बिहार में जातिगत जनगणना को कैबिनेट की हरी झंडी, 12 एजेंडों पर लगी मुहर

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पटना: बिहार में लंबे समय से चले आ रहे जातिगत जनगणना के मुद्दे पर आज कैबिनेट की मुहर लग गई. गुरुवार को राज्य के मुख्य सचिव अमीर सुहानी ने कहा कि बिहार सरकार अपने संसाधन से जनगणना कराएगी. आज हुई कैबिनेट की बैठक में 12 एजेंडों पर मुहर लगाई गई.बता दें कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को कैबिनेट की बैठक बुलाई थी. आज सबसे ज्यादा मुहर लगने वाले एजेंडे में जाति आधारित मुद्दा टॉप पर था, जिसे कैबिनेट ने सर्व सहमति से पारित कर दिया. इसके अलावा महाराणा प्रताप की जयंती 9 मई को पटना में राजकीय समारोह के रूप में मनाने का निर्णय भी लिया गया.

मुस्लिमों की जातियां भी गिनी जाएंगी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ तौर पर कहा है कि बिहार में सभी धर्मों की जातियों और उपजातियों की गणना कराई जाएगी, जिससे मुसलमानों के भीतर भी उपजाति निकल कर आएगी. ऐसे में साफ है कि बिहार में जाति आधारित गणना सिर्फ हिंदू जातियों की नहीं बल्कि मुस्लिम समुदाय की जातियों की भी गिनती की जाएगी.

मुस्लिमों में जातिगत जनगणना की मांग उठती रही
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज संगठन और तमाम मुस्लिम ओबीसी समुदाय के लोग जातिगत जनगणना में हिंदुओं की जातियों की तरह मुसलमानों के भीतर शामिल तमाम जातियों की गिनती करने की मांग करता रहा है. दिल्ली के गांधी पीस फाउंडेशन में पिछले साल 15 मुस्लिम ओबीसी जाति संगठनों ने मुस्लिम जातियों जनगणना के मुद्दे को लेकर बैठक की थी. इस बैठक में मुस्लिम ओबीसी की शैक्षणिक, आर्थिक, सियासी और सामाजिक आधार पर जनगणना करने की मांग उठाई थी.

बिहार में जातीय जनगणना का क्या है मामला?
बिहार में जातीय जनगणना कराने की मांग तीन साल से हो रही है. नीतीश कुमार अक्सर कहते रहे हैं कि आम जनगणना के साथ जातियों की गिनती भी हो. हालांकि, केंद्र सरकार ऐसा नहीं कराना चाहती.

> नीतीश सरकार 18 फरवरी 2019 और 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास करा चुकी है.

> पिछले साल अगस्त में मुख्यमंत्री नीतश कुमार से बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुलाकात की. इस मुलाकात में जातीय जनगणना कराने पर सहमति मिले. इसके बाद सभी पार्टियों के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और जातीय जनगणना कराने की मांग की.

> इसके बाद सितंबर में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने हलफनामा दायर कर साफ कर दिया कि 2021 में जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी. केंद्र ने कहा कि ओबीसी जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है.

भारत में जनगणना का क्या है इतिहास?
भारत में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी. पहली बार जब जनगणना हुई थी, तब भारत की आबादी 25.38 करोड़ थी. तब से हर 10 साल पर जनगणना हो रही है.- 1931 तक जाति के आधार पर भी जनगणना के आंकड़े जुटाए गए. 1941 में भी जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इसे जारी नहीं किया गया था.- आजादी के बाद 1951 में जनगणना हुई थी. तब सरकार ने तय किया था कि सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आंकड़े ही जुटाए जाएंगे. इसके बाद से सिर्फ एससी और एसटी के आंकड़े जारी होते हैं.