बिहार में तारीखों के ऐलान के बावजूद, फिर अधर में लटक सकता है नगर निकाय चुनाव?

Despite the announcement of dates in Bihar, may the municipal elections hang in the balance again?
Despite the announcement of dates in Bihar, may the municipal elections hang in the balance again?
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पटना:बिहार में नगर निकाय चुनाव की घोषणा एक बार फिर से हो गई है. पहले चरण के लिए 18 दिसंबर और दूसरे चरण के लिए 28 दिसंबर को चुनाव होंगे, जबकि नतीजे 30 दिसंबर को आएंगे. नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार ने भले ही निकाय चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया हो, लेकिन मामला एक बार फिर से कानूनी दांव-पेच में फंस सकता है और शहरी निकाय चुनाव पर ग्रहण लग सकता है.

बिहार में दो चरणों में 224 शहरी निकाय चुनाव होने हैं. इनमें 17 नगर निगम, 70 नगर परिषद और 137 नगर पंचायत की अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और पार्षद की सीटें पर चुनाव होने हैं. निकाय चुनाव में राज्य के कुल एक करोड़ 14 लाख 52 हजार 759 मतदाता हिस्सा लेंगे. सरकार ने अक्टूबर में निकाय चुनाव कराने की घोषणा की थी, लेकिन वोटिंग से एक सप्ताह पहले आरक्षण के चलते रोक लग गई थी. हालांकि, अब दोबारा से नीतीश सरकार ने दिसंबर में दो चरणों में निकाय चुनाव का ऐलान किया है.

बिहार सरकार ने अचानक क्यों लिया ऐसा फैसला?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवंबर को बिहार नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर गंभीर टिप्पणी की थी और राज्य सरकार की ओर से गठित राज्य के अति पिछड़ा वर्ग आयोग को एक डेडीकेटेड कमीशन नहीं माना था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिहार सरकार जिस अति पिछड़ा आयोग के जरिए ओबीसी आरक्षण के लिए रिपोर्ट तैयार करवा रही है, वो समर्पित कमीशन नहीं है.

सुनील कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया और चार सप्ताह के अंदर अपना पक्ष रखने के लिए कहा था. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आधिकारिक जानकारी पहुंचने से पहले ही बिहार सरकार ने आनन-फानन में 30 नवंबर की शाम में नगर निकाय चुनाव करवाने को लेकर तारीखों की घोषणा कर दी.

पटना हाई कोर्ट ने जताई थी आपत्ति
राज्य निर्वाचन आयोग ने बिहार नगर निकाय चुनाव कराने को लेकर जो अधिसूचना जारी की है, उसमें अति पिछड़ा वर्ग आयोग को एक डेडीकेटेड कमीशन घोषित किया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही मानने से इनकार कर दिया था. ऐसे में अब दोबारा से उसी फॉर्मूले से निकाय चुनाव कराने की घोषणा की गई है, जिसके चलते कानूनी दांव-पेच की संभावना बनी हुई है.

बता दें कि बिहार राज्य निर्वाचन आयोग ने इससे पहले 10 और 20 अक्टूबर को दो चरणों में नगर निकाय चुनाव कराने के लिए तारीखों का ऐलान किया था, लेकिन पटना हाई कोर्ट ने ओबीसी वर्ग के आरक्षण के मुद्दे पर अपनी आपत्ति जताई, जिसके बाद नगर निकाय चुनाव को स्थगित कर दिया गया था.

ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने पर फंसा पेच
पटना हाई कोर्ट का मानना था कि बिहार में नगर निकाय चुनाव में ओबीसी और ईबीसी वर्ग को आरक्षण देने की जो व्यवस्था बनाई गई थी, वह सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण के ट्रिपल टेस्ट से जुड़े दिशा-निर्देशों की खिलाफ था. ऐसे में पटना हाई कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि वह नगर निकाय चुनाव पर रोक लगाएं और ओबीसी वर्ग के लिए जो सीटें आरक्षित की गई थी, उन्हें सामान्य वर्ग की सीटें घोषित की जाए.

निकाय चुनाव के मामले भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी राज्य में नगर निकाय चुनाव में आरक्षण ट्रिपल टेस्ट कराए बिना ओबीसी वर्ग को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है और न ही चुनाव कराए जा सकते हैं. महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी ऐसे ही चुनावी घोषणा करने के बाद रोक लगा दी गई थी, जिसके बाद मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की ओबीसी के आंकड़े को पेश किया था. इसके बाद ही शहरी चुनाव करा सके थे.

सुशील कुमार ने नीतीश सरकार को निशाने पर लिया
मार्च 2021 में महाराष्ट्र में नगर निकाय चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि अगर कोई राज्य सरकार नगर निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग के लिए सीटें आरक्षित करना चाहता है, तो उससे पहले उसे एक डेडिकेटेड ओबीसी कमीशन का गठन करना पड़ेगा ताकि उनके पिछड़ेपन को लेकर जानकारी जुटाई की जा सके. इस तरीके से आरक्षण की व्यवस्था की जाए ताकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी को मिलाकर 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण की सीमा का उल्लंघन ना हो.