मैं इस्लाम नहीं मानती, हिन्दुओं जैसा मिले संपत्ति का अधिकार; मुस्लिम युवती की अर्जी पर CJI सन्न?

I do not believe in Islam, I should get property rights like Hindus; CJI stunned on Muslim girl's petition?
I do not believe in Islam, I should get property rights like Hindus; CJI stunned on Muslim girl's petition?
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नई दिल्ली: देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली खंडपीठ के सामने आज (सोमवार, 29 अप्रैल) एक ऐसी अर्जी आई, जिसमें एक मुस्लिम युवती ने यह कहते हुए भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत संपत्ति बंटवारे का निर्देश देने की मांग की थी कि वह इस्लाम नहीं मानती है। महिला का तर्क था कि वह भले ही मुस्लिम परिवार में जन्मी है लेकिन उसकी आस्था अब इस्लाम धर्म में नहीं है। इसलिए उसकी पैतृक संपत्ति का बंटवारा शरिया कानून के तहत ना होकर भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत करने का निर्देश दिया जाय।

खंडपीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी थे। महिला के वकील के तर्कों को सुनने के बाद तीनों जजों की बेंच ने उस पर गहन विचार-विमर्श किया और इस नतीजे पर पहुंची कि यह मुद्दा महत्वपूर्ण है। इसके बाद सीजेआई ने अटॉर्नी जनरल को इस मामले में एमिकस क्यूरी बहाल करने का निर्देश दिया, जो अदालत को कानूनी और तकनीकी पहलुओं से परिचित करा सके। इस मामले की अगली सुनवाई अब जुलाई 2024 के दूसरे सप्ताह में निर्धारित है।

याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारतीय उत्तराधिकार कानून मुस्लिम धर्म में जन्मे व्यक्तियों को धर्मनिरपेक्ष कानून का लाभ उठाने से रोकता है, भले ही वे शरीयत कानून की धारा 3 के तहत औपचारिक रूप से ये घोषणा करें कि वे अब इस्लामी कानून का पालन नहीं करना चाहते हैं।

यह रिट याचिका केरल की एक महिला सफिया पीएम ने दायर की है। सफिया केरल में पूर्व-मुस्लिमों (जो मुस्लिम परिवार में जन्में लेकिन अब इस्लाम में आस्था नहीं रखते) का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संघ की महासचिव हैं। अपनी याचिका में सफिया ने एक डिक्लेरेशन दिया कि जो व्यक्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ से बंधे नहीं रहना चाहते हैं, उन्हें देश के धर्मनिरपेक्ष कानूनों, विशेष रूप से 1925 के भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत वसीयत और गैर वसीयत उत्तराधिकार के मामलों में अधिकार मिलना चाहिए।

महिला ने तर्क दिया कि संविधान का अनुच्छेद 25 उसे किसी भी धर्म में आस्था रखने या न रखने की आजादी देता है। इसके साथ ही उनसे कहा कि उसके में पिता भी इस्लाम में आस्था नहीं रखते हैं इसलिए वह भी शरिया कानून के मुताबिक वसीयत नहीं लिखना चाहते हैं। इस पर CJI ने कहा कि अगर आप इसकी घोषणा नहीं करते हैं, तो धारा 3 के तहत आप इस कानून के अधीन नहीं आएंगे।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, मैं महिला हूँ, और मेरे भाई को डाउन सिंड्रोम है, उसे 2/3 संपत्ति दी गई है तो क्या मुझे भी वसीयत नहीं की जा सकती है। मेरी एक बेटी है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, इसकी हम घोषणा कैसे कर सकते हैं? सीजेआई ने कहा, आपके अधिकार या हक आस्तिक या नास्तिक होने से नहीं मिलते बल्कि ये अधिकार आपको आपके जन्म से मिले हैं। अगर मुसलमान के रूप में पैदा होते हैं,तो आप पर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होगा। जहां तक आपके पिता का सवाल है तो वह भी धारा-3 से बाध्य हैं। जब तक वह भी घोषणा नहीं रते तब तक वह धारा- 2 से बंधे रहेंगे।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारतीय उत्तराधिकार कानून की धारा 58 में कहा गया है कि यह मुसलमानों पर लागू नहीं होता है। भले ही आप शरिया अधिनियम के तहत घोषणा न करें, वसीयत आदि पर कोई धर्मनिरपेक्ष अधिनियम नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि जब आप शरियत भी नहीं मानेंगे तो फिर आप पर कौन सा नियम लागू होगा? यह एक अहम विषय है। इसके बाद सीजेआई ने इस पर एक कानूनी अधिकारी के नियुक्ति का आदेश दिया।