राजस्थान में फूट-गुटबाजी के कारण बीजेपी 11 सीटें हारीं

BJP's victory in Madhya Pradesh is very special, such a record was made after 40 years
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जयपुर। जयपुर बीजेपी मुख्यालय में शनिवार को सीटवार हार के कारणों की समीक्षा की गई। लोकसभा चुनावों में 11 सीटों पर हुई हार के पीछे पार्टी की आपसी फूट, गुटबाजी बड़ा कारण रही है। अब तक स्थानीय नेताओं से आए फीडबैक में सामने आया है कि ग्राउंड पर सब कुछ ठीक नहीं था। वरिष्ठ नेताओं के सामने हारे हुए उम्मीदवारों और फील्ड पर काम कर रहे नेताओं ने एक-एक करके हार के कारण गिनाए हैं।

कई उम्मीदवारों ने प्रदेश प्रभारी, प्रदेशाध्यक्ष और वरिष्ठ नेताओं के सामने अपना दर्द जाहिर करते हुए कहा- बहुत सी जगहों पर अपनों ने हरवाया है। पार्टी को ऐसे नेताओं के बारे में चुनाव के वक्त ही बता दिया था, लेकिन इसके बाद भी सुधार नहीं हुआ। नेताओं ने अंदरखाने साथ रहने का नाटक किया, लेकिन उनके समर्थकों ने पार्टी को हरवाने में दिन-रात एक कर दिया।

दरअसल, जयपुर बीजेपी मुख्यालय में कल (शनिवार) से सीटवार हार के कारणों की समीक्षा का दौर चल रहा है। बीजेपी मुख्यालय में पहले दिन सीएम भजनलाल शर्मा, चुनाव प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी, सह प्रभारी विजया राहटकर ने सीटवार हारे हुए लोकसभा उम्मीदवारों, विधायकों और स्थानीय नेताओं के साथ कारणों पर फीडबैक लिया।

पहले दिन टोंक-सवाईमाधोपुर, दौसा, झुंझुनूं, नागौर, सीकर, चूरू, बाड़मेर सीटों पर हार के कारणों का स्थानीय नेताओं से फीडबैक लिया गया। आज (रविवार) भी चार सीटों बांसवाड़ा, करौली-धौलपुर, भरतपुर और श्रीगंगानगर सीटों पर हार की समीक्षा की जा रही है। सीएम भी आज की मीटिंग में कुछ देर के लिए पहुंचे थे।

हार के कारणों की समीक्षा में सभी सीटों पर तीन से चार बातें कॉमन रहीं। ज्यादातर नेताओं ने यह माना है कि हवा का रुख भांपकर रणनीति बदलने में फेल साबित हुए।

कई सीटों पर तो शुरू में लग ही नहीं रहा था कि इस तरह का अंडर करंट है। लेकिन जब प्रचार गति पकड़ने लगा तो इसका अहसास हुआ। तब तक देर हो चुकी थी।

नेताओं और उम्मीदवारों ने कहा- कांग्रेस ने जिस तरह एससी-एसटी आरक्षण खत्म होने का प्रचार किया। उसका समय पर जवाब नहीं दे सके। जब तक उसे काउंटर करना शुरू किया, तब तक देर हो चुकी थी। कांग्रेस के इस नरेटिव से एससी-एसटी वोटर में बहुत नुकसान हुआ। इसे काउंटर करने की कोशिश वोट में नहीं बदली।

ओवर कॉन्फिडेंस भी बना हार की वजह

स्थानीय नेताओं ने तर्क दिया कि ओवर ​कॉन्फिडेंस भी हार का बड़ा कारण रहा। ग्राउंड पर बड़े-बड़े नेता नहीं भांप सके कि इस बार का चुनाव 2014 और 2019 से अलग था।

पहले के दो चुनावों में माहौल अलग था, इस बार का माहौल बदल चुका था। चुनाव लड़ने वालों से लेकर ग्राउंड पर रणनीति बनाने वाले ओवर कॉन्फिडेंस में रहे, यह हार की बड़ी वजह रही।

सीकर लोकसभा सीट पर हार के कारणों को लेकर आए फीडबैक में पूर्व सासंद और हारे हुए उम्मीदवार सुमेधानंद सरस्वती ने कई स्थानीय नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाए।

उन्होंने यहां तक कहा-​ जिन नेताओं को बड़े पद बांट दिए, वे भी वोट दिलवाने में नाकाम रहे। कोई तो बात है कि वोट नहीं मिले। लाल बत्ती वाले नेता समय पर फील्ड में निकलते और मन लगाकर काम करते तो हालात दूसरे होते।

ज्यादातर नेताओं ने जातीय नाराजगी को हार का बड़ा कारण बताया। चूरू, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, बाड़मेर के नेताओं ने माना कि एससी एसटी के अलावा अब तक साथ रही जातियां भी इस बार नाराज थीं।पिछले चुनावों में जिन बड़ी जातियों का वोट बीजेपी को मिला। इस बार वे नाराज थीं। जातीय समीकरण साध नहीं पाए, यह नाराजगी धीरे धीरे बढ़ती ही रही।

पूर्वी राजस्थान के नेता बोले- खुद की कमजोरियों से हारे

पूर्वी राजस्थान की दौसा और टोंक-सवाईमाधोपुर सीट के नेताओं ने फीडबैक बैठक में तर्क दिया कि खुद की कमजोरियां भी हार की बड़ी वजह रही हैं।

एससी-एसटी के वोटर्स ने कांग्रेस की ही क्यों सुनी, इस पर विचार करना होगा। इसका मतलब है कि काम नहीं हुआ। ग्राउंड पर जाकर लोगों के बीच काम करने में और कागजों में प्लानिंग करने में फर्क होता है। जो यहां साफ दिखा है।