मौका उपलब्ध भी हुआ तो राज्यसभा के टिकट से बेदखल हुए पवन वर्मा की ओर से।

मिशन नमो हटाओ की असफलता का आगाज?
नीतीश कुमार को नमो हटाओ मिशन की असफलता का बोध तो दिल्ली के तीन दिवसीय यात्रा के दौरान ही हो गया था। राजनीतिक गलियारों में तब नीतीश कुमार और राहुल गांधी के मुलाकात को लेकर ये चर्चा शुरू हो गई थी। राहुल गांधी की तरफ से वार्म वेलकम का एहसास नीतीश कुमार को नहीं हुआ। केजरीवाल से निराशा ही हाथ लगी। वो भी इस वजह से कि आप पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए पहले से ही नरेंद्र मोदी बनाम केजरीवाल की लड़ाई को धार देने में लगी है। इसके पहले तो निराशा के भाव तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव ने भी भर दी थी, जब उन्होंने वन फ्रंट की जगह थर्ड फ्रंट बनाने की सलाह दी। ममता बनर्जी का भी कांग्रेस विरोध मिशन में आड़े आ रहा था। अखिलेश यादव का इग्नोरेंस पहले ही अखबार की सुर्खियां बन चुकी थी।

बिहार में महागंठबंधन के बीच भी रार
एनडीए गंठबंधन में रहते जो सकूं नीतीश कुमार को भाजपा मंत्रियों के तरफ से थी, वो सुकून राजद मंत्रियों के तरफ से नहीं मिल रही है। एक दिन पहले मंत्रिपरिषद की बैठक में कृषि मंत्री सुधाकर सिंह का तेवर और बीच में ही मंत्रिपरिषद बैठक छोड़ कर जाने की स्थिति भी मुख्यमंत्री को बेचैन करने वाली हुई। इस खास समय में डेप्युटी सीएम का चुप रहना या हस्तक्षेप नहीं करना भी एक कारण बना। सबसे बड़ी बात तो उन्हें ये नागवार करने वाली लगी, जब कृषि मंत्री ने कहा कि सारे अधिकारी चोर हैं।

पीके और आरसीपी की मुलाकात के मायने
राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा काफी परवान पा रही है कि पीके और आरसीपी के बीच मुलाकात हुई है। इस मुलाकात के दौरान टूटे जदयू के बरक्स एक नई पार्टी बनाने को लेकर बात भी हुई। विरोधियों के पैमाने पर इन दोनों के मिलन को भी नीतीश कुमार ने अपने अंदाज में जज भी किया होगा। नीतीश कुमार पीके और आरसीपी की क्षमता को भलीभांति जानते हैं। इसलिए डैमेज कंट्रोल भी नीतीश कुमार का मिशन हो सकता है।

प्रशांत किशोर की मुहिम की असफलता?
जनसुराज के बहाने बिहार में तीसरी धूरी की राजनीति की मंशा पीके ने भले पाल ली हो लेकिन राज्य की राजनीति में जातीय और धर्म की जकड़न के बीच अपने लिए राह निकालना शेर के जबड़े से मांस छीनने जैसा लग रहा होगा। साथ ही पार्टीबंदी में बंटे वोट के बीच अपने लिए रास्ता निकालना भी कम दुष्कर कार्य नहीं लग रहा होगा। ऐसे में प्रशांत किशोर की वापसी किसी पार्टी के रणनीतिकार बनने की हो तो भी जदयू या भाजपा इनका सॉफ्ट टारगेट हो सकती है। याद रहे कि एक बार खुद नीतीश कुमार ने पीके बारे में कहा भी था कि वे तो सिर्फ अमित शाह के कहने पर पीके को अपनी पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था।

पीके-नीतीश मुलाकात के क्या है मायने?
सो, असफलता हाथ लगी। इन दोनों नेताओं को एक प्लेटफॉर्म पर मिलना इनकी मजबूरी रही होगी। वो भी अपने इल्म के आजमाए हुए थके घोड़े की तरह। मगर ये भी सच है कि इस मुलाकात के बाद राज्य की राजनीति में कुछ नया जरूर होने वाला है। दीगर है कि ये बदलाव फिर किसी नए गंठबंधन की राह की ओर अग्रसर होता हैं या फिर पीके एक बार नीतीश के पीएम मिशन के रथ के सारथी बनते हैं?